Saturday, August 31, 2013

Edward Said: India



This whole reconstruction of the glory of ancient India was a part of the orientalising discourse of the colonising power.
-Edward Said

Friday, August 30, 2013

Urdu:Delhi-Shamsur Rahman Faruqi



“Urdu” first referred to the “royal city” of Delhi, and was not aligned with any language until 1780; meanwhile the language of the Delhi area was being called Hindi or Hindvi and later, Rekhta.

-Shamsur Rahman Faruqi, Early Urdu Literary Culture and History


Wednesday, August 28, 2013

truth


The basic tenet of finding the truth is to first clean yourself of all conditions. Approach existence absolutely empty. All existence to say something. Get rid off the preconditioned mind. Don't ask, don't argue, surrender to yourself and you will reach to truth on your own.

Russia: Sri Krishna


मेरे देश में भी है ‘बांसुरी वाला’ जादूगर
हमारे यहां दुर्ग की बिलासपुर से जितनी दूरी है, शायद उससे भी छोटा देश है। उतनी ओसेशिया अलानिया गणराज्य। काला सागर और कैस्पियन सागर के बीच रशिया से लगा हुआ यह देश क्षेत्रफल के लिहाज से भले ही छोटा है, लेकिन हजारों सालों की माननीय सभ्यता का इतिहास अपने में समेटे हुए है। यही वजह है कि बीएसपी ब्लास्ट फर्नेस में रशिनयन प्रतिनिधि अलानिया मूल के कजबेक अगयेव से मेरी बात आज से भारत-रूस संबंधों पर कम और उनके व हमारे देश के पौराणिक मान्यताओं और उसमें सभ्यता को लेकर ज्यादा हुई। वैसे कजबेक से मुलाकात कुछ-कुछ टेढ़ी खीर की तरह थी। दरअसल करीब 10 दिनों से कजबेग बीएसएनएल की ‘भूल’ से शिकार थे। बिल भुगतान के बावजूद ‘नो पेमेंट’ के आधार पर उनका टेलिफोन काट दिया गया था। जब बीएसएनएल ने अपनी यह ‘भूल’ सुधारी तब कही मेरा कजबेक से संपर्क हुआ। इसके बाद आज जब मैं उनके घर पहुंचा तो वे भारतीय दार्शनिक योगानंद की पुस्तक पढ़ रहे थे। उत्सुकता वश मैंने कह दिया लगता है आपकी भारतीय दर्शन में गहरी रूचि है। वह बोल न सिर्फ भारतीय दर्शन बल्कि विभिन्न स्थलों पर मानवीय सभ्यताओं का उद्ïभव, विकास व उनके सभ्यता का अध्ययन करना मुझे पसंद है। इससे पहले की मैं कुछ पूछता वह खुद ही कहने लगे। अगर आप मुझे रूसी मूल का समझ रहे तो आप गलत सोच रहे है। मैं रूस से लगे देश अलानिया गणतंत्र का हूं। काकेशस पर्वत श्रृखंला से घिरे अलानिया की राजधारी बलादीकाफकास में मेरा घर है। आर्य मूल की हमारी ‘ईरान’ सभ्यता का 25000 वर्ष पुराना इतिहास मिलता है। करीब एक हजार वर्ष से हमारे लोग आर्थोडॉक्स ग्रीक चर्च के ईसाई मतावलंबी है। चूंकि कजबेक इस पर विस्तार से बोलना चाह रहे थे और मेरी जिज्ञासा भी थी, लिहाजा मैंने टोका नहीं। वह कहने लगे पूरी दुनिया घुमते रहने के बावजूद बहुत सी ऐसी वजहें है, जिनके आधार पर मुझे हिन्दुस्तानी सभ्यता व संस्कृति से प्रेम है। उन्होंने बताया वैसे तो अब हम सभी रशियन बोलते है। लेकिन, हमारी मूल भाषा ‘ओसेशियन’ है। जिसमेे करीब 150 शब्द संस्कृत के है। मैं चौक गया तो उन्होंने बताया हमारे यहां एक से दस तक गिनती का उच्चारण यू, दो, र्ïथ, चच्यार, फांज, श्आज, आफ्द, आप्ट, नौ और दस। हम ‘आदमी’ को ‘आदम’ कहते है। हमारे पूर्वज अग्नि के उपासक थे। आज भी हमारे यहां जल, वायु और अग्नि को पवित्र माना जाता है। किसी भी त्यौहार या खास अवसर पर हम तीन तह वाली तीन अलग-अलग पाई (गोल बे्रड की तरह पकवान) बनाते है। जिनमें पहली जल, अग्नि व वायु को, दूसरी पिता, माता व संतान को तथा तीसरी भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल को समर्पित करते है। कजबेक ने एक और चौकाने वाला तथ्य एक प्रतिमा की तस्वीर दिखा कर बताया। उन्होंने बताया कि कृति ‘वल्शेब्नया फ्लेता अत्समा$जा’ यानि ‘अत्समा$जा की जादूई बांसरी’ हजारों साल पहले पत्थर व उकेरी गई थी। हमारे यहां मानते है कि आत्समा$जा की बांसुरी में इतना जादू था कि जंगल के जानवर भी खींचे चले आते थे। पत्थर पर बांसुरी बजाते अत्समा$जा के चारों तरफ इसी आधार पर भालू, सांप, भैंसा व अन्य जानवर चित्रित किये गये है। कजबेक की बात सुनकर मेरे मुंह से निकल गया हमारे यहां तो श्रीकृष्ण...? मेरी बात पूरी ही नहीं हुई थी कजबेक ने सहमति से सिर हिला दिया। वह बोले हम लोग एक हजार साल पहले ही ईसाई हो गये लेकिन कुछ परंपराये जड़ों में आज भी मौजूद है।

Jai kanhaiya lal ki


नन्द के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की


हे आनंद उमंग भयो
जय हो नन्द लाल की
नन्द के आनंद भयो
जय कन्हैया लाल की
हे ब्रज में आनंद भयो
जय यशोदा लाल की
नन्द के आनंद भयो
जय कन्हैया लाल की
हे आनंद उमंग भयो
जय हो नन्द लाल की
गोकुल के आनंद भयो
जय कन्हैया लाल की
जय यशोदा लाल की
जय हो नन्द लाल की
हाथी, घोड़ा, पालकी
जय कन्हैया लाल की
जय हो नन्द लाल की
जय यशोदा लाल की
हाथी, घोड़ा, पालकी
जय कन्हैया लाल की
हे आनंद उमंग भयो
जय कन्हैया लाल की
हे कोटि ब्रह्माण्ड के
अधिपति लाल की
हाथी, घोड़ा, पालकी
जय कन्हैया लाल की
हे गौने चराने आये
जय हो पशुपाल की
नन्द के आनंद भयो
जय कन्हैया लाल की
आनंद से बोलो सब
जय हो ब्रज लाल की
हाथी, घोड़ा, पालकी
जय कन्हैया लाल की
जय हो ब्रज लाल की
पावन प्रतिपाल की
हे नन्द के आनंद भयो
जय हो नन्द लाल की

Kuldip Nayar-Shekhar Gupta




Nayar eats his words
"I hired many journalists but two of the recruits, Shekhar Gupta and Madhu Kishwar, became celebrities. Shekhar Gupta called me his ‘guru’ but showed no respect when he stopped my fortnightly column. By then he had become all in all in the Express, circumstances having helped him to occupy the position of editor-in-chief. He also became abnormally affluent as well as arrogant." These libelous comments were made by noted veteran journalist Kuldip Nayar about Indian Express editor-in-chief Shekhar Gupta in his autobiography titled, published by Roli Books with a price tag of Rs 495, Beyond The Lines - An Autobiography published a year ago. Nayar thought it was disrespectful of Gupta to have dropped his column and called him abnormally affluent and arrogant.
But now in the new edition of the book Nayar has eaten his words, with the publishers of the book declaring, " The new edition of Kuldip Nayar's widely popular autobiography, Beyond the Lines, now comes with several changes including his remarks relating to Shekhar Gupta, Editor, the Express Group, and his reference to a former president of Sikh Student's Union, both of which he retracted and regretted for at the launch. All subsequent editions of the book come with these changes." The Roli Books has put up this regret on its website on a page advertising the same book.


indian coalition politics: economic growth



"India's coalition politics hurting economic growth prospects. India needs to reduce its vulnerability. There is not much any country can do about the current situation as the only solution is to reduce the importance of the US financial system."
-Jim O'Neill, Former Chairman of Goldman Sachs AMC.

Tuesday, August 27, 2013

mahavir prasad dwivedi-महावीर प्रसाद द्विवेदी


उत्तर प्रदेश की माध्यमिक शिक्षा परिषद् ने स्वतंत्रता सेनानी हरिभाऊ उपाध्याय द्वारा आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी पर लिखा आलेख दसवीं की पाठ्य-पुस्तक से किन्ही अन्य चार पाठों के साथ निकाल दिया है।
आचार्य द्विवेदी हिंदी गद्य के प्रमुख निर्माताओं में से हैं। वे हिंदी पत्रकारिता के भी पुराधाओं में हैं। ‘सरस्वती’ के माध्यम से उन्होंने अनेकों कवियों, लेखकों, पत्रकारों और संपादकों का मार्गदर्शन किया एवं प्रोत्साहन दिया। इसी कारण उनका समय हिंदी साहित्य के इतिहास में ‘द्विवेदी युग’ या ‘सरस्वती युग’ के नाम से याद किया जाता है। साधारण और सीमित सुविधाओं के होते हुए उन्होंने माँ भारती की अथक सेवा की। द्विवेदी राष्ट्रीय स्मारक समिति ने इसके विरुद्ध अभियान प्रारंभ किया है।
संपूर्ण हिंदी जगत् को इस अन्याय का विरोध करना चाहिए। ऐसा अदूरदर्शी कदम हिंदी का अपमान है। ऐसा उत्तर प्रदेश जैसे हिंदी भाषी राज्य में हो, यह और भी आश्चर्यजनक और खेद का विषय है।
Source: http://sahityaamrit.in/details.asp?

Monday, August 26, 2013

lines


मिट्टी में थी, कुछ ऐसी बेवफ़ाई, 
आशिकी रंग ही नहीं ला पाई
किसे कहते अपने मन की पीर,  
जब अपनी ही ख़राब थी तक़दीर 

Sunday, August 25, 2013

Literary Bankruptcy-Nirmal Verma आलोचनात्मक विपन्नता-निर्मल वर्मा



अगर हम भारतीय और हिंदू प्रतीकों का इस्तेमाल नहीं करेंगे तो क्या ईसाई और मुस्लिम प्रतीकों का इस्तेमाल करेंगे ? ये प्रतीक को सहज रूप से हमारे रक्त में प्रवाहित होते हैं ! जब हम यूरोप का साहित्य पढ़ते हैं तो उनमें बाइबल और यूनानी पौराणिक ग्रन्थों से लिए गए रूपक व प्रतीक मिलते हैं । हम उन्हें स्वीकार करते हैं । नस्लीय दृष्टि से हम क्या उसे देख पाएंगे ? आज हम निराला का तुलसीदास या राम की शक्ति पूजा पढ़ते हैं, तो क्या यह कहेंगे कि यह हिन्दूवादी कविता है ? क्या हम उसे साम्प्रदायिक कविता कहकर खारिज कर सकते हैं ? मैं समझता हूं ऐसी बातें करना हमारी आलोचनात्मक विपन्नता का प्रतीक है । इसमें हिंदू-मुस्लिम का सवाल ही नहीं पैदा होता ।
-निर्मल वर्मा, आपातकाल के दौरान अपने अनुभव पर, (संसार में निर्मल वर्मा संपादक गगन गिल)

Jatt and Delhi



अंग्रेजों ने सबसे पहले सन् 1903 में गाँवों का सर्वे करके ‘लाल डोरा’ कायम किया फिर इसके बाद उन्होंने सन् 1911 में दिल्ली जिले का सर्वे करवाया तथा वहाँ अपने भवन, कार्यालय तथा उच्च अधिकारियों के लिए निवास के हिसाब से नई दिल्ली को बसाया।
नई दिल्ली को बसाने के लिए अंग्रेजों ने दिल्ली में जाटों के 13 गाँवों को उजाड़ दिया।
सन् 1912 में, मालचा खाप समूह के लोगों को दिल्ली से दीवाली की रात को निकाला गया।आज भी इस खाप के चार गांव सोनीपत जिले, चार गांव कुरुक्षेत्र, चार गांव उत्तर प्रदेश तथा एक गांव दिल्ली के कादरपुर गांव के पास बसे हुए हैं।
इस अधिनियम के सहारे अंग्रेजों ने, वह सभी किया जो एक विदेशी शासक करता है, सन् 1894 में दिल्ली में गावों का अधिग्रहण किया। जबकि इस प्रकार से गाँवों को उजाड़ा जाना किसी भी अधिनियम (सन् 1858, 1861, 1892, 1909, 1919 तथा 1935) के तहत अनुचित था पर क्योंकि हिंदुस्तानी गुलाम थे लिहाजा अंग्रेजों की यह दादागिरी चल गई। आज तक किसी सरकार, इतिहासकार या किसी पत्रकार की इस बात पर नज़र नहीं गई और न ही किसी ने इसकी खोज खबर ली कि राष्ट्रपति भवन, रायसीना गाँव की चरागाह में बना है और जहा संसद भवन और इंडिया गेट है, वहाँ कभी खेतों में जौ, चना और बाजरा बोया जाता था।
आज इसी मालचा खाप के लोग अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं और मालचा गांव के सरपंच सतीश ठाकरान व गांववालों ने न्याय पाने में नाकाम रहने पर विरोध स्वरुप अपने सिर तक मुण्डवाए। इसी तरह अंग्रेजो की नाइंसाफी का दिल्ली से जुड़ा एक और दुःख भरा उदाहरण।
सन् 1857 में आज़ादी की पहली लड़ाई में अंग्रेजों के खिलाफ झंडा उठाने वाले दिल्ली के बाकरगढ़ गांव के जाट रणबांकुरों को अंग्रेजो ने लड़ाई में जीतने के बाद जाटों को गांव से बेदखल करते हुए सजा के तौर पर उनकी 5388 बीघा जमीन दूसरे गांवों को बांट दी थी।

 Photo: Shahpur Jat, New Delhi

Chhotu Ram: Jinnah


जब सन् 1944 में मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना पश्चिमी पंजाब में मुसलमानों की संख्या अधिक होने के कारण वहाँ पाकिस्तान बनाने की संभावनायें तलाशने गये और उन्होंने लाहौर में भाषण दिया कि“पंजाब के मुसलमानो, हमें अपना अलग से देश बनाना है जहाँ हम खुद मालिक होंगे। छोटूराम हिन्दू है वह हमारा कभी भी नहीं हो सकता, वह तो नाम का भी छोटा है, कद का भी छोटा है और धर्म का भी छोटा है, उसका साथ देना हमें शोभा नहीं देता।”
इस पर चौ॰ छोटूराम को रोहतक से तुरत-फुरत जिन्ना साहब का जवाब देने के लिए लाहौर बुलाया और उन्होंने भाषण दिया -“जिन्ना अपने को मुसलमानों का नेता कहते हैं, मुस्लिमधर्मी होने का दावा करते हैं, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति में रंगे हैं, अंग्रेजी शराब पीते हैं, सूअर का मांस खाते हैं, अपने को पढ़ा लिखा कहते हैं, लेकिन उनको तो इतना भी ज्ञान नहीं कि धर्म बदलने से खून नहीं बदलता। हम जाट हैं, हम हिन्दू-मुसलमान-सिक्ख-ईसाई सभी हैं।”
इस पर पंजाब की मुस्लिम जनता जिन्ना के ऐसे पीछे पड़ी कि जिन्ना साहब रातों-रात लाहौर छोड़ गये और जब तक चौधरी साहब जीवित रहे (9 जनवरी 1945 तक), कभी लौटकर पंजाब व लाहौर नहीं आये। (इसी प्रकार सन् 1944 में काश्मीर में शेख अब्दुल्ला ने जिन्ना साहब को सोपुर कस्बे में जूतों की माला डलवा दी थी जिसके बाद जिन्ना साहब कभी भी अपने जीते जी कश्मीर नहीं आये और बम्बई में जाकर बयान दिया कि कश्मीर तो एक दिन सेब की तरह टूटकर उनकी गोद में गिर जायेगा। अब्दुल्ला खानदान हमेशा ही पाकिस्तान विरोधी रहा है।)

Stagnation of creativity


पंडित नेहरू की पहली कैबिनेट में अनेक लोगों ने शामिल होने से मना कर दिया था. कहा, वे बाहर रहकर पार्टी बनाने, समाजसेवा करने जैसा काम करेंगे. एक से एक योग्य, त्यागी कद्दावर और चरित्रवान थे. ऐसे लोग सिर्फ कांग्रेस में ही नहीं. कम्युनिस्टों में, समाजवादियों में, आरएसएस में, जो गुमनाम रह कर अपने दल के सिद्धांत, आदर्श और मूल्यों के लिए लोगों को तैयार करते रहे. आज भारत में यह प्रक्रिया ही बंद है.
(घिर गया है देश!- बाजार, समुद्र, आकाश और धरती के मोरचों पर।। हरिवंश ।।)
Source: http://webcache.googleusercontent.com/search?q=cache:http://jaydeepchayanika.blogspot.com/2013/04/blog-post_27.html

Delhi:Length and Breath


दिल्ली की एक किनारे से दूसरे किनारे तक की लंबाई 51.9 किलोमीटर है। चौड़ाई 48.48 किलोमीटर है।

Bade Ghulam Ali: Hindi Film (बड़े गुलाम अली-हिंदी फ़िल्म)


बड़े गुलाम अली फ़िल्मों में गाना पसंद नहीं करते थे। जब के. आसिफ़ ने उनसे अपनी फ़िल्म (मुग़ले-आज़म) में गाना गाने के अनुरोध किया तो उन्होंने इस काम से बचने के लिए यह कहा कि वे बहुत ऊँची फ़ीस लेते हैं। कें. आसिफ़ ने उनसे फ़ीस के बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब में पाँच हज़ार बताया। यह सुनकर के. आसिफ़ ने उन्हें पंद्रह हजा़र देने की बात कह दी। अब बड़े गुलाम अली के पास कोई उपाय नहीं बचा था। के. आसिफ़ पहले टेलर का काम करते थे और उन्होंने उस वक्‍त संघर्षरत नौशाद को भविष्य में अपनी फ़िल्म का संगीतकार बनाने का वादा भी किया था। इसे कहते हैं आत्मविश्‍वास। 

Calling for the intellectuals-Agehya बौद्धिक बुलाए गए / अज्ञेय



बौद्धिक बुलाए गए / अज्ञेय

हमें
कोई नहीं पहचानता था।
हमारे चेहरों पर श्रद्धा थी।
हम सब को भीतर बुला लिया गया।
हमारे चेहरों पर श्रद्धा थी
हम सब को भीतर बुला लिया गया।
उस के चेहरे पर कुछ नहीं था।
उस ने हम सब पर एक नज़र डाली।
हमारे चेहरों पर कुछ नहीं था।
उस ने इशारे से कहा इन सब के चेहरे
उतार लो।
हमारे चेहरे उतार लिये गये।
उस ने इशारे से कहा
इन सब को सम्मान बाँटो :
हम सब को सिरोपे दिये गये
जिन के नीचे नये
चेहरे भी टँके थे
उस ने नमस्कार का इशारा किया
हम विदा कर के
बाहर निकाल दिये गये
बाहर हमें सब पहचानते हैं :
जानते हैं हमारे चेहरों पर नये चेहरे हैं।
जिन पर श्रद्धा थी
वे चेहरे भीतर
उतार लिये गये थे : सुना है
उन का निर्यात होगा।
विदेशों में श्रद्धावान् चेहरों की
बड़ी माँग है।
वहाँ पिछले तीन सौ बरस से
उन की पैदावार बन्द है।
और निर्यात बढ़ता है
तो हमारी प्रतिष्ठा बढ़ती है।
एक दफा डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने दिलचस्प प्रसंग सुनाया। मैं उनकी विद्वत्ता के बाद साफबयानी का भी कायल हुआ। उन्होंने बताया कि इमरजेंसी में बौद्धिक समुदाय में व्याप्त रोष की खुफिया खबरों से इंदिरा गांधी बेचैन थीं। प्रगतिशील लेखक संघ (तब एक ही संघ था) लेखकों से इमरजेंसी का समर्थन जुटा रहा था। त्रिपाठी जी प्रलेस की दिल्ली इकाई के महासचिव के नाते तीन अन्य लोगों के साथ अज्ञेय का समर्थन हासिल करने उनके घर गए। वे अज्ञेय को प्रधानमंत्री के घर बुलाई गई बौद्धिकों की एक बैठक में भी ले जाना चाहते थे। त्रिपाठी जी कहते हैं, अज्ञेय न सिर्फ बिफर गए बल्कि अपनी सहज शालीन आवभगत भुला कर उन्हें उलटे पांव चलता कर दिया। संभवत: इसी प्रसंग में सितंबर 1976 में अज्ञेय ने ‘बौद्धिक बुलाए गए’ कविता लिखी। उसमें एक तानाशाह ‘श्रद्धा’ प्रकट करने आए बुद्धिजीवियों को ‘सम्मान’ में सिरोपे प्रदान कर उनके चेहरे उतार लेता है और नए चेहरे देता है।
Source: http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/36052-2013-01-06-08-35-05

Communist support for creation of Pakistan


मोहित सेन बहुत आश्चर्य और दु:ख के साथ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की तत्कालीन पाकिस्तान-समर्थक नीतियों की भर्त्सना भी करते हैं। धर्म के आधार पर देश के राष्ट्रीय-विभाजन का समर्थन मार्क्‍सवादी सिध्दान्तों के प्रतिकूल तो था ही, वह उन मुस्लिम राष्ट्रीय भावनाओं को भी गहरी ठेस पहुँचाता था, जो आज तक काँग्रेस और अन्य प्रगतिशील शक्तियों के साथ मिल कर मुस्लिम लीग की अलगाववादी नीतियों का विरोध करते आ रहे थे।
मालूम नहीं, अपने को सेक्यूलर・की दुहाई देने वाली दोनो कम्युनिस्ट पार्टियां आज अपने विगत इतिहास के इस अंधेरे अध्याय के बारे क्या सोचती हैं, किन्तु जो बात निश्चित रूप से कही जा सकती है, वह यह कि आज तक वे अपने अतीत की इन अक्षम्य, देशद्रोही नीतियों का आकलन करने से कतराती हैं।
आश्चर्य नहीं, कि अपनी पार्टी के इतिहास को झेलना पार्टी के लिए कितना यातनादायी रहा होगा, उसे लिखकर दर्ज करना तो बहुत दूर की बात है। मोहित सेन की पुस्तक यदि इतनी असाधारण और विशिष्ट जान पड़ती है, तो इसलिए कि उन्होने बिना किसी कर्कश कटुता के, किन्तु बिना किसी लाग-लपेट के भी अपनी पार्टी के विगत के काले पन्नों को खोलने का दुस्साहस किया है, जिसे यदि कोई और करता, तो मुझे संदेह नहीं, पार्टी उसे साम्राज्यवादी प्रोपेगेण्डा・कह कर अपनी ऑंखों पर पट्टी बाँधे रखना ज्यादा सुविधाजनक समझती; यह वही पार्टी है, जो मार्क्‍स की क्रिटिकल चेतना को बरसों से क्षद्म चेतना・(false consciousness) में परिणत करने के हस्तकौशल में इतना दक्ष हो चुकी है, कि आज स्वयं उसके लिए छद्म को असली・से अलग करना असंभव हो गया है।
-निर्मल वर्मा
Source: http://mediamarch.blogspot.in/2013/07/blog-post_916.html

Communist Party:Nirmal Verma


क्या इससे अधिक कोई आत्मघाती दृष्टि हो सकती थी कि स्वतंत्रता मिलने के वर्षों बाद भारत की कम्युनिस्ट पार्टी एकमात्र ऐसी संस्था थी जो देश की आजादी को ”झूठी” और गांधी और नेहरू जैसे राष्ट्रीय नेताओं को ‘साम्राज्यवादी  साबित करने मे एड़ी चोटी का पसीना एक करती रही! मोहित सेन बहुत पीड़ा से इस बात पर आश्चर्य प्रकट करते हैं, कि पार्टी स्वयं अपने देश के सत्तारूढ़ वर्ग के चरित्र के बारे में बरसों तक कोई स्पष्ट धारणा नहीं बना सकी थी। 
-निर्मल वर्मा 
(मोहित सेन की आत्मकथा पुस्तक ‘एक भारतीय कम्युनिस्ट की जीवनी: एक राह, एक यात्री’ की समीक्षा में )

स्रोत: http://mediamarch.blogspot.in/2013/07/blog-post_916.html

Saturday, August 24, 2013

Bande Matram


इतिहास की तारीख़ में वंदेमातरम्

१८७६ में इस गीत की रचना हुई. बंकिमचंद्र चटर्जी ने इसे लिखा उसके छह साल बाद यानी १८८२ में आनंदमठ प्रकाशित हुई.
१८७६ से १९७६ तक के सौ साल और उसके बाद १२५ साल २००१ मे पूरे हुए.
१८९६ में कोलकाता अधिवेशन में गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने इसे गाया. इस लिहाज़ से १९९६ में इसके १०० साल पूरे हुए.
१९०५ (अथवा १९०६) में सात सितम्बर को बनारस में हुए कॉग्रेस अधिवेशन में इसे टैगोर की भतीजी सरला देवी चौधरानी ने तत्कालीन अध्यक्ष लोकमान्य तिलक के अनुरोध पर गाया. कहा जाता है कि इसी अधिवेशन में कॉग्रेस ने इसे अपना आधिकारिक गीत अंगीकार किया.

Midway:Point of no return


‘बीच का कोई  रास्ता नहीं होता.’

Friday, August 23, 2013

Sardar Patel: Muslims


Sardar Patel said, "you {Muslims) must change your attitude, adapt yourself to the changed condition …don't pretend to say ' Oh, our affection is great for you'. We have seen your affection ….Let us forget the affection. Let us face the realities. Ask yourself whether you really want to stand here and cooperate with us or you want to play disruptive tactics …"
(The Unfinished Agenda edited by Mushirul Hasan, 2001, page 113).
Source: http://www.southasiaanalysis.org/paper767 

सरदार पटेल ने कहा, " आपको (मुसलमानों) निश्चित तौर पर अपना व्यवहार बदलना चाहिए, खुद को बदली हुई परिस्थिति के अनुसार ढालना चाहिए ……इस तरह का दिखावा न करे कि 'अरे आपके लिए तो हमारे दिल में इन्तहा मोहबत है। हमने आपकी मोहबत देख ली है ……चलिए, हम मोहबत भूल जाए। हम हकीक़त का सामना करे । आप अपने से ही सवाल पूछे कि क्या आप सचमुच यहाँ टिके रहना चाहते है और हमारी मदद करना चाहते है या आप विद्वेषकारी हथकंडे अपनाना चाहते हो …"


Thursday, August 22, 2013

Faiz: Mother's cry

F


मशहूर शायर फैज अहमद फैज ने शोकगीत कई लिखे। भाई की मौत पर `नौहा´ हो, `मर्सिया-ए-इमाम´ हो या फिर `सिपाही का मर्सिया´, लेकिन सिपाही का मार्सिया इस बात से पैदा होती है कि यह शोकगीत एक मां को नुक्त:-ए-नज़र से लिखा गया है। पूरा शोकगीत उस मां का हृदयविदारक आर्तनाद है जो अन्याय के खिलाफ लडते हुए शहीद हो गए अपने बेटे की मौत पर विश्वास नहीं कर पा रही है और उससे बार-बार उठ खडे होने का आह्वान कर रही है- 
बैरी बिराजे राज सिंहासन
तुम माटी में लाल
उट्ठो अब माटी से उट्ठो, 
जागो मेरे लाल
हठ न करो माटी से उट्ठो, 
जागो मेरे लाल
अब जागो मेरे लाल

Qurratulain Hyder: Pakistan क़ुर्रतुल ऐन हैदर:पाकिस्तान


सारी दुनिया की तरफ से इस्लाम का ठेका इस वक़्त पाकिस्तान सरकार ने ले रखा है. इस्लाम कभी एक बढती हुई नदी की तरह अनगिनत सहायक नदी - नालों को अपने धारे में समेत कर शानके साथ एक बड़े भारी जल - प्रपात के रूप में बहा था, पर अब वही सिमट - सिमटा कर एक मटियाले नाले में बदला जा रहा है. मज़ा यह है की इस्लाम का नारा लगाने वालों को धर्म दर्शन से कोई मतलब नहीं. उनको सिर्फ इतना मालूऊम है की मुसलमानों ने आठ सौ साल ईसाई स्पेन पर हुकूमत की, एक हज़ार साल हिन्दू भारत पर और चार सौ साल पुर्वी यूरोप पर.
-क़ुर्रतुल ऐन हैदर, पदमश्री और पदमभूषण से सम्मानित उर्दू की विख्यात लेखिका  
स्रोत: http://iamfauziya.blogspot.in/2009/08/underlined-by-me.html

First Press Commission of India



1950 के दशक में पहले प्रेस आयोग ने अपनी सिफ़ारिश में लिखा था, "अख़बारों का आचरण अब न तो मिशन और न ही प्रोफेशन जैसा रह गया है, यह पूरी तरह उद्योग में तब्दील हो चुका है। इसका मालिकाना हक़ अब उन लोगों के हाथों में आ गया है जिन्हें पत्रकारिता का कोई अनुभव नहीं है, यहां तक कि कोई पृष्ठभूमि भी नहीं है। इसलिए उनका आग्रह अब किसी भी तरह की बौद्धिक चीज़ों में नहीं है, बल्कि वो ज़्यादा-से-ज़्यादा मुनाफ़ा बटोरना चाहते हैं।"
(अध्याय-12, पेज 230)

Wednesday, August 21, 2013

Book Review: Jharkhand-झारखंड आंदोलन का दस्तावेज: शोषण, संघर्ष और शहादत



संघर्ष की तपोभूमि है झारखंड, जिसका रक्तस्नात इतिहास जर्मनी के दमनकाल से थोड़ा भी कम नहीं है। यातना की इस गाथा को मानवीय सभ्यता का दुःखद अध्याय इतिहासकारों द्वारा उर्द्धत किया जाता है। यहूदियों के आखेट और संहार पर ट्रम्फ आफ द विल और डाउनफाल जैसी फिल्में भी बनीं और आज भी लगभग 80 साल बाद यूरोपीय यातना शिविर यूरोपी मुल्कों और शेष विश्व के लिए भी जिज्ञासा का विषय है। मगर झारखंड में मूल वाशिंदों के दमन का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा बल्कि उनके शोषण का कोई नामलेवा भी नहीं है। आज एक नहीं कई यूरोपीय यातना की कहानियों से लबालब है इस राज्य का इतिहास।
झारखंड में मूल वाशिंदों की सामूहिक हत्या, उनके दमन और शोषण का आयोजन 1834 से ही चल रहा है। तब से मानवीय त्रासदी का सिलसिला वहाँ गहराता ही चला गया। इसके पहले जब भी आदिवासी भड़के तो उन्हें दबाया जाता रहा। तब आदिवासी महाजनी प्रथा एवं अंग्रेजों के अतिक्रमण के खिलाफ लामबंद होते थे। मगर 19 वी सदी के मध्य से विकास का जो नया स्वरूप उभरा वह आदिवासी विरोधी था। झारखंड में आत्माभिमान और देशज मूल्यों की हिफाजत के लिए जब भी आवाजें उभरीं, उसे बेहद नृंशसता के साथ कुचला गया। 20 वीं सदी के इतिहास के इसी सच को पत्रकार अनुज कुमार सिन्हा ने बेहद संवेदनशीलता के साथ इस किताब में लाने की सफल कोशिश की है।
किताब के शीर्षक से ही यह स्पष्ट है कि शोषण के लिए किये जा रहे संघर्ष का नतीजा है शहादत, जो थमने का नाम नहीं ले रहा। जैसे इस ज़मीन का 20 वी सदी का इतिहास सामूहिक नरमेध का इतिहास है। पुलिस फायरिंग, माफिया-महाजन के शिकार की कहानियाँ, दूसरी आजादी हासिल करने में महिलाओं एवं गैर-आदिवासियों की भूमिका, पुलिसिया जुल्म एवं अपने जज्बा, जोखिम और उसके नतीजे उन तमाम घटनाओं को समेटती हैं जो संविधान की संकल्पनाओं एवं राज-व्यवस्था के प्रावधानों को पंगु एवं असमर्थ साबित करती हैं।
झारखंड आंदोलन का दस्तावेज: शोषण, संघर्ष और शहादत  किताब में लेखक अनुज कुमार सिन्हा सिर्फ तथ्यों को सामने नहीं रखते बल्कि संबंधित तस्वीरें देकर भी उन तथ्यों की पुष्टि करते हैं जिन पर सहज विश्वास नहीं होता। 1948 के खरसवां गोलीकांड में सरकार ने 35 लोगों के मरने की पुष्टि की थी। लेकिन अनुज दस्तावेज जुटाते हैं और यह बताते हैं कि इस गोलीकांड में 2000 लोग मारे गये थे। इसी आधार पर अनुज इसे एक और जालियावाला बाग कांड (पृष्ठ 55) बताते हैं। गोलीकांडों की शिकार लोगों की अलभ्य तस्वीरें और समाचारों की कतरनें झारखंड के खून से सने इतिहास के प्रमाण हैं। किताब पढ़कर ऐसा लगता है कि देश में नस्ली सफाई का दौर चल रहा है जैसा यूरोप में नोरा आदिवासियों के साथ हो रहा है। अनुज की यह किताब इस बात का इशारा है कि अपने संसाधनों के लिए संघर्षरत आदिवासियों की शहादत की कोई कीमत नहीं है। राज्य बनने के बाद अचानक जो चेहरे दिखने लगे, वे बेचैन करनेवाले थे। ‘जान देंगे जमीन नहीं’ की आवाज बुलंद करते आंदोलनरत आदिवासियों को बेदर्दी से मारा जाता है। सिमको कांड से शुरू हुई गोलीकांडों का सिलसिला जारी है। अन्य कई तरीकों से आदिवासियों का उन्मूलन चल रहा है। अभी हाल ही में राज्य की राजधानी के नगड़ी इलाके में पुलिसिया दमन इस बात का प्रमाण है। झारखंड में आदिवासियों की सरकार होने के बावजूद शोषण जारी है, संघर्ष जारी है तो शहादत भी जारी है।
समाज और सत्ता से जुड़े लोगों को यह गहराई से सोचना होगा कि झारखंड का रक्तरंजित इतिहास मानवीय इतिहास की दर्दनाक दास्तां है। लेखक का मानना है कि राज्य बनने के बाद वे सवाल और मुद्दे जस के तस हैं जो आदिवासी स्मिता और देशज मूल्यों से जुड़े हैं। ब्राजील में झारखंड की तर्ज पर बीती सदी 30 लाख आदिवासी मारे गये। झारखंड में 1834 से लेकर अभी तक कितने आदिवासी सरकार के हाथों मारे गए, इसका अनुमान किसी को भी नहीं है।
अनुज की यह किताब अपने आप में एक ऐसा दस्तावेज है जो आदिवासी भारत के इतिहास को नयी दिशा और आयाम देती है।

(शोषण, संघर्ष और शहादत, अनुज कुमार सिन्हा, प्रभात प्रकाशन, आसफ अली रोड, नयी दिल्ली, मूल्य: 200 रूपए) 



                            {कादम्बिनी के अगस्त, 2013 में प्रकाशित पुस्तक समीक्षा}

Tuesday, August 20, 2013

India Airforce Response to Chinese Intrusions_चीनी चुनौती को भारतीय हवाई जवाब







चीनी चुनौती के भारतीय हवाई जवाब ने किया सबको लाजवाब

भारतीय वायुसेना ने पहली बार लद्दाख के पांच हज़ार पैंसठ मीटर की ऊंचाई वाले दौलत बेग़ ओल्डी वायु पट्टी (एयरबेस) पर सी-130जे सुपर हरक्यूलिस विमान 'गजराज' को उतारा। गाज़ियाबाद से उड़ान भरने वाला वायुसेना का दुनिया के सबसे बड़ा फौजी मालवाहक विमान क़रीब सात बज़े दुनिया के सबसे ऊंचे रनवे यानि लद्दाख में दौलत बेग़ ओल्डी वायु पट्टी पर उतरा। पहली बार गजराज की वायु पट्टी पर उतरने की तस्वीरें और वीडियो मीडिया के लिए जारी किए गए।
16,614 फीट की ऊंचाई पर स्थित दौलत बेग ओल्डी इलाके में भारतीय वायुसेना के सबसे बड़े विमान हरक्यूलिस उतारना विश्व रिकार्ड के समान है। उल्लेखनीय है कि भारत ने पहली बार चीनी सीमा के पास हरक्यूलिस विमान को उतारा है। सामरिक दृष्टि से भारत के लिए यह अहम सफलता है क्योंकि दौलत बेग पट्टी की ऊंचाई काफी ज्यादा है।
करीब 43 साल पहले भारत ने 1962 की चीन की लड़ाई और 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के समय यहां पर अपने विमान उतारे थे। उसके बाद बंद कर दी गई वायु पट्टी के भारत के इस्तेमाल पर चीन को हमेशा ऐतराज़ रहा है। भारतीय वायुसेना ने 2008 में AN-32 विमान उतारकर इसे फिर से चालू किया था।
यह चीन से लगने वाली वायु पट्टी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के क़रीब है।
इस विमान की खासियत है कि इसे उतरने के लिए अधिक रनवे की जरूरत नहीं होती और यह खराब मौसम में उड़ान भरने के साथ उतर सकता है। ऐसे पहाड़ी इलाके में फौजी मालवाहक विमान का उतरना काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे वायुसेना के सैनिक टकराव की स्थिति में थलसेना की मदद के लिए एयरब्रिज बनाने की क्षमता सिद्ध हो गयी है ।
गौरतलब है कि चीन ने पिछले दिनों इसी इलाके में कई बार सीमा का उल्लंघन करने के कारण दोनों देशों के बीच तल्खी बढ़ गई थी. इस साल 15 अप्रैल को चीनी सेना के करीब 50 वाहन लैस होकर डीबीओ सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार भारतीय सीमा के 19 किलोमीटर अंदर तक घुस आई थी और पांच टेंट गाड़ दिए थे। चीन ने हाल ही में देपसांग घाटी में घुसपैठ की थी जिसके बाद से सीमा पर तनाव का माहौल बन गया था।
चीनी घुसपैठ की इन घटनाओं के बाद से भारत ने सीमा पर विशेष सतर्कता बढ़ा दी है।
इस कदम से भारत ने चीन को स्पष्ट कर दिया है वह किसी भी तरह के चीनी दुस्साहस का करारा जवाब दे सकता है। गौरतलब है कि 1962 में चीन के हमले के समय भारत ने अपनी वायुसेना का इस्तेमाल नहीं किया था, जिसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कड़ी आलोचना भी हुई।
भारतीय वायु सेना ने अपनी विशेष अभियानों की क्षमता में इजाफा करने के लिए 2011 में अमेरिका निर्मित सी-130जे सुपर हरक्‍यूलिस विमान को अपने परिवहन बेड़े में शामिल किया था। भारत ने वर्ष 2008 में अमेरिका से 950 मिलियन डॉलर की कीमत वाले ऐसे छह विमानों की आपूर्ति करने का आदेश दिया था।अमेरिकी विमान निर्माता कंपनी लाकहीड मार्टिन ने भारत के लिए सी-130-जे सुपर हरक्यूलिस विमान बनाए है । इस श्रेणी के छह विमानों को पहले ही राजधानी दिल्ली के निकट हिंडन वायु ठिकाने पर तैनात किया जा चुका है और इनकी जिम्मेदारी भारतीय वायु सेना के नव गठित 77 स्क्वाड्रन पर है । 
अब तक का सबसे आधुनिक विमान कहा जाने वाला यह विमान इंफ्रारेड डिटेक्शन सेट [आईडीएस] से लैस होने के चलते कम ऊंचाई पर उड़ने के साथ अंधेरे में भी नीचे उतर सकता है, हवा से सामान गिरा सकता है  । प्रतिकूल वातावरण में उड़ान भरने के दौरान भी सुरक्षित रहने के लिए इसमें स्वसुरक्षा तंत्र लगाया गया है। लंबे समय तक अभियानों को अंजाम देने की क्षमता हासिल करने के लिए इसमें उड़ान के दौरान ही ईधन भरने की क्षमता के लिए भी उपकरण हैं। गौरतलब है कि भारत ने ऐसे छह विमानों का आर्डर दिया था। भारतीय वायु सेना को दिए गए सी-130-जे सुपर हरक्यूलिस अमेरिकी वायु सेना के पास मौजूद सी-130-जे का ही दूसरा प्रकार हैं। भारत सी-130-जे का बेड़ा रखने वाले अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क, इटली, नार्वे और ब्रिटेन के बाद आठवा देश है । इन विमानों में से तीन ने इस बार गणतंत्र दिवस पर आसमान में उड़ान भी भरी थी । 

Victory


                                जिस अखाड़े में जीत नहीं सकते उसमें उतरने का क्या फायदा...

Sunday, August 18, 2013

life:rail


जिंदगी की रेलगाड़ी में किसी का स्टेशन पहले आता है और किसी का बाद में । इसका मतलब यह कतई नहीं है कि पहले अपनी मंजिल पर उतरने वाला जल्दी पहुच गया और बाद वाला देर से। जिंदगी की रेल में मंजिल सबकी आती है बस करना है तो अपनी बारी का इंतज़ार ।

Lotus


कमल कीचड़ में उगता है पर खिलता है सूर्य के संस्पर्श से.........

Time: Meaning of Life



समय निकलने के बाद सम्बन्ध अपना अर्थ खो देते है । सो समय रहते जो जोड़ लो वही सही है, अर्थवान है । नहीं तो, व्यक्ति हो या वस्तु अपना रंग खो कर निरर्थक हो जाती है ।

History: Dr Rajendra Prasad



स्वाधीन भारत की अवधारणा के साथ ही साथ औपनिवेशिक काल में लिखे गए इतिहास में संशोधन के लिए दिवंगत डा. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक समिति बनी थी ।

-विद्यानिवास मिश्र, इतिहास शिक्षा (कितने मोरचे)

Secularism: Vidya Niwas mishra



आज सत्ता भी सेकुलरवाद पर एकांतिक अधिकार जमाए हुए है। जो राजसत्ता में नहीं है उसे सेकुलर कहलाने के लिए लाइसेंस लेने की जरूरत है। जिसको वह लाइसेंस नहीं हासिल वह गैर-सेकुलर है और मनुष्यता की सूची से खारिज है। हां, उसे यह लाइसेंस तत्काल मिल जाएगा, यदि वह अपने को हिंदू कहना छोड़ दे अथवा वह प्रकट रूप में हिंदू शब्द से ज्ञापित होने वाल सांस्कृतिक प्रक्रिया को अपना कहना छोड़ दे । हिंदू नाम से जाने जानेवाले किसी भी विश्वास या मत के अलावा छूट है कि गैर हिंदू नाम के नाम से जाने जानेवाले किसी भी मत को कितनी भी कट्टरता से माने, वह पूरी तरह सेकुलर है । कोई मत न माने, केवल गैर हिंदू मत माननेवालों को देवता माने, वह शत प्रतिशत सेकुलर है ।

-विद्यानिवास मिश्र, होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन ! (कितने मोरचे)

Friday, August 16, 2013

Ghalib: Heart



लेता नहीं मेरे दिल ए आवारा की खबर
अब तक वो जानता है कि मेरे पास है
 -गालिब

House of Commons: Indian Independence 1947

ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स में पौने चार घंटे की बहस के बाद भारतीय स्वतंत्रता विधेयक को मंजूरी दे दी. बहस के दौरान साफ तौर पर कहा गया कि ब्रिटेन रियासतों को अलग से मान्यता नहीं देगा. प्रधानमंत्री एटली ने भारत के विभाजन पर दुःख जाहिर किया. लाहौर में रेडक्लिफ की अध्यक्षता में सीमा आयोग की बैठक हुई.
(15 जुलाई 1947 की घटनाओं के बारे मे)
 http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2013/08/130801_50days_15july_vs.shtml

Thursday, August 15, 2013

True Colour Prevails

 
उलटबांसी-२

रक्त है तो 'असर' दिखाएगा ही, खून है तो 'जोर' मारेगा ही और नीच है तो 'जात' बताएगा ही, सच है तो 'सामने' आएगा ही…….

President of India: Message to the nation



हमें ऐसा नेतृत्व चाहिए जो देश के प्रति तथा उन मूल्यों के प्रति समर्पित हो, जिन्होंने हमें एक महान सभ्यता बनाया है। हमें ऐसा राज्य चाहिए जो लोगों में यह विश्वास जगा सके कि वह हमारे सामने मौजूद चुनौतियों पर विजय पाने में सक्षम है।
पिछले दिनों आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां हमारे सामने आई हैं। छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा के बर्बर चेहरे ने बहुत से निर्दोष लोगों की जानें लीं। पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाने के भारत के निरंतर प्रयासों के बावजूद सीमा पर तनाव रहा है और नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम का बार-बार उल्लंघन हुआ है, जिससे जीवन की दुखद हानि हुई है। शांति के प्रति हमारी प्रतिबद्धता अविचल है परंतु हमारे धैर्य की भी एक सीमा है। आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने और राष्ट्र की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। मैं निरंतर चौकसी रखने वाले अपने सुरक्षा और सशस्त्र बलों के साहस और शौर्य की सराहना करता हूं और उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, जिन्होंने मातृभूमि की सेवा में सबसे मूल्यवान उपहार, अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान दिया। 
अंत में मैं, महान ग्रंथ भगवद्गीता के एक उद्धरण से अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा, जहां उपदेशक अपने दृष्टिकोण का प्रतिपादन करते हुए कहता है, ‘‘यथेच्छसि तथा कुरु...’’ ‘‘आप जैसा चाहें, वैसा करें, मैं अपने दृष्टिकोण को आप पर थोपना नहीं चाहता। मैंने आपके समक्ष वह रखा है जो मेरे विचार में उचित है। अब यह निर्णय आपके अंत:करण को, आपके विवेक को, आपके मन को लेना है कि उचित क्या है।’’
 - राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी का राष्‍ट्र के नाम संदेश
We need leadership that is committed to the nation and those values that made us a great civilization. We need a state that inspires confidence among people in its ability to surmount challenges before us.
We have seen in the recent past grave challenges to our security, internal as well as external. The barbaric face of Maoist violence in Chhattisgarh led to a loss of many innocent lives. Despite India's consistent efforts to build friendly relations with neighbours, there have been tensions on the border and repeated violations of the Ceasefire on the Line of Control, leading to tragic loss of lives. Our commitment to peace is unfailing but even our patience has limits. All steps necessary to ensure internal security and protect the territorial integrity of the nation will be taken. I applaud the courage and heroism of our security and armed forces who maintain eternal vigilance and pay homage to those who have made the supreme sacrifice of the most precious gift of life in the service of the motherland.
Let me conclude by quoting from the great classic Bhagvad Gita where the Teacher propounds his views and then says, and I quote, “ÿatha icchasi tatha kuru” “even as you choose, so you do. I do not wish to impose my views on you. I have presented to you what I think is right. Now it is for your conscience, for your judgment, for your mind to decide what is right.”
PRESIDENT’S ADDRESS TO THE NATION ON THE EVE OF INDIA’S 67TH INDEPENDENCE DAY

Nirmal Verma: Hindi Literature



विद्यालय और विश्वविद्यालय गम्भीर साहित्य के पाठकों को तैयार करते हैं । लेकिन आज ये संस्थान ऐसे व्याख्याताओं, प्रोफेसरों द्वारा संचालित हैं, जो पश्चगामी और साहित्य की संवेदना से विहीन हैं । ऐसे शिक्षकों से विद्यार्थियों को गम्भीर साहित्य से परिचित करवाने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है ? हिन्दी में कई महान एवं अच्छे लेखक हैं लेकिन उनके पास अपने गम्भीर गद्य तथा पद्यों का समझने के लिए पर्याप्त तथा संवेदनशील पाठकों की कमी है । पुस्तकों का अधिक मूल्य, वितरण, सदस्यों की कमी, पुस्तकालय, सुविधाओं का अभाव भी कुछ कारण है ।
 -निर्मल वर्मा, हिन्दी साहित्य में साहित्य के पाठकों की संख्या में कमी पर(संसार में निर्मल वर्मा संपादक गगन गिल)

Business Newspapers


व्यापार समाचार-पत्रों की आज, देश के आर्थिक विकास में अधिक सुनिश्चित भूमिका है। व्यापार समाचार-पत्रों में प्रकाशित समाचार, भारतीय व्यापारिक समुदाय के रुझानों को प्रभावित कर सकते हैं। उनका, भारत में निवेश करने के, विदेशी निवेशकों के निर्णय पर भी असर पड़ता है। इस संदर्भ में खासकर महत्त्वपूर्ण है क्योंकि बाहर से आने वाले निवेश से देशी उद्योग को पूंजी जुटाने में तथा देश के मौजूदा लेखा घाटे में कमी लाने में मदद मिलती है।

Shankardev:assam




पंद्रहवीं और सोलहवीं सदी के दौरान, असम के संत, विद्वान तथा समाज सुधारक स्वामी श्रीमंत् शंकरदेव के नव-वैष्णव आंदोलन ने जाति बंधनों को तोड़ा तथा एक ऐसे समतावादी सिविल समाज की स्थापना की कोशिश की जिसमें भाईचारे, समानता, मानवीयता तथा लोकतंत्र के मूल्यों को माना जाता हो। शंकर देव का मानना था कि, ‘‘इसलिए, सभी को और हर वस्तु को, ऐसा मानो जैसे वह स्वयं ईश्वर हो। ब्राह्मण अथवा चांडाल की जाति जानने की कोशिश मत करो।’’ 

Indira goswami:Assam




दिवंगत श्रीमती इन्दिरा गोस्वामी एक सुप्रसिद्ध कहानीकार तथा सफल उपन्यासकार थी, जिन्होंने असम के इतिहास की बड़ी संवेदनशील अवधि में साहसपूर्वक सामाजिक बदलाव की वकालत की थी। उन्हें खासतौर से असम में सशस्त्र उग्रवादियों तथा भारत सरकार के बीच मध्यस्थ के तौर पर उनकी भूमिका के लिए याद रखा जाएगा। उनके सभी कार्यों में ‘मामोनी’ उन्हें इसी नाम से जाना जाता था, ने महिलाओं तथा समाज में वंचितों तथा शोषितों को केंद्र में रखा था। इन समस्याओं के प्रति जागरूकता पैदा करके वे परिवर्तन के बीज बोने में सफल रही।

khudiram bose: midnapore




175 वर्ष पुराना मिदनापुर कॉलेजिएट स्कूल त्याग तथा नि:स्वार्थता की विरासत का प्रतीक है। मिदनापुर कॉलेजिएट स्कूल की स्थापना, 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से केवल 23 वर्ष पूर्व 1834 में हुई थी । 175 वर्ष की अवधि पूर्ण करना किसी भी संस्था के जीवन में एक महत्त्वपूर्ण अवसर होता है। 1905 में लॉर्ड कर्जन के संयुक्त बंगाल के विभाजन के विरुद्ध जन आंदोलन में स्थानीय लोगों, खासकर इस जिले के छात्र समुदाय ने इस विभाजन के विरुद्ध हुए आंदोलन में भाग लिया था । बंगाल के विभाजन के उत्तर में स्वतंत्रता सेनानियों के एक समूह का मानना था कि केवल सशस्त्र क्रांति से ही स्वतंत्रता मिल पाएगी। इस प्रकार सशस्त्र क्रांति का बीजारोपण मेदिनीपुर जिले में हुआ था। खुदीराम बोस तथा हेमचंद्र कानूनगो जैसे इस स्कूल के बहुत से पूर्व विद्यार्थी तथा शिक्षक क्रांतिकारी थे। इन सशस्त्र क्रांतिकारियों ने डगलस, पैडी तथा बर्ज नामक तीन जिलाधीशों की हत्या की। श्री बर्ज की हत्या इस स्कूल के पूर्व विद्यार्थी श्री अनाथबंधु पांजा ने की थी।
इस स्कूल के संस्थापकों ने ऐसे समय में एक अंग्रेजी हाई स्कूल खोलने का निर्णय लिया था जब कि ओरियंटलिस्ट तथा एंग्लिसिस्ट के बीच बेहतर शिक्षा प्रणाली पर गर्मागर्म बहस चल रही थी। उन्होंने कहा कि इस स्कूल को संत (ऋषि) राजनारायण बसु जैसे सुप्रसिद्ध व्यक्ति को प्रधानाध्यापक के रूप में पाने का गौरव हासिल है जिन्हें राष्ट्रीय क्रांति का पितामह कहा जाता है। राजनारायण 1851 से 1866 के बीच इस स्कूल के प्रधानाध्यापक थे।

Netaji Subhas chandra bose




नेताजी राष्ट्रीय आंदोलन के ऐसे महानतम नेताओं में से एक थे, जिन्होंने भारत को उसकी स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए अपने जीवन को समर्पित और बलिदान कर दिया था। भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में नेताजी की भूमिका अनूठी थी। उनके लिए, उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद के खिलाफ भारत की आजादी की लड़ाई एक ऐसे समाज की स्थापना के लिए बड़ी लड़ाई का हिस्सा भी थी जो कि यथासंभव व्यापक तौर पर जनता के विकास का अग्रदूत हो। नेताजी अभी भी सभी भारतीयों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।

Indian Cinema


देश के सभी इलाकों तथा भाषाओं का समावेश करते हुए, एक सशक्त माध्यम के रूप में उभरा भारतीय सिनेमा, आज राष्ट्र-जन की सामाजिक-राजनीतिक आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करता है ।

Wednesday, August 14, 2013

Mother India: Bipin chandra Pal




“Our history is the sacred biography of the Mother. Our philosophies are the revelations of the Mother’s mind. … Our religion is the organized expression of the soul of the Mother. The outsider knows her as India.”
-Bipin Chandra Pal

“Nationalism is not a mere political programme; Nationalism is a religion that has come from God; Nationalism is a creed in which you will have to live. … Have you realised that you are merely the instruments of God, that your bodies are not your own? … If you have realized that, then alone you will be able to restore this great nation.”
-Aurobindo Ghose

Life of Swami vivekananda


स्वामी विवेकानंद के संदेश और उनके उपदेश तब भी प्रासंगिक थे, आज भी प्रासंगिक हैं तथा तब तक प्रासंगिक बने रहेंगे जब तक मानवीय सभ्यता अस्तित्व में रहेगी। बंगाल का महान सपूत और एक महान दूरद्रष्टा स्वामी जी को महान इतिहासकार ए एल बासम ने को एक ऐसा व्यक्ति बताया जो कई सदियों में अवतरित होता है।
यह आश्चर्य की बात है कि छोटे से जीवन में ही स्वामी जी ने उस समाज को रूपांतरित कर दिया जो खुद में भरोसा खो चुका था। उनके दर्शन ने हर किसी को बुरी तरह झकझोर दिया और एक निराश राष्ट्र में विश्वास बहाल कर दिया। ऐसे समय में जब हमारे लोगों का आत्मविश्वास बहुत नीचे था और बहुत से भारतीय अपने आदर्शों और पथप्रदर्शकों के लिए पश्चिम की ओर देखते थे स्वामी विवेकानंद ने उनमें आत्मविश्वास और गर्व की भावना भर दी। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री जवाहरलाल नेहरू के अनुसार, ‘‘भूतकाल में विश्वास तथा भारत के गौरव पर गर्व से युक्त विवेकानंद जीवन की समस्याओं के विषय में अपने नजरएि में आधुनिक थे तथा भारत के भूतकाल और उसके वर्तमान के बीच एक तरह से पुल के समान थे।’

Ramvilas sharma: Hindi speaking state



“अंग्रेजी राज के समय बहुत-सी बातें लोग डर के मारे न कहते थे। कहते थे तो किताब जब्त हो जाती थी। इसलिए इस ढंग से कहते थे कि कानून की पकड़ में न आए। अपेक्षा यह की जा सकती थी कि भारत के स्वाधीन होने पर लोग अंग्रेजी राज का सही रूप लोगों के सामने पेश करेंगे लेकिन प्रयत्न बिल्कुल दूसरे ढंग का हो रहा है। नए सिरे से इतिहास लिखना जरूरी था, जिससे अंगेजी राज का सही रूप लोगों के सामने आए, साथ ही भारत की सांस्कृतिक उपलब्धि का चित्रण भी होना चाहिए था, जिसके आधार पर नए भारत का निर्माण हो सके। लेकिन जो भारत पर विदेशी पूँजी का दबाव बना हुआ है, उसके फलस्वरूप अनेक विद्वान यह बताने लगे हैं कि भारत की ऐतिहासिक विरासत उल्लेखनीय नहीं है। ज्ञान-विज्ञान का प्रकाश अंग्रेजों के आने के साथ फैला।"

-डॉ. रामविलास शर्मा (भारतीय संस्कृति और हिंदी प्रदेश, पृ. 291)

Tuesday, August 13, 2013

Mahabharat:Dharm



धर्मार्थकाममोक्षमुपदेशसमंवितम्
पूर्व वृत्त कथा युक्तमितहास प्रचक्षते      -(महाभारत)
अर्थात धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में मानव सभ्यता एवं मानव व्यवहार का प्रत्येक क्षेत्र समन्वित है। घटनाओं की आवृति मात्र युद्धों तक सीमित रखना इतिहास की एकांगगिकता निर्धारित करना है। इतिहास सम्राटों की गाथा नहीं गाता, वह मनुष्यों को शिक्षा भी देता है।

Monday, August 12, 2013

Press-Emergency:Nirmal Verma



प्रेस के कायरतापूर्ण व्यवहार से मुझे बहुत हैरानी हुई, आघात पहुंचा । हमें जरा भी उम्मीद नहीं थी कि वह ऐसे भीगी बिल्ली बनकर सेंसर व्यवस्था और अन्य अपमानजक शर्तों के समक्ष समर्पण कर देगा ।
-निर्मल वर्मा, आपातकाल के दौरान अपने अनुभव पर (संसार में निर्मल वर्मा संपादक गगन गिल)

Red Bengal and Hindi



अब अगर लाल बंगाल ने कभी बीमारू राज्यों के हिंदी लेखकों को किसी काबिल नहीं समझा तो ऐसे में पुरस्कार देने वाले यूपी से कैसा विरोध ! आखिर इस बात से तो कोई साहित्यिक पत्रिका वाला इंकार नहीं करेगा कि एक तरफ तो दिल्ली सरकार है जिसने पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु से लेकर राजस्थान तक की पत्रिकाओं को गले से लगाया है । वही बंगाली रतौंदी से ग्रसित पश्चिम बंगाल के कामरेड़ो को सीपीआई की हिंदी भाषा में निकलने वाली मुख-पत्रिका से आगे हिंदी की कोई पत्रिका शायद ही नज़र आई ।
मजेदार बात यह है कि हिंदी पट्टी में से निकलने वाली अधिकतर पत्रिकाए 'मार्क्सवाद' की माला जपती है पर उन्हें लाल बंगाल की अपने साथ होने वाली यह नाइंसाफी कभी भी नागवार नहीं लगी । शायद ये पत्रिकाए भी उसी रतौंदी रोग का शिकार लगती हैं । 

Vivekanand: Christian Missionary


भारत में फिरंगी तथा ईसाई धर्म प्रचारक भारत के 'धर्म' को पिछड़ा कह कर अपने 'रिलिजन' एवं 'लैंग्वेज' का प्रचार करने लगे। लोगों को बरगलाकर धर्म-परिवर्तन कराया। इस धर्म परिवर्तन की आंधी को स्वामी विवेकानंद ने झेलकर रोका और कहा कि हमारा धर्म हमारी सभ्यता-संस्कृति दुनिया से पीछे नहीं है ।

हिंदी नवजागरण: प्रश्नकुलताए और समस्याए:  कृष्णदत्त पालीवाल, वागर्थ, अगस्त २०१३

Sunday, August 11, 2013

Maharaja of Bikaner: Ganga Singh


Dynamic, enigmatic and a spirited public figure, Ganga Singh (1880-1943), the twenty-first maharaja of Rajasthan, was one of the last Indian princes to play an important role in the politics of the British Empire. He lent his support to the British Army in both the World Wars by fighting on the Western Front and in Egypt. A soldier in his own right, he commanded his own camel corps, the Ganga Risala, and became the first ever Indian general of the British Indian Army - a contribution that was rewarded by invitations to London for the Imperial War Conference in 1917 and the Paris Peace Conference in 1918, where he signed the iconic Treaty of Versailles.

At home, Ganga Singh built the famous Gang Canal, which transformed Bikaner from a town plagued by famine and poverty to a thriving centre of trade. Against the backdrop of the Home Rule Movement, he managed to persuade the British to include India in the League of Nations - no mean feat, as India was not an independent nation at the time.

The Maharaja of Bikaner, Hugh Purcell, Rupa Publications India (2013)

History-Politics


In politics you can say almost anything about your opponent whereas for history which makes an impact you require accuracy, insight, vision.

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...