Friday, November 30, 2012

ghalib: writings

 असदुल्ला खान मिर्ज़ा ग़ालिब के दो समकालीनों ने उनकी जीवनियाँ लिखी | ये हैं हाली द्वारा रचित ' यादगारे- ए - ग़ालिब ' ( 1897 ) और मिर्जा मोज द्वारा ' हयात - ए - ग़ालिब ' ( 1899 ) | ये जीवनियाँ हमें उनकी जिंदगी और वक़्त को समझने की अंतदृष्टि देती है |
ग़ालिब के उर्दू दीवान का पहला संस्करण 1841 में प्रकाशित हुआ | मयखाना - ए - आरजू ' शीर्षक के अंतर्गत फारसी लेखक का संग्रह 1895 में प्रकाशित हुआ | उनकी फारसी डायरी ' दस्तम्बू ' ( 1858 ) सिपाही विद्रोह और दिल्ली पर इसके प्रभाव का प्रमाणिक दस्तावेज है | 1868 में कुल्लियत - ए - नत्र - ए - फारसी - ए ग़ालिब ' नाम से उनका फारसी लेखन का एक और संग्रह प्रकाशित हुआ जिसमे पत्र , प्राक्कथन , टिप्पणियाँ आदि थे | एक गद्द्य लेखक के रूप में उनकी ख्यति उनके पत्रों के कारण है , जो ' उद् - ए - हिंदी ' ( 1868 ) और ' उर्दू - ए - मुअल्ला '(1869) नाम के दो संकलनों में प्रकाशित है |

Letters of Ghalib


(1861ई, मीर मेहँदी हुसेन ‘मजरूह' के नाम)
जाने ग़ालिब,
तुम्हारा ख़त पहुँचा. ग़ज़ल इस्लाह के बाद पहुँचती है-
‘हरेक से पूछता हूं- वो कहां है ?'
मिसरा बदल देने से ये शेर किस रुतबे का हो गया !
ऐ मीर मेहँदी तुझे शर्म नहीं आती-
‘मियाँ, ये अहले देहली की ज़बां है.'

अरे !अब अहले देहली या हिन्दू हैं या अहले हुर्फ़ा हैं या ख़ाकी हैं या पंजाबी हैं या गोरे हैं. इनमें से तू किसकी ज़बान की तारीफ़ करता है. लखनऊ की आबादी में कुछ फ़र्क़ नहीं आया. रियासत तो जाती रही बाक़ी हर फ़न के कामिल लोग मौजूद हैं.

खस की टट्टी, पुरवा हवा, अब कहाँ ? लुत्फ़, वो तो उसी मकान में था. अब मीर खैराती की हवेली में वो जहत और सिम्त बदली हुई है. बहरहाल मी गुज़रद. मुसीबते अजीम ये है के क़ारी का कुआँ बन्द हो गया. लालडिग्गी के कुएँ यकक़लम खारी हो गए. ख़ैर, खारी ही पानी पीते. गर्म पानी निकलता है. परसों मैं सवार होकर कुओं का हाल दरयाफ़्त करने गया था. मस्जिदे जामा होता हुआ राजघाट दरवाजे को चला. मस्जिदे जामा से राजघाट दरवाजे तक बेमुबालग़ा एक सेहरा लक़ व दक़ है. ईंटों के ढेर जो पड़े हैं वो अगर उठ जाएँ तो हू का मकान हो जाए. याद करो, मिर्ज़ा गौहर के बाग़ीचे के इस ज़ानिब को कई बांस नशेब था, अब वो बाग़ीचे के सेहन के बराबर हो गया, यहाँ तक के राजघाट का दरवाजा बन्द हो गया. फ़सील के कंगूरे खुल रहे हैं, बाक़ी सब अट गया. कश्मीरी दरवाज़े का हाल तुम देख गए हो. अब आहनी सड़क के वास्ते कलकत्ता दरवाजे से काबली दरवाजे तक मैदान हो गया. पंजाबी कटरा, धोबी वाड़ा, रामजी गंज, सआदतखां का कटरा, जरनेल की बीबी की हवेली, रामजीदास गोदाम वाले के मकानात, साहबराम का बाग़-हवेली इनमें से किसी का पता नहीं मिलता. क़िस्सा मुख़्तसर, शहर सहरा हो गया था, अब जो कुएँ जाते रहे और पानी गौहरे नायाब हो गया, तो यह सहरा सेहरा-ए-कर्बला हो जाएगा.
अल्लाह !अल्लाह !
दिल्ली न रही और दिल्ली वाले अब तक यहाँ की जबान को अच्छा कहे जाते हैं.
वाह रे हुस्न ऐतक़ाद !
अरे, बन्दे खुदा उर्दू बाज़ार न रहा उर्दू कहाँ ?
दिल्ली, वल्लाह, अब शहर नहीं है, कैंप है, छावनी है,
न क़िला न शहर, न बाज़ार न नहर.
अलवर का हाल कुछ और है. मुझे और इन्क़लाब से क्या काम. अलेक्जेंडर हैडरले का कोई ख़त नहीं आया. जाहिरा उनकी मुसाहिबत नहीं, वरना मुझको जरूर ख़त लिखता रहता.
मीर सरफ़राज़ हुसैन और मीरन साहब और नसीरुद्दीन को दुआ.
**-**
जहत=दिशा, मी गुज़रद=किसी तरह गुज़रती है, सहरा=उजाड़ बियाबान, हू का=सन्नाटा, नशेब=ढाल, गौहरे=दुर्लभ मोती, सहरा=रेगिस्तान.
(ग़ालिब के पत्र, संस्करण - 1958, हिन्दुस्तानी एकेडमी, उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद से साभार)

Ghalib's Delhi

 
What do you want to know and what shall I write? Delhi meant the Fort, the Chandni Chowk, the daily bazaar near the Jama Mosque, the weekly trip to the Jamuna bridge, the annual Fair of the Flower-sellers. These five things are no more. Where is Delhi now? Yes, there used to be a city of this name in the land of Ind.

Thursday, November 29, 2012

Sun Worship: Chhath Puja


The Chhath festival is among a very few festivals in the world, which has succeeded in preserving its tradition completely, surviving onslaughts made by modernity and changing social values. Even the worship of Sun God has been mentioned in Skanda Purana.
Thousands of sun sculptures, dating from 6th century A.D. to 12-13th century A.D. are scattered all over the Bihar but the most ancient sculpture is found on the railing of Mahabodhi Temple in Bodh Gaya, dating back to Shunga period during 2nd B.C.
Even the punch marked coins, minted by Mahajanpadas around the 6th century B.C. had a symbol of God sun among five symbols marked on coins.
The sun worship became very popular during the 5-6th A.D, practised at various parts of the world like Egypt and Mesopotamia.

Mumbai:prism


पता नहीं कितने युवा आंखों में सपने लिए समुंदर किनारे मायानगरी में आते हैं । कितने मुंबई के किनारे पर आने वाली लहरों पर आकर दम तोड़ देते है । और खत्म हो जाते हैं सपने, बंद आंखों में सदा के लिए । समुंदर किनारे, पानी की सतह पर आ जाती लाशें, गुमनामी के गहरे अंधेरे में डूबकर । सपना देखने वाली आंखें और शख्स दोनों हो समां जाते है चमकते ब्लैक होल में मुंबई के ।

Sunday, November 18, 2012

Book Review: Pax India: Shashi Tharoor




सॉफ्ट पावर बरास्ता भविष्य की महाशक्ति भारत

भारत में सार्वजनिक जीवन में साफ्ट पावर के विचार को प्रचलित करने वाले शशि थरूर ने अपनी नवीनतम पुस्तक पाक्स इंडिका में पूरे 38 पृष्ठों में इस विचार के व्यावहारिक पक्ष की विस्तृत व्याख्या की है । थरूर ने मूल रूप से हावर्ड विश्वविद्यालय के जोसेफ नये की अवधारणा को हाल के समय में समूची दुनिया के पारंपरिक अर्थ में भारत को एक उभरती शक्ति के तौर पर स्वीकार करने की बात के संदर्भ में इस विचार का प्रतिपादन किया है । उनका कहना है कि आज की दुनिया में भारत अपनी सैन्य, आर्थिक शक्ति की तुलना में अपनी सॉफ्ट पावर के कारण ज्यादा प्रासंगिक है ।

जोसेफ नये के साफ्ट पावर अवधारणा के अनुसार, इस शक्ति की बदौलत एक देश दूसरे साथी देशों के व्यवहार में परिवर्तन लाते हुए अपनी इच्छानुसार कार्य करवाने में सफल होता है । इसके लिए तीन तरीके हैं, पहला ताकत के जोर पर दूसरा धन के लालच में और तीसरा आकर्षण अथवा रिझाकर । दूसरे शब्दों में अगर आप किसी देश को स्वेच्छा से प्रेरित करके अपना कार्य संपन्न करवा लेते हैं तो आपको ताकत या धन की भी जरूरत नहीं होती है । विश्व राजनीति में पारंपरिक रूप से शक्ति को सैन्य अर्थ में ही आंका जाता है और सबसे अधिक सेना वाले देश की ही जीत की संभावना होती है ।

पर अगर दुनिया के इतिहास पर नजर डालें तो केवल सैन्यबल ही काफी नहीं साबित हुआ है । आखिरकार वियतनाम युद्व में अमेरिका को मुंह की खानी पड़ी और अफगानिस्तान में सोवियत संघ को हार का सामना करना पड़ा । यहां तक की इराक में भी अमेरिका को इसी सच्चाई से दो चार होना पड़ा । इसी परिप्रेक्ष्य में अगर सॉफ्ट पावर पर कोरी सैनिक ताकत के विकल्प के रूप में विचार करें तो यह उसका पूरक है । अगर जोसेफ नये के शब्दों में कहे तो किसी भी देश की साफ्ट पावर मुख्य रूप से तीन कारकों पर निर्भर होती है । पहला उसकी संस्कृति (जहां वह दूसरे देशों के लिए आकर्षण होती है), उसके राजनीतिक मूल्य (जिसे वह देश अपनी जमीन और दूसरे के यहां जीता है) और उसकी विदेश नीति ( जिसे दूसरे देश नैतिक अधिकार के कारण वैधता से स्वीकार करते हैं) ।

थरूर ने इससे भी एक कदम आगे बढ़कर सॉफ्ट पावर को किसी देश के विषय में दुनिया के अभिमत को उसकी कसौटी बताया है । उनके अनुसार, किसी भी देश के नाम के उच्चारण मात्र से दुनिया की नजर में उभरने वाली तस्वीर ही वास्तविकता में साफ्ट पावर है न कि उस देश की विदेश नीतियों का आकलन । इस तरह 21 वीं सदी की दुनिया में भारत के नेतृत्व की भूमिका का आकलन करें तो हम सर्वमान्य रूप से दुनिया भर में भारतीय समाज और संस्कृति के प्रति आकर्षण की बात पाएंगे । ये बातें दूसरे देशों को सीधे तौर पर भारत का समर्थन करने के लिए भले ही न तैयार करती हो पर वे दुनिया की नजर में भारत के अमूर्त स्थान को कायम करने की दिशा में एक कदम जरूर है । भारत में सॉफ्ट पावर होने के सारे गुण मौजूद है । भारत की सभ्यता निर्विवाद रूप से दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है, जिसने हर जाति, नस्ल और राष्ट्रीयता के व्यक्तियों को शरण दी । उसमें भी महत्वपूर्ण रूप से यहूदी, पारसी, ईसाइयत के विभिन्न पंथों और मुसलमानों को धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता दी ।

बेबीलोन में अपने फर्स्ट टेम्पल के विनाश के बाद यहूदी ईसा के जन्म से कहीं पहले भारत के दक्षिण पश्चिमी तट पर शरण के लिए पहुचे और सोलहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों के अत्याचार से पहले उन्हें कभी भी किसी तरह के धार्मिक उत्पीड़न का शिकार नहीं होना पड़ा । वहीं मालाबार के तट पर थामस के रूप में ईसाइयत का पूरा स्वागत हुआ । वहां थामस ने अनेक लोगों का धर्मांतरण किया । ऐसा माना जाता है कि इस तरह से, आज के भारतीय ईसाइयों के पूर्वज उस समय ईसाइयत में दीक्षित हो गए थे जब यूरोप में ईसाइयत को कोई जानता भी नहीं था । 

इसी तरह, केरल में इस्लाम तलवार के जोर की बजाय व्यापारियों, समुद्री यात्रियों और धर्म प्रचारकों के माध्यम से दाखिल हुआ और यह बात केरल में भारतीय उपमहाद्वीप के प्राचीनतम मस्जिद, चर्च और यहूदी उपासना गृह की मौजूदगी से साबित होती है । ब्रिटिश इतिहासकार ई़.पी. थामसन के शब्दों में, विरासत की यह विविधता ही भारत को आने वाली दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण देश बनाती है । दुनिया के सभी संसृत प्रभाव इस समाज में परिलक्षित होते हैं, दुनिया के किसी भी भाग में कोई विचार चाहे वह पश्चिम में हो या पूर्व में जो किसी भारतीय मस्तिष्क में न सक्रिय हो । 

ध्यान देने वाली बात है कि भारतीय मेधा को विविध शक्तियों ने आकार दिया है । और वे हैं, प्राचीन हिंदू परंपरा, मिथक और ग्रंथ, इस्लाम और ईसाइयत का प्रभाव और दो शताब्दियों का ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन । भले ही कुछ लोग भारत को एक हिंदू देश के रूप में सोचते और समझते हैं पर आज भारतीय सभ्यता एक संकर मिश्रिण है । आज हम कव्वाली, गालिब की शायरी या एक तरह से हमारा राष्ट्रीय खेल बन चुके क्रिकेट के बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना नहीं कर सकते है । आज जब कोई भारतीय एक औपचारिक कार्यक्रम में राष्ट्रीय पहनावा पहनता है तो वह एक तरह की शेरवानी होती है तो कि भारत में मुस्लिम आक्रमण से पूर्व प्रचलन में नहीं थी । कुछ वर्ष पहले जब भारतीय हिंदुओं ने एक प्रतियोगिता भरे माहौल में आधुनिक दुनिया के सात आश्चर्यों के चुनाव में अपना मत दिया तो उन्होंने अपने धर्म के सर्वाधिक बेहतरीन स्थापत्य के नमूने अंकोरवाट मंदिर की जगह एक मुगल बादशाह के बनवाए एक मकबरे, ताजमहल का चयन किया । एक तरह, इसी सांस्कृतिक विरासत में कहीं भारत की सॉफ्ट पावर अंतर्निहित है । 

भारत का नाम सिंधु नदी ( हालांकि आज कम भारतीय ही इस तथ्य से वाकिफ है वह नदी नहीं नद है और दूसरा नद ब्रह्मपुत्र है) के नाम पर पड़ा जो कि आज पाकिस्तान से होकर बहती है और जैसा कि सर्वविदित है कि पाकिस्तान सन् 1947 में अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन के अंत के साथ हुए भारत-विभाजन के बाद अस्तित्व में आया । इस तरह, भारतीय राष्ट्रवाद एक दुर्लभ घटना है । यह किसी भाषा (हमारा संविधान 23 भाषाओं को मान्यता देता है जबकि देश में 35 भाषाएं और 22,000 बोलियां हैं ), भूगोल ( उपमहाद्वीप का प्राकृतिक भूगोल जो कि पर्वतों और समुद्र से निर्मित होता है, वह 1947 में देश विभाजन के साथ ही खंडित हो गया ), नस्ल (भारतीय शब्द में विभिन्न नस्लें समाहित हैं ) और धर्म (भारत में दुनिया का हर धर्म जापान का प्राचीन जापानी शिंतों धर्म से लेकर हिंदू धर्म तक पाया जाता है, जिसमें किसी भी तरह के संगठित चर्च का ढांचा नहीं है और न ही कोई हिंदू पोप, हिंदू मक्का अथवा कोई एक पवित्र पुस्तक, समान मान्यताएं, पूजा पद्वति नहीं है) । भारतीय राष्ट्रवाद, एक विचार आधारित राष्ट्रवाद है जो कि एक सनातन भूमि का विचार है। जिसकी उत्पति एक प्राचीन सभ्यता से हुई, जिसे एक समान इतिहास ने एकता में पिरोया और एक बहुलवादी लोकतंत्र ने निरंतरता प्रदान की । भारत के भूगोल ने इसे संभव बनाया और उसकी इतिहास ने इसकी पुष्टि की। 

थरूर भारत को एक समृद्व विविधताओं की भूमि मानते हैं, जहां एक साथ कइयों को गले लगाया जा सकता है । यह एक ऐसा विचार है जहां एक राष्ट्र में भले ही जाति, नस्ल, रंग, संस्कृति, खान पान, विश्वास, पहनावे और रिवाज के अंतर के बावजूद एक लोकतांत्रिक सहमति है । यह सर्वानुमति इस साधारण सिद्वांत को लेकर है कि एक लोकतंत्र में आपका सहमत होना आवश्यक नहीं है सिवाय इसके कि आप असहमत कैसे होंगे। दुनिया भर में भारत के सम्मान का एक बड़ा कारण यही है कि वह सभी प्रकार के दबावों और तनाव के बावजूद कायम रहा है (इकबाल के शब्दों में कहें तो कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों से रहा है दुश्मन दौरे जमाना हमारा) जबकि (विस्टन चर्चिल जैसे) कइयों ने उसके अवश्यंभावी विघटन की भविष्यवाणी करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । इस तरह भारत ने बिना एकमत हुए भी सहमति बनाते हुए (एकम् सद् बहुधा विप्र वदंति) अपने अस्तित्व को कायम रखा है । 

आज के सूचना प्रौद्योगिकी के युग में साफ्ट पावर का अर्थ दूसरों पर जीत हासिल करना न होकर स्वयं को पहचानना है । आज किसी भी देश की साॅफ्ट पावर की पहचान उन तत्वों से होती है जो वह जानबूझकर (अपने सांस्कृतिक उत्पादों के माध्यम से, विदेशी जनता को जताकर या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रोपेगंडा करके) या अनजाने (जिस तरह से उसे वैश्विक मास मीडिया में समाचारों के माध्यम से परोसा जाता है) दुनिया के मानस पटल पर उकेरता है । 

भारत विभिन्न तरह से संस्कृति का प्रचार करता है विशेषरूप से बालीवुड, जो कि मुबंई की हिंदी फिल्मों का बहुप्रचलित नाम है, की हिंदी फिल्मों के माध्यम से जो कि अब कहीं अधिक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय दर्शकों तक पहुंच रही हैं। सन् 2009 में स्लमडाग मिलिनियर फिल्म को आस्कर पुरस्कार, इस प्रवृत्ति को रेखांकित करने के साथ साथ इसकी पुष्टि भी करता है । आज बालीवुड न केवल अपने तरह का चमकदार मनोरंजन का ब्रांड न केवल अमेरिका और ब्रिटेन के अनिवासी भारतीयों को उपलब्ध करवा रहा है बल्कि सीरिया से लेकर सेनेगल तक दुनिया के देशों में उसकी उपस्थिति दर्ज हो रही है । आज सेनेगल के डकार से लेकर ओमान तक भाषा से इतर हिंदी फिल्मों की पताका निर्विवाद रूप से फहरा रही है । 

इतना ही नहीं, भारतीय कला, शास्त्रीय संगीत और नृत्य का भी समान प्रभाव है । तो वहीं हाल भारतीय फैशन डिजाइनरों के काम का है जिसके असर से अब दुनिया का शायद ही कोई फैशन स्थल अछूता बचा हो । दुनिया के हर कोने में भारतीय व्यजंन की उपस्थिति विश्व समुदाय के मन में हमारी संस्कृति के लिए सम्मान पैदा कर रही है। संसार के अलग अलग देशों में भारतीय रेस्तारांओं की बढ़ती संख्या कोई कम हैरतअंगेज बात नहीं है । आज दुनिया में भारतीय रेस्तारांओं की वही स्थिति है जो पिछली सदी में अमेरिका में चीन के धुलाईघरों की थी । इंगलैंड में आज भारतीय करी परोसने वाले स्थानों में लोहा, स्टील और पानी के जहाज निर्माण करने वाले उद्योगों से अधिक व्यक्ति कार्यरत हैं । 

हाल के भूमंडलीकरण ने अनेक भारतीयों के मन में यह आशंका पैदा की जो कि निर्मूल साबित हुई कि आर्थिक उदारीकरण अपने साथ एक तरह का सांस्कृतिक साम्राज्यवाद-कि बे वाच और बर्गर भरतनाट्यम और भेलपूरी को बेदखल कर देंगे-लाएगा । जबकि हाल में ही पश्चिमी उपभोक्तावादी उत्पादों के साथ भारत का अनुभव बताता है कि हम बिना कोक के गुलाम हुए कोका कोला पी सकते हैं । अगर महात्मा गांधी के शब्दों में कहे तो हम अपने देश के दरवाजे और खिड़कियों को खोलने और विदेशी हवा के हमारे घरों में बहने के बावजूद किसी भी तरह से कमतर भारतीय नहीं होंगे क्योंकि भारतीय इतने सक्षम है कि इन हवाओं से उनके पैर नहीं उखड़ेगे । हमारी लोकप्रिय संस्कृति एमटीवी और मैकडानल्ड का सफलतापूर्वक सामना करने में सक्षम सिद्व हुई है । साथ ही भारतीयता की वास्तविक शक्ति विदेशी प्रभावों को समाहित करने और उसे भारतीय हवा पानी और मिट्टी के अनुकूल परिवर्तित करने में निहित है ।

Agheya: Selected Lines from poems





मौन भी अभिव्यंजना है : जितना तुम्हारा सच है उतना ही कहो।
(जितना तुम्हारा सच है:अज्ञेय)


प्रकाश मेरे अग्रजों का है
कविता का है, परंपरा का है,
पोढ़ा है, खरा है :
अंधकार मेरा है,
कच्चा है, हरा है।
(हरा अंधकार)


यों मैं
अपने रहस्य के साथ
रह गया
सन्नाटे से घिरा
अकेला
अप्रस्तुत
अपनी ही जिज्ञासा के सम्मुख निरस्त्र,
निष्कवच,
वध्य।
(निरस्त्र)


शब्द, यह सही है, सब व्यर्थ हैं
पर इसीलिए कि शब्दातीत कुछ अर्थ हैं।
शायद केवल इतना ही : जो दर्द है
वह बड़ा है, मुझ से ही सहा नहीं गया।
तभी तो, जो अभी और रहा, वह कहा नहीं गया।
(जो कहा नहीं गया)


और रहे बैठे तो लोग कहेंगे
धुँधले में दुबके प्रेमी बैठे हैं।
-वह हम हों भी तो यह हरी घास ही जाने :
(जिस के खुले निमंत्रण के बल जग ने सदा उसे रौंदा है और वह नहीं बोली),
नहीं सुनें हम वह नगरी के नागरिकों से
जिन की भाषा में अतिशय चिकनाई है साबुन की
किंतु नहीं है करुणा
उठो, चलें, प्रिय।
(हरी घास पर क्षण भर)

मैं आस्था हूँ तो मैं निरंतर उठते रहने की शक्ति हूँ?
मैं व्यथा हूँ, तो मैं मुक्ति का श्वास हूँ
मैं गाथा हूँ तो मैं मानव का अलिखित इतिहास हूँ
मैं साधना हूँ तो मैं प्रयत्न में कभी शिथिल न होने का निश्चय हूँ
मैं संघर्ष हूँ जिसे विश्राम नहीं,
जो है मैं उसे बदलता हूँ, जो मेरा कर्म है, उसमें मुझे संशय का नाम नहीं,
वह मेरा अपनी साँस-सा पहचाना है,
लेकिन घृणा/घृणा से मुझे काम नहीं
क्योंकि मैंने डर नहीं जाना...

है।
मैं अभय हूँ,
मैं भक्ति हूँ,
मैं जय हूँ।
(मैं वहाँ हू)

''सांप! तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया।
एक बात पुछूँ-(उत्तर दोगे?)
तब कैसे सीखा डसना-विष कहाँ पाया।''
(सांप)

Mao:Nagarjuna

नागार्जुन की लिखी पंक्ति याद आ गई जो शायद कुछ पढ़े लिखों ने पढ़ी नहीं या पढ़कर भूल गए ।
यह माओ कौन है, बेगाना है यह माओ ।
आओ इसकी नफरत को थूकों से नहलाओ ।

emergeny

इसमें अचरज क्या आपातकाल में हिंदी के नामवर आलोचक भी मौन थे और आज उनकी दादागिरी के आगे सब मौन है । छोटे सुख की चाहना में बड़ा दुख । छोटे सुख की चाहना में बड़ा दुख । खैर यही जीवन है, पूर्ण कोई नहीं ।
(संदर्भ: बाल ठाकरे ने आपातकाल लगाने के लिए इंदिरा गांधी का समर्थन किया था)

Gandhi-Nehru: Rashtrapati Bhavan

Mahatma Gandhi wanted Lutyens’ palace to be abandoned, and India’s first prime minister, Jawaharlal Nehru, had complained that, ‘Imperial Delhi stands, visible symbol of British power, with all of its pomp and circumstance, and vulgar ostentation and wasteful extravagance.

Friday, November 16, 2012

Robert Byron: New Delhi

When the city (New Delhi) was officially inaugurated in 1931, Robert Byron concluded in his panegyric in the Architectural Review: ‘Sir Edwin Lutyens had drunk of the European past, and now he drank of the Indian. He borrowed themes and inventions from both…In so doing he has accomplished a fusion between East and West, and created a novel work of art.’

Wednesday, November 14, 2012

New Delhi: Nikolaus Pevsner

A century ago this month, on 12 December 1911, the King-Emperor George V announced that the capital of British India would be moved from the European port of Calcutta to the ancient city of Delhi. A new Delhi would be built outside the walls of the seventh Delhi, the Moghul city of Shahjahanabad. And, despite an intervening world war and rising nationalist feeling in India, New Delhi was completed only 20 years later. As India was the jewel of the British Empire, cancellation was unthinkable. Britain was also in a hurry; as Nikolaus Pevsner put it, this ambitious imperial project was completed ‘five minutes before closing time’. A mere 16 years later, in 1947, the British Raj was wound up.

Monday, November 12, 2012

diwali-poem-agehya


यह दीप अकेला / अज्ञेय

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इसको भी पंक्ति को दे दो
यह जन है: गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गायेगा
पनडुब्बा: ये मोती सच्चे फिर कौन कृति लायेगा?
यह समिधा: ऐसी आग हठीला बिरला सुलगायेगा
यह अद्वितीय: यह मेरा: यह मैं स्वयं विसर्जित:
यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इस को भी पंक्ति दे दो
यह मधु है: स्वयं काल की मौना का युगसंचय
यह गोरसः जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय
यह अंकुर: फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय
यह प्रकृत स्वयम्भू ब्रह्म अयुतः
इस को भी शक्ति को दे दो
यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इस को भी पंक्ति दे दो
यह वह विश्वास नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा
वह पीड़ा जिसकी गहराई को स्वयं उसी ने नापा
कुत्सा अपमान अवज्ञा के धुँधुआते कड़वे तम में
यह सदा-द्रवित चिर-जागरूक अनुरक्त-नेत्र
उल्लम्ब-बाहु यह चिर-अखंड अपनापा
जिज्ञासु प्रबुद्ध सदा श्रद्धामय
इस को भक्ति को दे दो
यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इस को भी पंक्ति दे दो

Sunday, November 4, 2012

Depression-infiltration

मन के अवसाद का अंधेरा प्रकृत्ति और और प्रवृति दोनों को कायराना बनाता है लिहाजा अतिक्रमण तो लाजिमी है ।

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...