Friday, April 15, 2016

Ram_Kubernath Rai राम-कुबेरनाथ राय



'मानस' की मूल थीसिस 'नाद' है एक बिन्दु का। वह बिन्दु है 'राम'। रामत्व की अभियक्ति और उसके माध्यम से व्यक्ति-व्यक्ति को शीलाचार और भक्ति की प्रशिक्षा-यही है 'मानस' का मूल उद्देश्य।

-कुबेरनाथ राय, हिन्दी के लब्ध-प्रतिष्ठित ललित निबंधकार 

फोटो: दक्षिण भारत के हिरेमगलूर (चिकमंगलूर) स्थित श्री राम के प्राचीनतम मंदिर की मूर्ति

Thursday, April 7, 2016

क्या है, तेरा नाम_what is your name! (geet)




क्या है, तेरा नाम
न मैंने जाना, न तूने माना
प्यार का था, कैसा फसाना
क्या है...

न मिले तो थे कितने अकेले
मिलकर भी कहाँ हो पाएँ दुकेले
फिर भी कहाँ हो पाया साथ निभाना
क्या है...

अब मिलने की आस, मर गयी है
सूखे पौधे की प्यास, खत्म हो गयी है
दोनों का अहसास, अब है बेगाना
क्या है...

अब जुदा होकर भी जब मिलते हैं
एक थमा वक्त और जुदाई मिलते हैं
हकीकत न होकर, हो कोई फसाना
क्या है...


Friday, April 1, 2016

तुम हौले-हौले मरने लगते हो (पाब्लो नेरुदा)_"You start dying slowly" - By Pablo Neruda




तुम हौले-हौले मरने लगते हो।
अगर तुम सफर पर नहीं निकलते हो,
अगर तुम पढ़ते नहीं हो,
अगर तुम जिंदगी की आवाज़ को अनसुना करते हो,
अगर तुम अपने से ही बेज़ार हो
तुम हौले-हौले मरने लगते हो।


जब तुम अपने आत्म-सम्मान को मार देते हो,
जब तुम दूसरों की मदद को भी दरकिनार कर देते हो। 
तुम हौले-हौले मरने लगते हो।


अगर तुम अपनी आदतों के गुलाम हो जाते हो,
रोज़ जिंदगी में एक ही रास्ते पर चलते हो...
अगर तुम अपने रोज़मर्रा के ढर्रे पर कायम रहते हो,
अगर तुम इंद्रधनुषी रंग से बेखबर हो
या तुम अपने से अनजान लोगों से बतियाते नहीं हो।
तुम हौले-हौले मरने लगते हो।


अगर तुम गर्मजोशी को दरकिनार करते हो
और उसकी भावनाओं की अनदेखी करते हो;
जो तुम्हारी आँखों की चमक को दमका देती है
और तुम्हारे दिल की धड़कनों को बढ़ा देती हैं।
तुम हौले-हौले मरने लगते हो।


जब तुम अपने काम या अपने प्यार से बेजार होकर भी अपनी जिंदगी को नहीं बदलते हो,
अगर तुम अनिश्चितता से सुरक्षा के डर के मारे खतरे नहीं उठाते हो,
अगर तुम अपने सपने को साकार करने की कोशिश नहीं करते हो,
अगर तुम जिंदगी में एक बार भी
फर्राटा दौड़ने की कोशिश नहीं करते हो,

तुम मरने लगते हो
हौले-हौले
सो हम जिये और जिंदगी का आनंद लें...

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