Saturday, June 29, 2013

Ganga River: Book Review


गंगोत्री से गंगासागर तक गंगा का दर्द

आज पश्चिमी दुनिया के भौतिक साधनों के विकास की दिशाहीन होड़ में भारतीय समाज अपनी सदियों पुरानी स्वयंसिद्ध परम्परा और सांस्कृतिक विरासत को तजता जा रहा है । यह कथित विकास पारम्परिक जल स्रोतों, विशेषरूप से नदियों को लील रहा है, जिसके कारण देश के पारिस्थितिकी तंत्र का स्वाभाविक संतुलन बिगड़ रहा है। 'दर-दर गंगे' पुस्तक में लेखकद्वय-अभय मिश्र और पंकज रामेन्दु ने भारत में जल और जीवन तथा उससे जुड़ी मानवीय सभ्यता के समक्ष पैदा हो रही चुनौतियों और खतरों को रेखांकित किया है । गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक लम्बी यात्रा करने वाली गंगा, जो उत्तराखण्ड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक विशाल भू- भाग को न केवल सींचती है, बल्कि यहां के राष्ट्रीय समाज की भावनात्मक और धार्मिक आस्था के कारण इसकी पूजा मातृस्वरूपा देवी के रूप में की जाती है, को नए सिरे से खोजा गया है । यह खोज आधुनिकता की अंधी दौड़ में अपना जीवनदायी स्वरूप खोने और स्वच्छ, निर्मल जल के स्थान पर दूषित और जहरीले पानी का प्रतीक बनने वाली नदी की कहानी है ।

इस पुस्तक ने अपनी शैली, विशेष-व्यक्तिगत संस्मरणों और यात्रा वृत्तांतों में गंगा की 2,071 किलोमीटर तक की अविरल यात्रा को समेटा है । यह शैली ही इस पुस्तक को रोजमर्रा की पत्रकारिता में गंगा के प्रदूषण पर आए दिन लिखे जाने वाले लेखों और खबरों की भीड़ से अलग करती है ।

इस पुस्तक के लेखकों ने गंगा पथ पर पड़ने वाले मानवीय बसावट वाले ठिकानों-गंगोत्री, उत्तरकाशी, टिहरी, देवप्रयाग, ऋषिकेश, गढ़मुक्तेश्वर, नरौरा, कानपुर, इलाहाबाद, विंध्याचल, बक्सर, पटना और कोलकाता से लेकर गंगासागर-में से तीस शहरों का चयन किया है । ये नगर, नदी के मूल स्वरूप के विलुप्त होने और आधुनिक सभ्यता के औद्योगिक कचरे और निकृष्ट जल-मल प्रबंधन के कोढ़ से उसके ग्रसित होने के गवाह हैं, और इसका जिम्मेदार इन्हीं नगरों का नागरी समाज है । सरकार ने गंगा को राष्ट्रीय नदी तो घोषित कर दिया पर लोक के व्यवहार में राष्ट्रीय सम्मान कहीं परिलक्षित नहीं हुआ । राष्ट्रध्वज के अपमान, राष्ट्रीय गीत या राष्ट्रगान के मजाक उड़ाने पर दंड की व्यवस्था है लेकिन गंगा के विषय पर अब तक ऐसा कुछ भी होता नहीं दिखता ।

इस पुस्तक में नदी तट पर मौजूद मानवीय बसावट के संबंध, संबोधन और संवेदना को समेटते हुए इनके सांस्कृतिक-सामाजिक परिवेश और यात्रा में अनुभव में आई घटनाओं को रोचक ढंग से कहानी के रूप में बयान किया गया है । इतना ही नहीं, गंगा के तट पर बसी मानवीय सभ्यता का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए उनके नित्यप्रति के जीवन, जीवनशैली, पूजा-पद्धति की भिन्नताओं के एकत्व को रेखांकित किया है । तिस पर भी गंगा की इस दुर्दशा के बावजूद भारतीय जनमानस के अवचेतन में सदियों से यह विश्वास भरा है कि हिमालय में गंगोत्री से जो अमृत जल आता है, वह उनके सारे पापों को धोकर उनके चित्त को निर्मल कर देगा और पुनर्जन्म के बंधन से मोक्ष भी देगा । इसलिए देश-विदेश से करोड़ों लोग प्रदूषित पानी में भी गंगोत्री से आए एक बूंद अमृत जल की तलाश में गंगा में डुबकी लगाते रहते हैं ।

सीधी सरल भाषा में लिखी गई यह पुस्तक गंगा की लाइलाज बीमारी की ओर संकेत करते हुए कहती है कि उस जीवनदायिनी के स्वस्थ जीवन के लिए जो सदियों से बगैर कुछ कहे हमें दे रही है और हम ले रहे हैं । इतना ले रहे हैं कि जोंक की भांति हमने उसके शरीर से उसका पानी भी ले लिया है । 

पुस्तक का नाम - दर दर गंगे

लेखक : - अभय मिश्र-पंकज रामेन्दु

प्रकाशक - पेंगुइन बुक्स लि. 11 कम्युनिटी सेंटर, पंचशील पार्क, नई दिल्ली-17

पृष्ठ - 221

मूल्य - 199 रुपए
 

Friday, June 28, 2013

Greatness



दुर्भाग्य से कोई भी व्यक्ति, वह चाहे जितना महान हो, अपनी सीमाओं को हमेशा जान सके यह संभव नहीं है। उसकी अपनी महानता ही परिवर्तन का रास्ता रोक लेती है।

Tuesday, June 25, 2013

Kumaoni-Song


कुमाऊंनी विरह-गीत ’न्यौली’

काटन्या, काटन्या
पौली ऊंछौ चौमासी को बाना,
बगन्या पाणी थामी जांछौ
नी थामीनै मन ...

-प्रेमी के विरह में नायिका विलाप कर रही है कि उस मन का क्या करे जो थामा ही नहीं जाता जबकि बहता पानी तक थम जाता है और उस पर मौसम की उदासी

Life: Agheya



जीवन : वह धनी है, धुनी है
अपने अनुपात गढ़ता है।
हम : हमारे बीच जो गुनी है
उन्हें अर्थवती शोभा से मढ़ता है।

-अज्ञेय (महावृक्ष के नीचे)

life-question-answer


जिंदगी चंद-सवाल और कुछ-जवाब ही तो बन कर रह जाती है ।

Sunday, June 23, 2013

Ambedkar on "Dalit"


प्रथम गोलमेज सम्मेलन के अंत में, 4 नवम्बर, 1931 को, डा.अम्बेडकर ने अपने पूरक प्रतिवेदन में स्पष्ट शब्दों में लिखा, 'दलित वर्ग' के लोगों को इस 'दलित वर्ग' नाम पर सख्त आपत्ति है। इसलिए नए संविधान में हमें 'दलित वर्गों' की बजाय 'गैर-सवर्ण हिन्दू' या 'प्रोटेस्टेंट हिन्दू' या 'शास्त्र-बाह्य हिन्दू' जैसा कोई नाम दिया जाए। पुन: 1 मई, 1932 को लोथियन कमेटी को एक प्रतिवेदन में उन्होंने लिखा कि 'आपकी कमेटी के सामने अधिकतर नेताओं ने इस नाम पर आपत्ति की है। यह नाम भ्रम पैदा करता है कि 'दलित वर्ग' कहलाने वाला समाज पिछड़ा और बेसहारा है, जबकि सच यह है कि प्रत्येक प्रांत में हमारे बीच खाते-पीते और सुशिक्षित लोग भी है...इन सब कारणों से 'दलित वर्ग' शब्द प्रयोग बिल्कुल अनुपयुक्त और अवांछित है।'

Gandhi-Patel-Congress


19 अगस्त को गांधी जी ने सरदार पटेल को पत्र लिखा कि, 'तुम्हारी अनुमति के बिना मैं कांग्रेस कैसे छोड़ सकता हूं, किंतु व्यक्तिश: मुझे लगता है कि इसके सिवा दूसरा रास्ता नहीं है। मैं कांग्रेस के विकास में बाधक बना हुआ हूं। सामान्य कांग्रेसजन के लिए सत्य और असत्य, हिंसा और अहिंसा, खादी और मलमल में कोई अंतर नहीं रह गया है। उसे अपने ढंग से रहने देना चाहिए, पर वह मेरे रहते संभव नहीं हो पायेगा।...'

River Civilization: Challenges



जल से बिजली बनाने के प्रयासों का परिणाम देश के नदी प्रवाहों पर हो रहा है। बिजली उत्पादन के अतिरिक्त शहरीकरण और प्रत्येक घर में शौचालय का लक्ष्य भी नदी प्रवाहों के लिए घातक बन गया है। हम नदी प्रवाहों का दुरुपयोग मल सहित गंदे पानी को फेंकने के लिए कर रहे हैं। प्राणदायिनी गंगा की पवित्रता की रक्षा के लिए जो बैचेनी हम दिखाते हैं, वह अधिकांशत: सरकारी नीतियों की आलोचना पर जाकर रुक जाती है। गंगा को तीसरे दर्जे की नदी का व्यवहार मिल रहा है।

सच तो यह है कि देश की लगभग सभी नदियां ऐसी ही 'शोचनीय' स्थिति में पहुंच चुकी हैं। वे आधुनिक होती सभ्यता का कचरा ढो रही हैं। औद्योगिकीकरण और शहरीकरण का अभिशाप भुगत रही हैं।

मानव सभ्यता एक दोराहे पर खड़ी है। वह देख रही है कि आधुनिक तकनालॉजी देश, काल व प्रकृति पर विजय पाने और सुख के जो अनेक साधन प्रदान कर रही है, उनकी उत्पादन प्रक्रिया स्वयं में ही प्रकृति नाशक है और मानवजाति के विनाश को निकट ला रही है।

क्या पवित्र गंगा नदी के प्रति हमारी श्रद्धा-भावना सभ्यता के इस संकट से बाहर निकलने का आत्मबल प्रदान कर सकती है?

मैं जब अपने भीतर झांकता हूं तो मुझे स्वीकार करना पड़ता है कि शायद मुझमें वह आत्मबल नहीं है। मैं बौद्धिक धरातल पर उसकी विवेचना तो कर सकता हूं पर उस जीवनशैली का त्याग नहीं कर सकता।

lyrical thought


रमता जोगी-बहता पानी, बहकता मन-लहकता तन..............
चित्र: अरविन्द कोलप्कर, 1975

Worldly Wisdom



दुनिया की रीत निराली है। लोग 'प्रयासों' को नहीं, 'परिणामों' को देखकर शाबाशी देते हैं। 'पश्चाताप' को नहीं, 'प्रायश्चित' को सराहते हैं। 'खेती' को नहीं, 'फ़सल' को देखकर मुग्ध होते हैं। सुन्दरता की प्रशंसा 'फूल' की होती है न कि 'बीज' की।

Saturday, June 22, 2013

Kabir



मोको कहां ढूँढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना तीरथ मे ना मूरत में
ना एकान्त निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में
ना काबे कैलास में
मैं तो तेरे पास में बन्दे
मैं तो तेरे पास में
ना मैं जप में ना मैं तप में
ना मैं बरत उपास में
ना मैं किरिया करम में रहता
नहिं जोग सन्यास में
नहिं प्राण में नहिं पिंड में
ना ब्रह्याण्ड आकाश में
ना मैं प्रकुति प्रवार गुफा में
नहिं स्वांसों की स्वांस में
खोजि होए तुरत मिल जाउं
इक पल की तालास में
कहत कबीर सुनो भई साधो
मैं तो हूं विश्वास में

Six forts of Rajasthan in World Heritage List


The World Heritage Committee of UNESCO in its 37th Session has approved for inscribing 6 hill forts of Rajasthan on the World Heritage List.  The 6 forts are as follows:
S. No.         
Name of Fort               
District
Protection
1.
Chittaurgarh Fort
Chittaurgarh
ASI
2.
Kumbhalgarh Fort
Rajsamand
ASI
3.
Ranthambhore Fort
Sawai Madhopur
ASI
4.
Jaisalmer Fort       
Jaisalmer
ASI
5.
Amber Fort 
Jaipur
State Government
6.
Gagron Fort
Jhalawar

Friday, June 21, 2013

Source and Bridge


जीवन में कभी भी अपने स्रोत और सेतु को बिसराना नहीं चाहिए, वक़्त तो क्या है हवा का झोका है कभी तेज़ कबि मद्धम । अगर स्त्रोत ही सूख गया और सेतु ही टूट गया फिर तो ईश्वर चाहे तो भी पुनर्जीवित नहीं कर सकता और नहीं जोड़ सकता ।

Thursday, June 20, 2013

Ganga-Yamuna


गंगा का नाम गम् धातु से बना है जिससे गमगम संगीत बनता है, जिसकी ध्‍वनि सितार की थिरकन के समान मधुर है। भारतीय शिल्‍प कला के लिए, घड़ियाल पर गंगा और कछुए पर उसकी छोटी बहन जमुना, एक रुचिकर विषय है। यदि अनामी मूर्तियों को शामिल न किया जाए, तो वे भारतीय महिलाओं के प्रस्तर रूप की सर्वश्रेष्‍ठ सुंदरियाँ हैं।
गंगा और यमुना के बीच आदमी मंत्रमुग्‍ध-सा खड़ा रह जाता है कि ये कितनी समान हैं, फिर भी कितनी अलग। उनमें से किसी एक को चुनना बहुत मुश्किल है। ऐसी स्‍थानीय आभा से विश्‍ववाणी निकलती है।

Wednesday, June 19, 2013

Bhavani prasad Mishra-Words like Flower



बहुत मामूली रोज़मर्रा के सुख-दुःख मैने इनमें कहे हैं जिनका एक शब्द भी किसी को समझाना नहीं पड़ता |
“शब्द टप-टप टपकते हैं फूल से; सही हो जाते हैं मेरी भूल से  |
-भवानी प्रसाद मिश्र

संकल्प सुप्त-भवानी प्रसाद मिश्र


‘हम किसी रोज़ ऐसे जागें फिर नींद न आये’
इतना कह कर देश सो गया !
दिन-पर-दिन हफ्तों -पर हफ्ते ,बरस गए
आ गए जमाने नये मगर
न-सोने कि इच्छा का धनी हमारा देश
शून्य कर्तृत्व ले रहा है खर्राटे

और जगत के बटमारों के गुट
जुटे हुए हैं इस कोशिश मे नींद न खुलने पाए
कभी इस सुप्त देश की
सोये रहने कि सुविधाएँ सब हाज़िर हैं
अपना सोना बड़े काम का सिद्ध हो रहा है
बेचारे गाँधी का सपना विद्ध हो रहा है.

Sunday, June 16, 2013

On Self and Writing


मैंने तो ब्लॉग लिखना भी सरकारी नौकरी की एकरसता से बचने के लिए किया था न की किसी रचना को रचने को लेकर. मुझे कोई साहित्यकार या लेखक होने का जरा सा भी गुमान नहीं रहा, हां बस कुछ किताबे पढ़ी है दिल से सो याद रह गयी है उनकी बाते और सन्दर्भ जो बोल-लिख देता हूँ तो दूसरों को मेरे "पढ़े-लिखे" होने की ग़लतफ़हमी हो जाती है जबकि मेरा ऐसा कोई भी दावा नहीं है.

concentration: effort


बस मन और कर्म में स्थिरता को साधने की कोशिश है क्योंकि ज्यादा करने के चक्कर में शक्ति चहु ओर बिखर जाती है और मन में ऐसा भाव आता है कि मनोवांछित फल नहीं मिला ।

Saturday, June 15, 2013

Riots in India



अविभाजित बंगाल में तो स्वतंत्रता प्राप्त होने से पूर्व ही मुस्लिम लीग ने अपना असली रंग दिखा दिया था और विस्तार से पढना हो तो नीरद सी चौधरी की आत्मकथा पर एक नज़र काफी है एक और पुस्तक कॉन्टिनेंट ऑफ़ सिर्स भी उल्लेखनीय है.

(भारत में दंगो के इतिहास के सन्दर्भ में)

Thought and Action


अपने विचारों को कागज़ पर उतार कर अपनी हिम्मत का जामा पहना दो । फिर देखो कितनी दूर तक खुशबु फैलती है, तुम्हारे काम की ।

Tuesday, June 11, 2013

Emotions


कितना मुश्किल है ....कुछ जज़्बात हैं ... जो फूट पड़ते हैं ....

Life without remorse


You have to explore the life and not to get into shell. Live life king size without any remorse.

Sunday, June 9, 2013

Acharya Mahvir Prasad Dwivedi


महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के पहले साहित्यकार थे, जिनको ‘आचार्य’ की उपाधि मिली थी। इसके पूर्व संस्कृत में आचार्यों की एक परंपरा थी। मई, 1933 ई. में नागरी प्रचारिणी सभा ने उनकी सत्तरवीं वर्षगाँठ पर बनारस में एक बड़ा साहित्यिक आयोजन कर द्विवेदी का अभिनंदन किया था उनके सम्मान में द्विवेदी अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन कर, उन्हें समर्पित किया था। इस अवसर पर द्विवेदी जी ने जो अपना वक्तव्य दिया था, वह ‘आत्म-निवेदन’ नाम से प्रकाशित हुआ था। इस ‘आत्म-निवेदन’ में वे कहते हैं, ‘‘मुझे आचार्य की पदवीं मिली है। क्यों मिली है, मालूम नहीं। कब, किसने दी है, यह भी मुझे मालूम नहीं। मालूम सिर्फ इतना ही है कि मैं बहुधा-इस पदवी से विभूषित किया जाता हूँ।....शंकराचार्य, मध्वाचार्य, सांख्याचार्य आदि के सदृश किसी आचार्य के चरणरज: कण की बराबरी मैं नहीं कर सकता। बनारस के संस्कृत कॉलेज या किसी विश्वविद्यालय में भी मैंने कदम नहीं रखा। फिर इस पदवी का मुस्तहक मैं कैसे हो गया ?’’ महावीर प्रसाद द्विवेदी ने मैट्रिक तक की पढ़ाई की थी। तत्पश्चात् वे रेलवे में नौकरी करने लगे थे।

स्रोत : http://pustak.org/bs/home.php?bookid=5684

Amartya Sen-Indian Science Congress: Nalanda


Nalanda was violently destroyed in an Afghan attack, led by the ruthless conqueror, Bakhtiyar Khilji, in 1193, shortly after the beginning of Oxford University and shortly before the initiation of Cambridge. Nalanda university, an internationally renowned centre of higher education in India, which was established in the early fifth century, was ending its continuous existence of more than seven hundred years as Oxford and Cambridge were being founded, and even compared with the oldest European university, Bologna, Nalanda was more than six hundred years old, when Bologna was born. Had it not been destroyed and had it managed to survive to our time, Nalanda would be, by a long margin, the oldest university in the world. Another distinguished university, which did not stay in existence continuously either, viz. Al-Azhar University in Cairo, with which Nalanda is often compared, was established at a time, 970 AD, when Nalanda was already more than five hundred years old.

Source: (‘Nalanda stood for the passion of propagating knowledge, understanding': Amartya Sen's keynote address at the 98th Indian Science Congress in Chennai on January 4, 2011)

Red Corridor : Naxal


लाल गलियारा: पशुपति से तिरुपति तक............

Thursday, June 6, 2013

Success in Hindi Cinema: Madhuri Dikshit



जब मैंने बॉलीवुड में कदम रखा तो लोगों ने मुझसे कहा था कि यहां आप कुछ नही कर सकती हैं। यह अच्छी जगह नही है लेकिन मुझे अपने ऊपर विश्वास था और मैंने यहां काम किया। जब आप किसी काम को चुनौती के रूप में लेते है तो सफल हो सकते है।

-माधुरी दीक्षित, बॉलीवुड की ‘धक-धक गर्ल’, सिने करियर में 70 से अधिक फिल्मों में अभिनय

Source: http://khabar.ibnlive.in.com/news/100586/6/23

Lost Friend


जब किसी का साथ छूटता है तो सही में भीतर से बहुत कुछ टूट जाता है जो फिर जीवन मैं जुड़ नहीं पाता..........

Wednesday, June 5, 2013

Dream: Self Realization



सपना तो अपनी आखों से ही देखा जाता है और उसको पूरा करने के लिए भी खुद ही हाथ पैर मारने पड़ते है.........
Photo source: Northern India (Rajasthan, Jaipur), Portrait of a Lady,c. 1800, Gift of George P. Bickford (http://www.harn.ufl.edu/exhibitions/) 

Modern Life:Yayati


आप न चाहो तो भी समय आगे बढता है, आपके न चाहते हुए भी उम्र कम होती जाती है । मन थक भी जाए तन नहीं थकता । आज के माहॊल में भौतिक साधनों और सुख की प्यास, मानो पेप्सी के विज्ञापन के स्लोगन "यह प्यास है बड़ी" की तरह शांत होने का मानो नाम ही नहीं लेती । यह देखकर महाभारत के ययाति की कहानी, कहानी न होकर हकीक़त लगने लगी है ।

Thirst


मन भर भी जाए पर कई बार तन की प्यास नहीं बुझती जैसे गर्मी में यकायक बहुत देर तक पानी न मिलने के बाद एक दम पानी मिलने पर यही हाल होता है

Monday, June 3, 2013

Nirmal Verma:Communist


वह एक दिन में कम्युनिस्ट-विरोधी नहीं हो गये थे और न एक दिन में भारत-प्रेमी। उनकी प्रज्ञा मूलतः प्रश्नाकुल थी, आलोचक नहीं। अपने इस अदम्य साहस में वह उपनिषदिक परम्परा के उत्तराधिकारी कहलाने के अधिक निकट थे, बजाय औपनिवेशिक संस्कृति की पैदावार होने के।

-गगन गिल (प्रिय राम-निर्मल वर्मा)




mahvir prasad:saraswati


आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी ने ‘सरस्वती’ नामक मासिक पत्रिका का संपादन शुरु किया। सत्रह वर्ष के सम्पादन काल में इन्होंने हिन्दी को नई गति तथा नई शक्ति दी। अनेक कवियों तथा लेखकों को इनसे प्रोत्साहन मिला। वास्तव में द्विवेदी जी व्यक्ति न होकर एक संस्था थे। समकालीन लेखकों एवं कवियों को सही मार्गदर्शन प्रदान करके हिन्दी भाषा एवं साहित्य को समृद्ध एवं जीवन्त बनाकर इन्होंने स्तुत्य कार्य किया।
दिवेदी जी हिन्दी-साहित्य के इतिहास में युगप्रवर्तक के रूप में विख्यात हैं। इन्होंने गद्य की भाषा का परिष्कार किया और लेखकों की सुविधा के लिए व्याकरण और वर्तनी के नियम स्थिर किए। कविता में उस समय प्रायः ब्रज-भाषा का ही प्रयोग होता था। इन्होंने गद्य की भांति कविता में भी खड़ी बोली का प्रयोग किया। और, अन्य कवियों को खड़ी बोली में ही कविता करने की प्रेरणा दी। इन्हीं साहित्यिक सेवाओं के फलस्वरूप विद्वानों ने उन्हें ‘आचार्य’ पद से सम्मानित किया।
गद्य :: तरुणोंपदेश, हिन्दी कालिदास की समालोचना, वैज्ञानिक कोष, नाट्यशास्त्र, हिन्दी भाषा की उत्पत्ति, वनिता विलाप, साहित्य संदर्भ, अतीत -स्मृति, साहित्यालाप. ‘रसज्ञ रंजन’, ‘साहित्य-सीकर’, ‘साहित्य-संदर्भ’, ‘अद्भुत आलाप’, ‘संचयन’ इनके प्रसिद्ध निबंध-संग्रह हैं।
काव्य :: काव्य -मञ्जूषा, सुमन, कविता कलाप, ‘द्विवेदी-काव्यमाला’ में कविताएं संगृहित हैं।

Sunday, June 2, 2013

छाया मत छूना / गिरिजाकुमार माथुर



छाया मत छूना मन

होता है दुख दूना मन

जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ

सुहावनी छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;

तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,

कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।

भूली-सी एक छुअन बनता

हर जीवित क्षण

छाया मत छूना मन

होगा दुख दूना मन

यश है न वैभव है,

मान है न सरमाया;

जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।

प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्‍णा है,

हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्‍णा है।

जो है यथार्थ कठिन

उसका तू कर पूजन- छाया

मत छूना मन

होगा दुख दूना मन

दुविधा-हत साहस है,

दिखता है पंथ नहीं

देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।

दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,

क्‍या हुया जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?

जो न मिला भूल उसे

कर तू भविष्‍य वरण,

छाया मत छूना मन

होगा दुख दूना मन

Common man with uncommon strength


इंतजार होता नहीं करना पड़ता है । कभी समय का, कभी साथी का, कभी अवसर का और कभी शत्रु के गलत कदम का । महाभारत से लेकर रामायण तक सभी सही समय के इंतजार की बात को सिद् करते हैं ।

Life:Patience




जीवन में अनेक बार चार कदम आगे और दो कदम पीछे होना पड़ता है............इतना ही नहीं ठहर कर कदमताल, सेना की टुकड़ी की तरह, भी करनी पड़ती है । सही समय के इंतजार में ।

Amitabh-Parents


मैं अपने माता-पिता से प्रेरित हूं और आज भी उनसे प्रेरणा लेता हूं। उन्होंने कहा कि मेरे पिता एक कवि थे और मां सिख थीं बावजूद इसके इलाहाबाद शहर में उन्होंने शादी की। यह एक असामान्य बात है। मैं अपने पिता के साथ अधिक समय नहीं बीता सका इसके लिए मुझे आज भी पछतावा महसूस होता है।
-अमिताभ बच्चन

Naxal:Tribal Area


माओवादी हिंसा के कार्यक्षेत्र झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के जनजातीय क्षेत्र ही क्यों बने हुए हैं?
दलित-वंचित के नाम पर पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से जो हिंसक आदोलन प्रारंभ हुआ था, वह आज फिरौती और अपहरण का दूसरा नाम है। एक अनुमान के अनुसार नक्सली साल में अठारह सौ करोड़ की उगाही करते हैं। विदेशी आकाओं से प्राप्त धन संसाधन और प्रशिक्षण के बल पर भारतीय सत्ता अधिष्ठान को उखाड़ फेंकना नक्सलियों का वास्तविक लक्ष्य है।
गरीब व वंचितों का उत्थान नक्सलियों का लक्ष्य नहीं है। यदि यह सत्य होता तो सरकार द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के लिए किए जा रहे कायरें को बाधित क्यों किया जाता है? सड़कों को क्यों उड़ा दिया जाता है? 
यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसार सन 2006 से 2009 के बीच नक्सल प्रभावित ‘लाल गलियारे’ में नक्सलियों ने तीन सौ विद्यालयों को बम धमाकों से उड़ा दिया। सन 2005 से 2007 के बीच नक्सली कैडर में बच्चों की बहाली में भी तेजी दर्ज की गई है। छोटी उम्र के बच्चों को शिक्षा से वंचित कर उन्हें बंदूक थमाने वाले नक्सली कैसा विकास लाना चाहते हैं?
यूं तो नक्सली आदोलन भूमिगत है, किंतु कुतर्क की भाषा बोलने वाले वस्तुत: धरातल पर दिखने वाले नक्सली आतंक के चेहरे हैं। नक्सली हिंसा का चेहरा, चाहे धरातल पर दिखने वाला हो या भूमिगत, उनका उद्देश्य भारत की बहुलतावादी संस्कृति और विशिष्ट पहचान को नष्ट करना है। यह भारत के खिलाफ एक अघोषित युद्ध है और इस युद्ध में भारत के खिलाफ भारतीयों का ही सफलतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है।
देशद्रोही ताकतों के विरुद्ध लड़ाई में यदि आप निर्णायक ढंग से पूरी तरह देश के साथ नहीं हैं तो इसका सीधा-सीधा अर्थ है कि आप भारत के दुश्मनों के साथ हैं।

unshaped to shape


वैसे मैं तो खुद ही अपने को अनगढ़ से गढ़ने की प्रक्रिया में घिसता हूं, रोज नित नियम से.....

Word Support


शब्द ही सबसे बड़ा संबल है...........

Saturday, June 1, 2013

Christianity-Indian Tribe


पूर्वोत्तर और झारखंड के आदिवासी इलाकों में एक नई विचारधारा के रूप में ईसाई मत का प्रसार हुआ। इन क्षेत्रों की जनजातियों ने अंग्रेजी सरकार के साथ सहकार का रास्ता अपनाया।

Darkness to Light



मन के गहरे गहन अंधेरे में
पहुंची एक रश्मि की किरण
हुआ मन पावस से आलोकित
दिशा मिली जीवन को

Jharkhand: Santhal Hul


The two legendary freedom fighters from Jharkhand, Sido Murmu and Kanhu Murmu led the Santhal rebellion popularly known as ‘Santhal Hul’ in 1855 against the exploitation of the colonial rule of British. Their contribution to the nation will remain immortalized in the history of the nation. These great men struggled and made the supreme sacrifice to spread the message and values of equality and humankind.

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...