Saturday, October 31, 2020

Maker of Indian Administrative System in India_प्रशासनिक व्यवस्था के प्रणेता सरदार पटेल


 


सरदार वल्लभभाई पटेल की अगस्त 1947 में स्वतंत्र हुए भारतीय संघ के एकीकरण में निभाई भूमिका तो सर्वज्ञात है। परंतु यह बात शायद कम लोग है जानते है कि सरदार पटेल ही अंग्रेजी राज की 'स्टील फ्रेम' कही जाने वाली इंडियन सिविल सर्विस की निरंतरता को कायम रखने वाले निर्णायक व्यक्ति थे। उल्लेखनीय है कि आधुनिक भारत ने अंग्रेजों की औपनिवेशिक विरासत के रूप में नगर उन्मुख विकास, केंद्रीकृत योजना और राज के 'स्टील फ्रेम' यानि सिविल सेवा के स्वरूप को को बनाए रखा।


अनुभव के आधार पर पटेल ने दो स्तरों पर काम करने का निर्णय लिया। पहला, इंडियन सिविल सर्विस (आईसीएस) के भारतीय सदस्यों का विश्वास जीतना और दूसरा, आईसीएस के उत्तराधिकारी के रूप में नई सेवा के निर्माण का आदेश देना-भारतीय प्रशासनिक सेवा। दोनों के दो भिन्न उपयोग थे, आईसीएस का काम था-उत्तराधिकारियों (कांग्रेस) की ओर सत्ता का हस्तांतरण लागू करना और भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) का काम था-स्वतंत्रता के बाद, प्रशासनिक एकता के जरिए इतने विशाल देश को जोड़ कर रखना।

सरदार पटेल ने अंतरिम सरकार के अपने पूर्ववर्ती अनुभवों को स्मरण रखते हुए 10 अक्तूबर 1949 को भारतीय संविधान सभा की बहस में कहा, 'मैं इस सभा के रिकार्ड के लिए यह कहना चाहता हूं कि यदि गत दो या तीन वर्षों में सिविल सेवाओं के अधिकारियों ने देशभक्ति की भावना से और निष्ठा से काम नहीं किया होता तो यह संघ समाप्त हो गया होता। आप सभी प्रान्तों के प्रीमियरों से पूछिए। क्या कोई भी प्रीमियर सिविल सेवा अधिकारियों के बिना काम करने को तैयार है? वह तत्काल त्यागपत्र दे देगा। उसका गुजारा नहीं है। हमारे पास सिविल सेवा के बचे हुए कुछ ही अधिकारी थे। हमने उन थोड़े से व्यक्तियों के साथ बहुत कठिन से कार्य किया है।'

उल्लेखनीय है कि सरदार पटेल ने प्रशासन की स्थिरता, उसे पुनः सबल बनाने का कार्य तथा सिविल सेवाओं के मनोबल को ऊंचा रखने की दृष्टि से महत्वपूर्ण कदम उठाएं। सरदार पटेल बिना देरी किए शीघ्रता से देश के केंद्रीय प्रशासनिक ढांचे को मजबूत बनाने के काम में जुट गए। 21 अप्रैल 1947 को दिल्ली के मेटकाफ हाउस में, जब देश में सत्ता का हस्तांतरण तकरीबन चार महीने दूर था और अभी इस विषय पर कोई निर्णय नहीं हुआ था, उस समय सरदार पटेल ने अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा प्रशिक्षण स्कूल के पहले परिवीक्षार्थियों के समूह को संबोधित किया। सरदार पटेल ने अपने संबोधन में कहा, ‘आप भारतीय सेवा के अग्रणी हैं और इस सेवा का भविष्य आपके कार्यों, आपके चरित्र और क्षमताओं सहित आपकी सेवा भावना के आधार से रखी नींव और स्थापित परंपराओं पर निर्भर करेगा।’

दिल्ली की यमुना नदी के किनारे बने इस स्कूल में प्रशिक्षण लेने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा के चौबीस और भारतीय विदेश सेवा के नौ परिवीक्षकों को पटेल ने स्पष्ट शब्दों में कहा, 'शायद आप पिछली सिविल सेवा, जिसे इंडियन सिविल सर्विस के नाम से जाना जाता है, को लेकर भारत में प्रचलित एक कहावत से परिचित हैं जो न तो भारतीय है, न ही सिविल है और उसमें सेवा की भावना का भी अभाव है। सही मायने में, यह भारतीय नहीं है क्योंकि भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी अधिकतर अंग्रेजीदां हैं, उनका प्रशिक्षण विदेशी जमीन पर हुआ था और उन्हें विदेशी आकाओं की चाकरी करनी थी। इस कारण प्रभावी रूप से यह पूरी सेवा, भारतीय न होने, न ही नागरिकों के प्रति शिष्ट होने और न ही सेवा भावना से ओतप्रोत होने के लिए जानी जाती थी। फिर भी इसकी पहचान भारतीय सिविल सेवा के रूप में होती थी। अब यह बात बदलने जा रही है।'

भारतीय प्रशासनिक सेवा में भर्ती के लिए पहली प्रतियोगी परीक्षा जुलाई 1947 में आयोजित हुई। इससे पूर्व इंडियन सिविल सर्विस के लिए चयनित लेकिन वास्तव में उस सेवा में नियुक्त नहीं किए गए व्यक्तियों को भी भारतीय प्रशासनिक सेवा में सम्मिलित कर दिया गया।

यह सरदार पटेल की पहल का ही परिणाम था कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने 1 अक्तूबर, 1947 को प्रशासनिक तंत्र का भारतीय नामकरण करते हुए अंग्रेजों की इंडियन सिविल सर्विस और इंडियन पुलिस को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आइपीएस) के रूप में नामित करने की सार्वजनिक घोषणा की। 

दूरदर्शी पटेल को स्पष्ट था कि एक नव-स्वतंत्र राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधे रखने और किसी भी प्रकार के विखंडन को थामने के लिए एक शक्तिशाली अखिल भारतीय सिविल सेवा का होना महत्वपूर्ण है। उन्होंने इसी बात को तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू को 27 अप्रैल 1948 को भेजे पत्र में रेखांकित करते हुए लिखा, 'मेरे लिए इस बात पर जोर देना शायद ही जरूरी हो कि कार्यक्षम, अनुशासनबद्व तथा संतुष्ट अधिकारी, जिन्हें अपने परिश्रमपूर्ण और प्रामाणिक कार्य के फलस्वरूप उन्नति का आश्वासन प्राप्त है-लोकतांत्रिक शासन-पद्धति में स्थिर शासन के लिए निरंकुश शासन की अपेक्षा अधिक अनिवार्य है।'

जब तक वर्तमान भारत और उसकी प्रशासनिक व्यवस्था जीवित है, सरदार पटेल का नाम वर्तमान भारत के ऐसे राष्ट्र निर्माता के रूप में सदा स्मरण किया जाता रहेगा, जिन्होंने सभी देशी रियासतों का एक भारतीय संघ और उसके राजकाज को कायम रखने के लिए भारतीय सिविल सेवा की व्यवस्था को बनाया। उनके ये कार्य हमारे देश के एकीकरण और उसके तंत्र को अक्षुण्ण रखने की दिशा में स्थायी योगदान थे। इस विषय में उनके कार्यों को हम कभी विस्मरण नहीं कर सकते। जब तक भारत जीवित है, वर्तमान भारत के निर्माता के रूप में उनका नाम सदा स्मरणीय रहेगा।


Formation of Nagpur All India Radio Advisory Committee_01111950_AIR_आल इंडिया रेडियो_नागपुर केन्द्र_सलाहकार समिति


 


आज का दिन_1 नवंबर 1950


केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने आज के दिन ही वर्ष 1950 में आल इंडिया रेडियो के नागपुर केन्द्र की सलाहकार समिति का गठन किया था। इस समिति में कर्मवीर के संपादक माखनलाल चतुर्वेदी, जबलपुर की बेहरबाग की श्रीमती उषा देवी मित्रा, नागपुर स्थित नागपुर विश्ववि़द्यालय के उपकुलपति श्री कुंजीलाल दुबे, जबलपुर के राबर्टसन काॅलेज के प्रोफेसर श्री रामेश्वर शुक्ल 'अंचल', अमरावती के अमरावती म्युनिस्पिल बोर्ड के अध्यक्ष, श्री वीर वामनराव जोशी, नागपुर के धंतोली से निकलने वाले समाचार पत्र ‘भवितव्य’ के संपादक श्री पी. वाई. देशपांडे, अमरावती के सांसद डॉक्टर पंजाबराव देशमुख और नागपुर के ‘तरूण भारत’ के संपादक श्री गजानन दिगंबर माडगूळकर सम्मिलित किए गए थे। 


Thursday, October 15, 2020

Check on chinese propoganda_1962_1962_लगाई थी, चीन के दुष्प्रचार पर लगाम




भारत सरकार ने आज के दिन 58 वर्ष पूर्व चीन से संबंधित आठ पुस्तकेंएक पर्चा और एक मानचित्र को गैर कानूनी घोषित कर दिया था।

15 अक्तूबर 1962 को ऐसा निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि ये सभी "भारत की क्षेत्रीय अखंडता और सीमाओं को संदिग्ध बनाते हुए देश की रक्षा और सुरक्षा के हितों के प्रति पूर्वाग्रहपूर्ण होने की संभावना उत्पन्न" करते थे।


इन प्रकाशनों में 'सिंपल ज्योग्राफी ऑफ़ चाइना', 'ग्लिमसेंज ऑफ़ चाइना', 'चीन-भारत सीमा प्रश्न के दस्तावेज', 'वेन सर्फस् स्टूड अप इन तिब्बत', 'विदर इंडिया-चाइन रिलेशन्स?', 'चित्रों में चीन के मुख्य पर्यटन नगर', 'चीन की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की पहली पंचवर्षीय योजना', 'अपसर्ज आफ चाइना', 'विक्टरी फार द फाइव प्रिंसिपल्सऔर शिकागो की कंपनी ए. जे. नैस्ट्रोम के प्रकाशित मानचित्र शामिल थे। तब आपराधिक कानून अधिनियम, 1961 के तहत जारी आदेश के विषय में सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को इन प्रकाशनों के बारे में सूचित किया गया। भारत सरकार ने इन प्रकाशनों की समस्त प्रतियों सहित इनके पुर्नमुद्रितअनुदित और चुनींदा अंशों के दस्तावेजों को भी जब्त कर लिया।


चीन के पेकिंग विदेशी भाषा प्रेस से प्रकाशित 'सिंपल ज्योग्राफी ऑफ़ चाइनापुस्तक में मुद्रित मानचित्रों में पूर्वी लद्दाख के बड़े हिस्से (अक्साई चिन)पंजाब और उत्तर प्रदेश के भागों सहित समूचे नेफा (आज का अरूणाचल प्रदेश) को चीन के हिस्से के रूप में प्रदर्शित किया गया था। वर्ष 1958 में छपी 'ग्लिम्पसेज ऑफ चाइनामेंजम्मू-कश्मीरहिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश के हिस्सों सहित समूचे नेफा को चीन का भाग दिखाया गया था। जबकि वर्ष 1960 में प्रकाशित 'चीन-भारत सीमा के सवाल पर दस्तावेजमें भी इन इलाकों को गलत तरीके से चीन का भाग चित्रित किया गया था। अना लुइस स्ट्राग की लिखी 'वेन सर्फस् स्टूड अप इन तिब्बतपुस्तक में पूर्वी लद्दाख के विशाल भाग सहित पूरे नेफा को चीन का हिस्सा बताया गया था। मैकमोहन लाइन को भारत की वैध अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में संदिग्ध बताने की नीयत से आंकड़ों के साथ हेराफेरी की गई थी। जबकि कोलंबो से छपी 'विदर इंडिया-चाइन रिलेशन्स?' पुस्तक में जम्मू-कश्मीर के चीन अधिकृत भाग को परंपरागत रूप से चीन का हिस्सा और मैकमोहन लाइन को अवैध बताया गया था। 


उल्लेखनीय है कि वर्ष 1914 के शिमला समझौते के तहत तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव-मुख्य वार्ताकार हेनरी मैकमोहन के अंग्रेज भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र और तिब्बत के मध्य तय सीमांकन रेखा ही मैकमोहन रेखा मानी जाती है। इसकी कानूनी वैधता को लेकर चीन को गलत आपत्ति जताता रहा है।  

'चित्रों में चीन के मुख्य पर्यटन नगरऔर 'चीन की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की पहली पंचवर्षीय योजनाशीर्षक वाली पुस्तकों में भी जम्मू-कश्मीर सहित समूचे नेफा को चीन का भाग प्रदर्शित किया गया था। हेवलेट जानसन की 'अपसर्ज आफ चाइना' (1961) के दो मानचित्रों में नेफा और चीन का हिस्सा और जम्मू-कश्मीर को भारत का भाग न बताने के कारण प्रतिबंधित किया गया। 'विक्टरी फार द फाइव प्रिंसिपल्सशीर्षक वाले पर्चे में भी ऐसे ही गलत ढंग से नेफा और जम्मू-कश्मीर को और वर्ल्ड वाॅल मैप में समूचे नेफा को चीन का भाग प्रदर्शित किया गया था।


Wednesday, October 14, 2020

Mohandas Karamchand Gandhi_Thoughts_English


If the importance of Indian languages is not recognized in the field of education, the national spirit will not be awakened. And is there a greater humiliation for the country than that? 

-Mahatma Gandhi, page 656, Volume 96, CWMG, 17 July 1947


Are all the Bal Mandirs which are coming up these days worthy of the name? This is a question to be considered by all who are interested in children’s education. The country needs good facilities for children’s education as much as it needs food, cloth and houses to meet its physical needs, for its future depends on the children. 

-Mahatma Gandhi, Message to Kindergarten School, July 7, 1947, MGCW, page 2, Volume 96

Sunday, October 11, 2020

Mahatma Gandhi_thoughts


शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय भाषाओं के महत्व को स्वीकार किए बिना राष्ट्रीय भावना जागृत नहीं होगी। क्या देश के लिए इससे बड़ा अपमान है?
-महात्मा गांधी, खंड 96, संपूर्ण गांधी वांड्मय, 17 जुलाई 1947


गाँधी_वेश्या_देवदासी प्रथा
1921 में बारीसाल (जो अब बंग्लादेश में है) में रात के दस बजे करीब एक सौ वेश्याओं के साथ दुभाषिये के जरिये बातचीत करके जो अनुभव गाँधी ने प्राप्त किये उसे 11 सितम्बर 1921 के नवजीवन (गुजराती पत्र) में इस प्रकार रखा था-ये बहनें जानबूझ कर इस पाप में नहीं पडी। पुरूषों ने उन्हें इसमें गिराया है। जिनको इस बात पर दर्द होता है उन्हें चाहिए कि वे प्रायश्चित के रूप में इन पतित बहनों को हाथ बढा कर सहारा दें। जब-जब इन बहनों का चित्र मेरी आँखों के सामने आता है तब-तब मुझे ख्याल होता है कि अगर ये मेरी बहनें या बेटियाँ होतीं तो ! और होतीं तो क्यों वे हैं ही, उनको उठाना मेरा काम है। प्रत्येक पुरूष का काम है।.....स्वराज्य का अर्थ है पतितों का उद्धार।
यही नहीं दक्षिण भारत में प्रचलित देवदासी प्रथा का विरोध करते हुए गाँधी ने 16 अप्रैल 1925 के यंग इंडिया में लिखा-दक्षिण यात्रा में मुझे जितने अभिनंदन-पत्र मिले उन सब में अत्यन्त हृदयस्पर्शी वह था जो देवदासियों की ओर से दिया गया था। देवदासियों को वेश्या शब्द का सौम्य पर्याय ही समझिए।.... यह अत्यन्त लज्जा, परिताप और ग्लानि की बात है कि पुरूषों की विषय-तृप्ति के लिए कितनी ही बहनों को अपना सतीत्व बेच देना पडता है। पुरूष ने विधि-विधान के इस विधाता ने अबला कही जानेवाली जाति को बरबस जो पतन की राह पर चलाया है, उसके लिए उसे भीषण दंड का भागी होना पडेगा।.... मैं हर युवक से वह विवाहित हो या अविवाहित, जो कुछ मैंने लिखा है, उसके तात्पर्य पर विचार करने का अनुरोध करता हूँ। इस सामाजिक रोग, नैतिक कोढ के संबंध में मैंने जो कुछ सुना है, वह सब मैं नहीं लिख सकता। विषय बडा नाजुक है, पर इसी कारण इस बात की ज्यादा आवष्यकता है कि सभी विचारशील लोग इसकी ओर ध्यान दें।


Mahatma Gandhi_Third Class Indian Railway_Delhi_Booking Ticket Office_दिल्ली_तीसरे दर्जे का रेल आरक्षण कार्यालय_महात्मा गांधी


 


शाही राजधानी यानी दिल्ली का एक तीसरे दर्जे का रेल आरक्षण कार्यालय एक ब्लैक-होल है, जो कि नष्ट होने लायक ही है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत में प्लेग एक महामारी बन गया है? ऐसे स्थान पर कोई दूसरी बात हो ही नहीं सकती है, जहां आने पर यात्री हमेशा कुछ गंदगी छोड़ जाते हैं और अपने साथ उससे अधिक गंदगी समेटकर ले जाते हैं।


-महात्मा गांधी, थर्ड क्लास इंडियन रेलवे पुस्तक में 

Thursday, October 1, 2020

Name change from ICS to IAS_01101947_स्व के तंत्र की घोषणा का दिन_1 अक्तूबर1947


 


वर्ष 1947 में देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने आज ही के दिन प्रशासनिक तंत्र के नाम का भारतीयकरण किया था। 

1 अक्तूबर, 1947 को नई दिल्ली से एक प्रेस नोट जारी करके गृह मंत्रालय ने अंग्रेजों की इंडियन सिविल सर्विस और इंडियन पुलिस को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आइपीएस) के रूप में नामित करने की सार्वजनिक घोषणा की थी। 

इससे पूर्व, आइसीएस और आइपी के स्थान पर परिवर्तन करके अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा और अखिल भारतीय पुलिस सेवा का गठन किया था।

तब महजबी आधार पर राष्ट्र-विभाजन ने राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह से परिवर्तित कर दिया था। वर्ष 1946 में प्रांत-प्रमुखों की बैठक में पारित प्रस्ताव ही एक प्रकार से भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा के लिए घोषणापत्र बन गया।

भारतीय प्रशासनिक सेवा में भर्ती के लिए पहली प्रतियोगी परीक्षा जुलाई 1947 में आयोजित हुई। इससे पूर्व इंडियन सिविल सर्विस के लिए चयनित लेकिन वास्तव में उस सेवा में नियुक्त नहीं किए गए व्यक्तियों को भी भारतीय प्रशासनिक सेवा में सम्मिलित कर दिया गया। वर्ष 1948 के मध्य तक, द्वितीय विश्व युद्व में उनकी सेवाओं के के आधार पर चुने गए अधिकारियों को भी भारतीय प्रशासनिक सेवा में नियुक्त किया गया।

नव-स्वतंत्र देश के इस महत्वपूर्ण तंत्र के रूपातंरण की प्रक्रिया केन्द्रीय गृहमंत्री वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में हुई। तत्कालीन उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल ने 18 जनवरी 1948 को बम्बई में हुई एक सभा में इससे संबंधित अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि कितने ही सालों से अंग्रेजों ने हमारी हुकूमत चलाने के लिए एक तन्त्र बनाया था, जिसको 'लोहे की चौखटी' यानी 'स्टील फ्रेम' कहते हैं। यह वज्र का बना हुआ एक फ्रेम था, जिसको सिविल सर्विस कहते हैं। यह कोई पन्द्रह सौ आदमियों की एक सर्विस थी। यह पन्द्रह सौ अफसर सारे हिन्दुस्तान का राज्य चलाते थे। बहुत साल से और बड़ी मजबूती से यह राज्य चला रहे थे। जब यह फैसला हुआ, तब हमारे पास पन्द्रह सौ अफसर थे। उसमें 25 फीसदी अंग्रेज थे। वे सभी तो भागकर चले गए। तो वह जो फ्रेम था, आधा तो टूट गया। अब जो बाकी रहा, उसमें से जितने मुसलमान थे, वह सब भी चले गए। उनमें से चन्द लोग यहां रहे, बाकी सब चले गए। नतीजा यह हुआ कि आज हमारे पास पुरानी सर्विस के लोगों का सिर्फ चौथा हिस्सा बच रहा है, और इसी 25 फीसदी सर्विस से हम हिन्दुस्तान का सारा कारोबार चला रहे हैं। नई सर्विस तो हमारे पास कोई है नहीं। वह तो हमें बनानी पड़ेगी। इस तरह से तो लोग मिलते नहीं, और जिसके पास अनुभव नहीं है, जिसने कभी काम नहीं किया, वैसे आदमियों को ले लेने से तो काम चलता नहीं है। इस पर भी पिछले चार पांच महीनों में हमने इतना काम कर लिया।

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...