सत्ता के नंगेपन ने सचिन को दोराहे पर ला दिया था। यूज करने और यूज होने का विकल्प था तो दूसरी ओर अकेले जूझने का। काला,सफेद रंग चौसर में होता है राजनीति के ग्रे रंग ने उसकी जिंदगी बदरंग कर दी थी। सत्ता के गुबंद में कई राज ममी बन चुके थे,कुछ पैसे की धार और सलवार की कतार में थे। सत्ता की रखवाली कोई ठकुरेती नहीं समय की मार थी।शेर,सियारों का कैदी था तो गीदड़ भगवान महान से माहौल गुंजाएं हुए थे। समय,सीखने से ज्यादा भुलाने का था।
राहुल दिल्ली के आइआइएमसी में पढ़ाई के बीच में ही मुंबई एक चैनल में ब्रेक मिलने की वजह से यमुना की बजाया समुंदर किनारे पहुंच गया । करीब साल भर चैनल में रात की शिफ्ट में काम करने के बाद उसका खुद के बारे में मानना था कि वह पहले से ज्यादा काला हो गया था । पर यह चमड़ी से ज्यादा मन का मैल था जो कि चैनल में रात की शिफ्ट की देन चैनल था।
उसकी यूनिट से लेकर कैन्टीन का किशोर तक दोनों के दिल में उठ रही प्यार की लहरों के शोर से वाकिफ थे । उनके कदमों की आहट से संगी साथी उनके मिलने का अंदाजा लगा लेते थे तो लंबे समय तक न दिखने पर अक्सर कैन्टीन में मिलने वाली लखनऊ की सपना उसे नजमा के रात की शिफ्ट में न होने की बात बता देती थी।
मजेदार बात यह थी कि यह ब्रेकिंग स्टोरी लाने वाली नजमा दीन के नाम हरदम दान करती थी । सिनेमा की बेपर्दा हकीकत को पूरे से बयान करने वाली पटना के नामचीन डॉक्टर की यह खुद्दार लड़की अपने निकाह के इकरारनामे को ठुकराते हुए ठाकरे की मुबंई में आबाद थी । इस ब्रेकिंग स्टोरी पर काम करते हुए दोनों की मुलाकात की बात चैनल में आम हो गई थी ।
उसने गोरे, सुदंर स्क्रीन पर चमकने वाले चेहरों को एडिट रूम में चैनल हैड के साथ अंधेरे में जाते देखा, टीआरपी की दौड़ में अंधे आउटपुट इंचार्ज को मुंबादेवी के बाबाजी और कामतीपुरा की बाईजी के आगे झुकते देखा तो सेकुलरवाद की वजह से मुंबई के गली चौराहों पर फल बेचने के धंधे पर बांग्लादेशियों के कब्जे की स्टोरी को ड्रॉप होते हुए देखा था ।
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