Friday, May 30, 2014

Importance of Communication in Democracy (लोकतंत्र में संवाद की महिमा)


बिंब, प्रतीक, चिन्ह!
अगर कोड को कोई डि-कोड ही न कर पाएं तो फिर संवाद कैसा ?
अगर टारगेट ग्रुप तक बात ही न पहुंचे सारी कवायद बेकार।
जनता है, जनार्दन भी बनाती है और जल्लाद की तरह तख्ते पर चढ़ा भी देती है।

Thursday, May 29, 2014

self-almighty (ईश्वर-अस्तित्व)


आप ही बाट, आप ही तराजू और आप ही तोलनहार।
ईश्वर ही डूबाता है, वह ही तैराता है किनारे भी वहीं लगाता है, हमें तो बस हाथ पैर चलाये रखने हैं, जिससे उसे हमारे अस्तित्व का भान रहे 

Wednesday, May 28, 2014

Lost Way (वापस जाने का रास्ता)


अपनी नाराज़गी में 
उसको पीछे न पलटकर 
देखने की ज़िद में 
इतना दूर निकल आया 
अब वापस जाने का रास्ता 
ढूंढ रहा हूँ 

Sunday, May 25, 2014

Media Discourse and common man (मीडिया का विमर्श)



पिछली केंद्र सरकार में पूड़ी-हलवा जीमने वाले चैनल के कर्ता-दर्ता और आम आदमी की माला जपने वाले अब कलम तोड़ कर लिख रहे हैं कि "कांग्रेस को अब भुला दिया जाना चाहिए।"
चुटकी भर नमक की वफादारी तो बनती है पर नहीं इतना सब्र किसे हैं, इस एटीएम के तुरत-फुरत के ज़माने में टाइम खोटी करने को कौन तैयार है ?
सो, इतना भर बचा है महात्मा गांधी के अंतिम आदमी के लिए कि वह आज के मीडिया का विमर्श समझें।  वैसे भी, प्रेस क्लब से पार्लियामेंट की बीच में अंतिम आदमी के लिए जगह बची ही कहाँ है !
"सत्ता के रंग हजार, रंगे हुए हैं ये पत्रकार"

Night of Dreams (रात का असर)





रात का असर था या उसकी घनी यादों का 
आदमी बहका था या नज़र का फेर था 
पीना तो दूर उसने तो छूने से भी तौबा के थी 
फिर कसूर किसका था, कौन बहका था 
अब ऐसे में कौन खुदा, कैसी ख़ुदाई 
कब हुआ था मैं जुदा, वैसी जुदाई 
किसी को भी ना दे 
मेरा मौला !

market and man (बाजार का मानवशास्त्र)



बाजार का मानवशास्त्र

महामानव समझते हैं कि क्या उपयुक्त है और काईयाँ व्यक्ति जानता है कि क्या बिक सकता है !

Saturday, May 24, 2014

Village in mind (स्मृृतियों का गाँव)


न सुबह जंगल में चरने जाती गायों के खुरों की आवाज़ है, न बकरियों के मिमयाने की टेर। न हतई (चौपाल) पर ताश खेलते बूढ़ों के कहकहे हैं, न दूर से मोटर लॉरी की भोंपू की आवाज़। कितना कुछ पीछे छूट गया है स्मृृतियों के गाँव में।
ऐसा गाँव बस मस्तिष्क के मानचित्र पर अंकित है, वह न एम एन श्रीनिवासन से लेकर श्यामाचरण दुबे की समाजशास्त्र की दुनिया में मिलेगा और न आज के गूगल सर्च में.……………… 

Hindu thought (हिंदू विचार)



हिंदू विचार साम्प्रदायिक विचार नहीं है। किसी विशेष जाति या सम्प्रदाय की दूसरी जातियों और सम्प्रदाय से अलग करके हिंदू विचारों का निर्माण नहीं हुआ है। जब यह विचार ईश्वरवादिता से मुक्त है, तो साम्प्रदायिकता से कैसे जकड़े रह सकते हैं।
-रघुपति सहाय फिराक (भूमिका-बज्मे जिन्दगीः रंगे शायरी)

Hindu Culture (फिराक-हिंदू संस्कृति)







साधारण में असाधारण की झलक यही अपनत्व शायद हिंदू संस्कृति का रहस्य है।


-रघुपति सहाय फिराक

next generation (संस्कार)




हम अपने माँ-पिता, नाना-नानी, दादा-दादी की तरह, हम अपनी संतानों को क्या नहीं दे पा रहे हैं या नहीं दे पाएंगे, यह एक, विचारणीय ही नहीं, यक्ष-प्रश्न है ! 

Friday, May 23, 2014

ancient cultural consciousness (समन्वयवादी सांस्कृतिक चेतना)



भारत में आस्था के तीन केन्द्र–बिंदु रहे- एक थी सनातन हिन्दू धर्म की बहुदैवीय आस्तिकता, दूसरी थी शाक्यमुनि गौतम बुद्ध द्वारा प्रचारित आत्मबोध–परक बोधि–दृष्टि और तीसरी थी जिन तीर्थंकरों द्वारा पोषित–प्रसारित प्रज्ञा–दृष्टि।
इन तीनों के समुच्चय से ही बनी प्राचीन भारत की समन्वयवादी सांस्कृतिक चेतना।
http://www.abhivyakti-hindi.org/paryatan/2011/ajanta_alora/ajanta_alora.htm 

Ab-normal ( 'विशेष'-'साधारण')

 
 'विशेष' में कुछ नहीं होता है, 'साधारण' बनकर जीना और रोज़ नए सिरे से लड़ाई के लिए तैयार हो जाना ही मानो नियति हो गयी है, सो एक मोर्चा और सही.…।
अच्छे दिन तो अपने भी आएंगे कभी ना कभी, ऐसा वायदा है जिंदगी का .…।

Memory (स्मृति दंश)



आ गयी भूली-बिसरी याद पुरानी-कुछ अपनी कुछ तुम्हारी ।

Life: truth-lie (जिंदगी: सच-झूठ)





हम रोज चुने हुए सच को, जिंदगी में झूठ करके झटका देते हैं

Wednesday, May 21, 2014

हिंदी-अमिताव कुमार



साहित्यिक हिंदी को सुनना और वो भी जब सामाजिक और राजनीतिक सच्चाई बयां कर रही हो, अतीत के संदेश को प्रेषित करती लेकिन विरोध के साथ, एक ऐसा एहसास है कि आप अकेले नहीं हैं.

-अमिताव कुमार, लेखक

Monday, May 19, 2014

need of langauge (भाषा की कहाँ जरूरत)



भला समझने के लिए भाषा की कहाँ जरूरत होती है ?

Sunday, May 18, 2014

self infliction (ख़ुशफ़हमी-ग़लतफ़हमी)



ख़ुशफ़हमी तो ठीक है पर ग़लतफ़हमी की कीमत चुकानी पड़ती है, फिर चाहे आप आम हो या खास..........

success-सफलता



"सफलता प्राप्त करनी कोई बड़ी बात नहीं है, उसके लिए सजग तैयारी, जी-तोड़ मेहनत और असफलता से सबक सीखने की तैयारी होनी चाहिए."

 फोटो: अक्षय नागदे  

Thursday, May 15, 2014

colour (हर रंग कुछ कहता हैं)


             
 हर रंग कुछ कहता हैं बस आपके पास उसे देखने की आँख होनी चाहिए............

Wednesday, May 14, 2014

Macaulay-indigenous talent (मैकाले-देशी रचनात्मकता)



अंग्रेज़ मैकाले ने देशी रचनात्मकता में भारतीय जनमानस के आत्मविश्वास को अविश्वास में परिवर्तित कर दिया, जिसका भुगतान देश आज तक कर रहा है ।

Tuesday, May 13, 2014

Red tappings (लाल कमली" वालोँ का 'रुदाली गायन)



"लाल कमली" वालोँ का 'रुदाली' गायन शुरू हो गया है, आखिर बरसोँ महफिल सजाने-ज़माने के लिए पैसोँ और वस्तुओं का 'मोल' तो चुकाना तो ही होगा।
फिर 'रोना' तो रूदाली का दूसरा नाम है।
अब लाल चादर में जो गिर जाए वह कम।
दे दाता के नाम, तुझको अल्लाह रक्खे।

Left-over people (वाम-अवाम)




 वाम नहीं, वो अवाम है !

Indian Films-Soft power (भारतीय फिल्म उद्योग-सॉफ्ट पावर)



भारतीय फिल्म उद्योग एक वर्ष में एक दर्जन से ज्यादा भाषाओं में 1000 से अधिक फिल्में बनाता है। भारतीय सिनेमा न केवल देश की बहु-सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करता है बल्कि देश की भाषायी समृद्धि का भी प्रतीक है। यह एक राष्ट्रीय निधि है तथा सच्चे अर्थों में देश की सॉफ्ट पावर है जो अंतरराष्ट्रीय सम्बंध स्थापित करता है और सहजता के साथ विश्व को जोड़ता है।
भारतीय सिनेमा थियेटरों, लगभग दो हजार मल्टीप्लेक्सों से सीधे तथा टीवी और इंटरनेट के जरिए देश और विदेश के करोड़ों लोगों से जुड़ा हुआ है। वर्ष 2013 में भारतीय मीडिया और मनोरंजन उद्योग ने वर्ष 2012 के मुकाबले 11.8 प्रतिशत की अधिक विकास दर हासिल की तथा लगभग 92000 करोड़ रुपए का कुल कारोबार किया। इस उद्योग के वर्ष 2018 तक 14.2 प्रतिशत की मिश्रित वार्षिक विकास दर दर्ज करके 1.8 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचने की उम्मीद है।
हमें कहानी कहने वाले कहानीकारों, इन कहानियों को पर्दे पर उतारने वाले कलाकारों, हमारी कथाओं को आकर्षक बनाने वाले विषय सामग्री के रचनाकारों और विषय सामग्री के संपादकों तथा चित्रों के जरिए हमारे अंतरतम् से बात करने वाले चलचित्रकारों की आवश्यकता है। भविष्य की ओर अग्रसर होते हुए, हमें भारतीय सिनेमा की महान विभूतियों—दादा साहेब फाल्के, सत्यजीत राय, ऋत्विक घटक, विमल रॉय, मृणाल सेन, अदूर गोपालकृष्णनन, एम.एस. सथ्यू, गिरीश कसरावल्ली, गुरुदत्त तथा देश के भीतर और विश्व मंच पर अग्रणी रहे अन्य लोगों से प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए।
भारतीय फिल्म उद्योग में देश के विभिन्न हिस्सों के लोग शमिल हैं जो अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं, विभिन्न धर्मों का पालन करते हैं तथा समाज के अनेक वर्गों से संबंध रखते हैं। यह एक ऐसा उद्योग है जिसने बहुत से लोगों को जमीन से आसमान तक पहुंचने के अवसर प्रदान किए हैं। मैं फिल्म उद्योग से आग्रह करता हूं कि वह अपनी उदारता, बहुलवाद और समावेशिता को कायम रखे और उसे मजबूत बनाए तथा उसका पूरे देश में विस्तार करे।
-भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार सहित राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर (विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 03-05-2014)

Monday, May 12, 2014

Banaras (बनारस)





बना (रहे जीवन का) रस 

फोटो: उदय सहाय 

Life beyond calculation (जीवन-गणित का प्रमेय)




जीवन अनंत संभावनाओं का दूसरा नाम है, गणित का प्रमेय नहीं जिसे चौकटों मेँ बाँधा जा सकें।

फोटो: अक्षय नागदे  

Natural talent (नैसर्गिक-प्रतिभा-गुण)

 


हर किसी में 'कुछ' नैसर्गिक होता है, उसे गुण का नाम दे या प्रतिभा । वह बात अलग है कि प्रतिभा उजागर होती है, सही समय-स्थान पर ।

Friday, May 9, 2014

Shaheedi Diwas (शहीदी दिवस, आठ मई)

(The martyrs of historic ‘Hardinge Bomb Case’ - Master Amir Chand, Bhai Bal Mukund, Master Avadh Bihari, and Basant Kumar Biswas)
On December 23, 1912 to mark the entry of the Governor-General of India into the new Capital, an imperial procession was taken out in Delhi, with Lord Hardinge seated on a caparisoned elephant. When the procession was passing through Chandni Chowk, a bomb was thrown on the elephant, killing the mahawat. Lord Hardinge escaped with injuries.

Many persons throughout the country, including Master Amir Chand, a school teacher of Delhi, Bhai Balmukund, Master Awadh Behari, Basant Kumar Biswas, Ganeshilal Khasta, Vishnu Ganesh Pingley, Charan Das, Balraj, Lachmi Narain Sharma and Lala Hanwant Sahey, among many others, were arrested. Sharma and Khasta were taken to Varanasi and sentenced to life imprisonment. Pingley was taken to Lahore and was hanged.

The case against the accused started in the Session Judge’s Court and lasted for about a year. Master Amir Chand, Bhai Balmukund and Master Awadh Behari were sentenced to death and Basant Kumar Biswas, Lala Hanwant Sahey and many other were sentenced to life imprisonment and long prison terms. On appeal by the Government in the High Court the sentence of Basant Kumar Biswas was enhanced to death. Appeal was made in the Privy Council with no result.

Master Amir Chand, Bhai Balmukund and Master Awadh Behari were executed on May 8, 1915 in Delhi Jail and Basant Kumar Biswas was executed the next day on May 9, 1915 in Ambala Central Jail.

In memory of these martyrs, a modest memorial has been raised at the site of “Phansi Ghar” of the Old Delhi, Jail, now in the complex of Maulana Azad Medical College, where homage is paid every year to these sons of Delhi.

Tuesday, May 6, 2014

old days-friends (बीते दिन-पुराने दोस्त)



दिल ढूँढता है, फुरसत के वही बीते हुए दिन और पुराने दोस्त......

Monday, May 5, 2014

love touch (प्यार भरा स्पर्श)




एक प्यार भरा स्पर्श हजार शब्दों से ज्यादा बोलता है।

Sunday, May 4, 2014

Love-inspiration (प्रेम-प्रेरक कारक)




प्रेम, असंभव को प्राप्त करने का सबसे प्रेरक कारक है ....


(चित्र: नल-दमयंती, रवि वर्मा)

Saturday, May 3, 2014

women-agheya (नारी-अज्ञेय)




पढ़-लिख कर नारी बेकार भी नहीं बैठ सकती और उसकी आवश्यकताएं भी कुछ बढ़ जाती हैं। दूसरी ओर आर्थिक स्थितियां लगातार परिवार की आय बढ़ाने का तकाजा करती हैं। और जब शिक्षा के कारण नारी के सामने यह संभावना खुलती है कि आय बढ़ाने में उसकी भी योग हो सकता है तो समाज उसका वैसा विरोध नहीं कर सकता जैसा पहले करता रहा। अब इसे आप चाहें नारी की बढ़ती भूमिका नाम दीजिए, चाहे और कुछ।इसी प्रकार सार्थकता के विचार में एक तरफ यह सोचा जा सकता है कि अगर उद्देश्य परिवार की आय बढ़ाना था तो उसमें नौकरी पेशा स्त्री अंशतः तो सफल होती ही है।
उसका दूसरा पक्ष यह है कि पिता के समान माता का भी लगातार घर से अनुपस्थित रहे तो बच्चों की देखभाल का क्या होता है और उस देखभाल में माता-पिता के स्नेह और उनकी निकटता से उत्पन्न परस्पर विश्वास का भाव का क्या होता है। परिवारों की आय तो बढ़ जाती है, लेकिन बच्चों और माता-पिता के बीच का मनोवैज्ञानिक संबंध शिथिल हो जाता है-बच्चे निरंकुश भी होते हैं, परिवार के प्रति उदासीन भी होते हैं, परिवार से मिलने वाली मूल्य दृष्टि भी खो देते हैं और वर्तमान स्थिति में शिक्षा संस्थाएं मूल्य-बोध में कोई योग नहीं देतीं। ये सब बातें सार्थकता पर प्रश्न-चिन्ह लगाने वाली हैं।

(अज्ञेय पत्रावली, संपादक विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, साहित्य अकादमी)

Thursday, May 1, 2014

Life:Struggle (जीवन:संघर्ष )





जीवन ही संघर्ष है, सो उससे क्या भयभीत होना...............

prostitute (वेश्या-अमृतलाल नागर, सुहाग के नूपुर)



‘‘वेश्या पूरे तौर पर कभी किसी के अधिकार में नहीं आती ! उस पर अधिकार प्राप्त करने की भावना ही मृग-मरीचिका है। उसका आकर्षण अनंत है।’’

राजा के गले की माला कुलीन वरवधुओं के कंठ में ही पड़ती है.....

-अमृतलाल नागर(सुहाग के नूपुर)

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...