Monday, December 30, 2013

Sardar Patel-Bhavnagar (सरदार पटेल, भावनगर)


मैं कायरता का कट्टर विरोधी हूं। कायर मनुष्यों का साथ करने के लिए मैं कभी तैयार नहीं हो सकता। युग को पहचान कर आत्मरक्षा करना हमारा फर्ज है। यह समय ऐसा है कि चारों तरफ गुंडे घूमते हैं। अगर यह मानने का कारण देंगे कि हम कायर हैं, तो गुंडे निर्भय होकर घूमेंगे। यह अराजकता का वातावरण भावनगर में ही हो सो बात नहीं है। परंतु ऐसा वायुमंडल तमाम हिन्दुस्तान में है।
- सरदार पटेल, 16 मई 1939 को भावनगर में एक जनसभा में, (मई 1939 में भावनगर में साम्प्रदायिक दंगा हुआ था)

Friday, December 27, 2013

Teachar:Guide (गुरु)


जो अपने शिष्य की सबसे बड़ी कमजोरी को ही उसकी सबसे बड़ी ताकत बनाकर, उसके सपने को साकार कर सकता है, वही वास्तविकता में असली गुरु है ।

Saturday, December 21, 2013

Self Knowledge (स्व-अनुभव)



समूचे संसार के ज्ञान तो पुस्तकों से प्राप्त किया सकता है पर मन की आसक्ति से उपजे उद्वेग को अपने अनुभवों से ही समझा जा सकता है........... 

Old St. Stephens College Building, Delhi (ओल्ड सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली)





दिल्ली विधानसभा के सफल चुनाव का संचालन जिस इमारत में हुआ है, वहां कभी अंग्रेजों के समय में सेंट स्टीफंस कॉलेज चलता था। कश्मीरी गेट स्थित राज्य चुनाव आयुक्त कार्यालय की इस पुरानी इमारत के निर्माण की भी खास कहानी है। इसी इमारत में कभी महात्मा गांधी ने डेरा जमाया था। इस कॉलेज में आजादी के दीवानों ने भी पढ़ाई की थी तो यहां से निकले कई छात्र भारतीय राजनीति और शासन में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। इस इमारत का इतिहास भी भारतीय लोकतांत्रिक परंपरा जितना ही रोचक और विविधतापूर्ण है ।
सेंट स्टीफंस कॉलेज का पहला उल्लेख दिल्ली मिशन की द सोसाइटी रिपोर्ट फार द प्रोपेगेशन आफ द गॉस्पल में मिलता है। सन् 1854 में ईस्ट इंडिया कंपनी के दिल्ली स्थित पादरी मिडग्ले जॉन जेनिंग्स की पहल पर सोसायटी के काम के लिहाज से राजधानी में इसकी शाखा खोली गयी। सन् 1857 में देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से पूर्व जेनिंग्स ने करीब 1853-54 में सेंट स्टीफंस हाई स्कूल की स्थापना की। यह मुख्य विद्यालय चांदनी चौक के कटरा खुशहाल राय में एक किराए के घर में खोला गया था। स्कूल की यह इमारत शीशमहल कहलाती थी, जिसका स्वामित्व अंतिम मुगल सम्राट के एक वजीर अशरफ बेग के पास था। उनकी एक बेटी अलिजा बेगम सम्राट की कई पत्नियों में से एक थी।

सन् 1870 के दशक में बंबई के बिशप डगलस के भारतीय शिक्षित वर्गों में काम करने के लिए ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के उत्कृष्ट विद्वानों को भेजने के उद्देश्य से कैम्ब्रिज मिशन की स्थापना हुई। इसी कड़ी में सेंट स्टीफंस स्कूल, जहां पहले से कलकत्ता विश्वविद्यालय के बीए के छात्रों की तैयारी के लिए कक्षाएं चलती थी, में एक फरवरी 1881 को विश्वविद्यालय की परीक्षा के लिए कक्षाएं शुरू हो गई और राजधानी में सेंट स्टीफंस कॉलेज अस्तित्व में आया। पादरी सैम्युल स्काट एलनट कॉलेज के पहले संस्थापक प्रधानाचार्य (1881-89) थे।
कॉलेज की शुरूआत तीन शिक्षकों और पांच छात्रों से हुई। पादरी एलनट और लैफराय के अलावा स्टाफ में पादरी एचसी कार्लयान भी शामिल थे जबकि पांच छात्रों में संसार चंद, हर गोपाल, सज्जाद मिर्जा, कृपा नारायण और राम लाल थे। आठ जनवरी 1889 को हुई मिशन कांउसिल की 100 वीं बैठक में एलनट ने एक कॉलेज के निर्माण के लिए दो संभावित स्थलों का प्रस्ताव रखा। पहली लाहौरी गेट के बाहर और दूसरी कश्मीरी गेट पर प्रोविनशियल बैंक के सामने। जिसमें दूसरी जगह की कीमत 5,000 रुपए थी। इनमें से कश्मीरी गेट की जगह का चुनाव किया गया। सन् 1890 में लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सर चार्ल्स इलियट, जो कि बाद में बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर बने, ने कश्मीरी गेट पर इमारतों के निर्माण के लिए नींव का पत्थर रखा। इसमें मुख्य भवन का डिजाइन जयपुर राज्य के तत्कालीन चीफ इंजीनियर कर्नल सर सैमुअल स्विंटन जैकब ने तैयार किया। कश्मीरी गेट पर इमारतों के निर्माण की लागत करीब 92 हजार रुपए आई थी।
सन् 1886 में सुशील कुमार रुद्र कॉलेज के स्टाफ में शामिल हुए और 1906 से 1923 तक कालेज के प्रधानाचार्य रहें, वे इस कालेज के पहले भारतीय प्रधानाचार्य थे। सन् 1904 में पादरी चॉर्ल्स एंड्रयूज कॉलेज स्टाफ में शामिल हुए। वे कॉलेज के प्रधानाचार्य रुद्र के साथ महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ ठाकुर टैगोर के एक करीबी दोस्त बन गए। सन् 1907 में एंड्रयूज ने कॉलेज पत्रिका की स्थापना की। रुद्र की महात्मा गांधी और सीएफ एंड्रयूज से घनिष्ट मित्रता थी। उल्लेखनीय है कि असहयोग आंदोलन का मसौदा और खिलाफत आंदोलन के दावे से संबंधित अंग्रेज वायसराय को भेजे खुले पत्र का प्रारूप कश्मीरी गेट स्थित कालेज के प्रधानाचार्य रुद्र के निवास पर ही तैयार किए गए थे। तीन अक्तूबर, 1914 को विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कॉलेज का दौरा किया।सन् 1915 में अपनी पहली दिल्ली यात्रा के दौरान महात्मा गांधी यहीं ठहरे थे।
जब सन् 1922 में भारतीय विधानमंडल के एक अधिनियम से दिल्ली विश्वविद्यालय स्थापित किया गया तो विश्वविद्यालय से जुड़े तीन कालेजों में से एक सेंट स्टीफंस भी था जबकि दो अन्य हिंदू और रामजस कालेज थे। सेंट स्टीफंस के छात्रों में से दो, डॉ. खान बहादुर अब्दुर रहमान (1930-34) और राय बहादुर डॉ. राम किशोर (1934-1938), दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति भी बने।
कॉलेज के एक और छात्र लाला रघुबीर सिंह दिल्ली के मॉडर्न स्कूल के संस्थापक थे। सर छोटूराम, सन् 1937 में नाइट की उपाधि पाने वाले सेंट स्टीफन कॉलेज के पहले छात्र थे। वर्तमान में, राज निवास मार्ग पर स्थित दिल्ली युनाइटेड क्रिश्चियन सीनियर सेकेंडरी स्कूल सन् 1854 में स्थापित पुराने सेंट स्टीफन स्कूल का ही एक हिस्सा है। सेंट स्टीफंस कॉलेज शताब्दी वर्ष में 1 फरवरी 1981 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने एक डाक टिकट जारी किया था।
(सांध्य टाइम्स, दिल्ली में 19.12.2013 को प्रकाशित ) 


Thursday, December 19, 2013

Virat Kohli-Tendulkar



"The one word that comes to my mind is responsibility. I think he showed great discipline and responsibility. It reminds me of Sachin Tendulkar when they came here in 1996."

Allan Donald, South African legendary fast bowler, about Virat Kohli's 119 run innings on first day of the first Test Match between India-South Africa

Sahitya Academy Award: Mridula Garg (साहित्य अकादमी पुरस्कार: मृदुला गर्ग)

 
हिन्दी की सुप्रसिद्ध लेखिका मृदुला गर्ग को इस बार साहित्य अकादमी पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की है। 25 अक्टूबर 1938 में कोलकाता में जन्मी सुश्री मृदुला गर्ग को यह पुरस्कार उनके उपन्यास "मिलजुल मन" के लिए दिया गया है।
हिमांशु जोशी, चंद्रकांता तथा डॉ. अरविंदाक्षन की चयन समिति ने सुश्री गर्ग का चयन किया।दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रह चुकी मृदुला गर्ग अपनी प्र्रसिद्ध कृति 'चित कोबरा' के लिए भी जानी जाती है।
अर्थशास्त्र में एमए (1960 में) लेखिका की 20 से अधिक पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है। श्रीमती कृष्णा सोबती, मन्नू भंडारी के बाद वह सबसे लोकप्रिय हिन्दी लेखिका है। उन्हें 2004 में 'कठगुलाब' के लिए व्यास सम्मान तथा वाग्देवी पुरस्कार भी मिल चुका है।
पुरस्कार के रूप मे एक लाख रूपये की राशि तथा प्रशस्ति पत्र दिया जायेगा।
अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की अध्यक्षता में कार्यकारी मंडल ने इस पुरस्कारों को मंजूरी दी। ये पुरस्कार 2009 से 2011 के दौरान प्रकाशित पुस्तकों पर दिए गए। इस बार कुल आठ कविता संग्रह, चार निबंध संग्रह, तीन उपन्यास, दो यात्रा वृतांत, दो कहानी संग्रह, एक आत्मकथा, एक संस्मरण और एक नाटक के लिए यह पुरस्कार दिया गया।

Wednesday, December 18, 2013

Gandhi on Newspaper


One of the objects of a newspaper is to understand the popular feeling and give expression to it, another is to arouse among the people certain desirable sentiments, and the third is fearlessly to expose popular defects.
M K Gandhi

TV: insensitive medium (टीवी-संवेदनाहीन माध्यम)


मुझे टीवी इसीलिए संवेदनाहीन माध्यम लगता है क्योंकि वह मानवीय सुख-दुख को नाटक के रूप में प्रस्तुत करते हुए उसकी निजता को नष्ट कर देता है । यह एक प्रकार से निजता का प्रकटीकरण अथवा सार्वजनिकरण है जो किसी भी लिहाज से उपयुक्त नहीं है । न व्यक्ति के रूप में और न ही समाज के रूप में । 

Tuesday, December 17, 2013

Persian Ramayan (फारसी रामायण)




The Persian translation of Mahabharata is known as Razmanama. During the reign of Mughal Emperor Akbar, miniature painting tradition developed into a style popularly known as Mughal Painting. Akbar founded an atelier of over 100 artists who worked under two great Persian Masters, Mir Sayyid Ali, Abd-al-samad and later under Farukh Beg.
Mughal style introduced realism to some extent in Indian miniatures an are known for great portraiture and animal studies, Masterly compositions,aerial perspectives, kaleidoscopic, transparent colouring and most important detailed description of nature.
 {Photo Caption: Shiva receiving Vishnu as Hayagriva. Based on Persian translation of Mahabharata, Akbar period (1600 AD)}

Monday, December 16, 2013

Way to Power (सड़क-सत्ता)


सड़क की राजनीति सत्ता में ला देती है तो सत्ता की राजनीति सड़क पर ला देती है.....

Sunday, December 15, 2013

Charter:The East India Company



 The East India Company was granted the Charter to trade with India

Maharana Pratap



Maharana Pratap or Pratap Singh was a Hindu Rajput ruler of Mewar, a region in north-western India in the present day state of Rajasthan. He belonged to the Sisodiya clan of Rajputs.
Maharana Pratap was born on May 9th 1540 in Kumbhalgarh, Rajasthan. His father was Maharana Udai Singh II and his mother was Rani Jeevant Kanwar. Maharana Udai Singh II ruled the kingdom of Mewar, with his capital at Chittor. Maharana Pratap was the eldest of twenty-five sons and hence given the title of Crown Prince. He was destined to be the 54th ruler of Mewar, in the line of the Sisodiya Rajputs.
The battle of Haldighati has gone down in the annals of Indian history as one which showcased the great valour of the Rajput troops led by their scion Rana Pratap. In 1576, The battle of Haldighati was fought with 20,000 Rajputs against a Mughal army of 80,000 men commanded by Raja Man Singh. The battle was fierce though indecisive, to the Mughal army’s astonishment. Maharana Pratap’s army was not defeated but Maharana Pratap was surrounded by Mughal soldiers. It is said that at this point, his estranged brother, Shakti Singh, appeared and saved the Rana’s life. Another casualty of this war was Maharana Pratap’s famous, and loyal, horse Chetak, who gave up his life trying to save his Maharana.

Conservation in India



In India, the first instance of conservation was when Emperor Ashoka ordered to conserve wildlife in the 3rd century BC. Then in the 14th century AD, Firuz Shah Tughlaq ordered to protect ancient buildings. Later, during the British Rule, the “Bengal Regulation (XIX)” was passed in 1810, and the “Madras Regulation (VII)” was passed in 1817. These regulations vested the government with the power to intervene whenever the public buildings were under threat of misuse.
Then in 1863,Act XX was passed which authorised the government to “prevent injury to and preserve buildings remarkable for their antiquity or for their historical or architectural value”.
However, many historic structures were destroyed by the government (pre-independence) itself in Shahjahanabad. The Archaeological Survey of India (ASI) was established in 1861 to initiate legal provision to protect the historical structures all over India. The “Ancient Monuments Preservation Act(VII)” was passed in 1904 which provided effective preservation and authority over the monuments, and in 1905 for the first time, 20 historic structures in Delhi were ordered to be protected.
At the time of independence, 151 buildings and complexes in Delhi were protected by the central ASI. The State Department of Archaeology was set up in 1978 in Delhi, but it lacks the power to acquire or protect buildings, and merely looks after some monuments de-notified by ASI. In 1984, Indian National Trust for Art and Cultural Heritage (INTACH) was founded to stimulate awareness for conservation of cultural heritage among the people.

The Siege (द सीज : द अटैक ऑन द ताज)

 

अभी हाल में ही मुंबई के ताज होटल पर हुए आतंकवादी हमले (26.11.2008) पर पेंग्विन से प्रकाशित और ब्रिटिश पत्रकार एड्रिएयन लेवी व कैशी स्काट-क्लार्क की लिखित अंग्रेजी पुस्तक, नॉन-फिक्शन, द सीज : द अटैक ऑन द ताज’ में एक सनसनीखेज तथ्य का खुलासा किया गया है कि केंद्र सरकार का एक आला अधिकारी लगातार आतंकवादियों को गोपनीय सूचनाएं दे रहा था. बेहद शोध और मेहनत से तैयार इस पुस्तक में देश के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियों के हैरतअंगेज सूचनाएं हैं. आज देश के नागरिक कितना दिशाहीन हो गए है कि उन्हें अपने और देश के आत्मघाती मार्ग पर जाने का कोई मलाल नहीं ।

Remembrance and Tears (यादें और आँसू)


खैर, यादें और आँसू कभी भी आ सकते हैं, आपका कोई बस नहीं ।

desire to talk (बतकही)



जितना मैं कम जानता हूँ उतना मुझे कहने का शौक है..... 


Saturday, December 14, 2013

Criticism


दूसरे कि आलोचना सहज भी है और स्वाभाविक भी पर असली चुनौती तो आलोचना का उपयुक्त-उचित-व्यावहारिक समाधान उपलब्ध करवाना है.

Friday, December 13, 2013

Theater:Bertolt Brecht

 
''Our enjoyment of old plays becomes greater, the more we can give ourselves up to the new kind of pleasures better suited to our time. To that end we need to develop the historical sense (needed also for the appreciation of new plays) into a real sensual delight. When our theatres perform plays of other periods they like to annihilate distance, fill in the gap, gloss over the differences. But what comes then of our differences. But what comes then of our delight in comparisons, in distance, in dissimilarity-which is at the same time a delight in what is close and proper to ourselves."
Bertolt Brecht on Theater

Tulsidas


तुलसीदास ने ‘बेचहिं बेद धर्म दुहि लेहिं’ और ‘परहित सरस धर्म नहीं दोऊ’ लिखकर बिक्री वाले धर्म से सच्चे लोकधर्म को अलग किया था।

Sun and tribal tradition



झारखण्ड-छत्तीसगढ़ के सीमान्त पर, अरण्य में अब भी आलिंगनबद्ध युगल की शैलाकृति है। उपर्युक्त दन्तकथा के आधार पर, लोकमान्यता है कि सूर्य और पृथ्वी के मिलन के महान आदिवासी वसन्तोत्सव पर्व ‘सरहुल’ की रात में इस कृष्णवर्ण शैलाकृति पर चिंया (इमली के बीज ) घिसकर पीने से मनचाहा जीवन-साथी मिलता है। मनोवांछित सन्तान की प्राप्ति होती है। अन्न, धन एवं पशु सुरक्षित रहते हैं। रोग, शोक, दुःख, ताप आदि दूर रहते हैं। ‘बुरी छायाएँ’ सिर के आकाश पर तैरने से परहेज रखती हैं।

सन्ताल जाति की उत्पप्ति हाँस-हाँसिल नामक पक्षी-युगल के अण्डे से ‘हिहिड़ी–पिपिड़ी’ नामक किसी स्थान पर हुई। ‘खोज कामान’ में आकर सन्तालों को उनकी पहचान मिली।’ ‘हराराता’ के पहाड़ों में सन्तालों के आदिपुरूष ‘पिलचु हड़ाम’ तथा आदि नारी ‘पिलचु बूढ़ी ने वंशवृद्धि की। ‘सासाङ बेड़ा’ नामक स्थान पर पहुँचकर सन्ताल जाति का विभिन्न गोत्रों में विभाजन हुआ।
(-एक पौराणिक सन्ताली कथा)

Words are woven as thread by silk worm


यह सोचने का कीड़ा, कुछ न कुछ बुना ही लेता है.… रेशम न सही अनगड़, टेढ़े-मेढ़े न बूझ सकने वाले शब्दों का खुरदरा कपड़ा जो चुभता तो है पर ठंडी से बचाता है और जिन्दा रखता है आत्मा को लड़ने-जूझने के लिए एक और अंतहीन लड़ाई ।

Thursday, December 12, 2013

Karma: Dharma


युद्ध में सर्वस्व प्राण-पण लड़ना ही धर्म है, जिसका पालन वीर अभिमन्यु ने किया। सातवें द्वार से बाहर निकलने का मार्ग ना जानते हुए भी मृत्यु का वरण इस तथ्य को सिद्ध करता है।
ऐसे में फिर मृत्यु हिमालय के उत्तुंग शिखरों पर हो या चक्रव्यूह के घेरे में, गौण है।
अगर जन्म प्रारब्ध है तो मृत्यु अंत, कोई भी प्रकृति से परे नहीं, चाहे वह नर (अर्जुन) हो या नारायण (कृष्ण)।

Photo Source: The Chakravyuha and Military Formation, Scene from the Mahabharata War, Belur, Halebid, Karnataka

Babarnama on Homesexuality





Zahiruddin Muhammed Babur, who lived between 1483 and 1530, was the founder of the Mughal dynasty in the Subcontinent.
In his autobiography, the Baburnama, he provides an extensive record his longing for a young boy. Unfortunately, this infatuation also coincided with his marriage. Though wed at the age of 17, to one Ayisheh Sultan Begum, he soon loses both his interest in and fondness for his wife. “Once every month or forty days,” the emperor recalls, “my mother, the khanim, drove me to her [Ayisheh] with all the severity of a quartermaster.”
“During this time there was a boy from the camp market named Baburi,” he writes.
Even his name was amazingly appropriate. I developed a strange inclination for him – rather I made myself miserable over him.
Before this experience I had never felt a desire for anyone, nor did I listen to talk of love and affection or speak of such things. At that time I used to compose single lines and couplets in Persian. I composed the following lines there:
‘May no one be so distraught and devastated by love as I;
May no beloved be so pitiless and careless as you.’
Occasionally Baburi came to me, but I was so bashful that I could not look him in the face, much less converse with him. In my excitement and agitation I could not thank him for coming, much less complain of his leaving. Who could bear to demand the ceremonies of fealty?
Another time, coming suddenly across the subject of his affections, Babur recalls being so embarrassed that he nearly went to pieces.
In the throes of love, in the foment of youth and madness, I wandered bareheaded and barefoot around the lanes and streets and through gardens and orchard, paying no attention to acquaintances and strangers, oblivious to self and others.
When I fell in love I became mad and crazed. I knew not this to be part of loving beauties.
Sometimes I went out alone like a madman to the hills and wilderness, sometimes I roamed through the orchards and lanes of town, neither walking nor sitting within my own volition, restless in going and staying.
I have no strength to go, no power to stay. You have snared us in this state, my heart.
In his autobiography, the Baburnama, he provides an extensive record his longing for a young boy. Unfortunately, this infatuation also coincided with his marriage. Though wed at the age of 17, to one Ayisheh Sultan Begum, he soon loses both his interest in and fondness for his wife. “Once every month or forty days,” the emperor recalls, “my mother, the khanim, drove me to her [Ayisheh] with all the severity of a quartermaster.”
“During this time there was a boy from the camp market named Baburi,” he writes.
Even his name was amazingly appropriate. I developed a strange inclination for him – rather I made myself miserable over him.
Before this experience I had never felt a desire for anyone, nor did I listen to talk of love and affection or speak of such things. At that time I used to compose single lines and couplets in Persian. I composed the following lines there:
‘May no one be so distraught and devastated by love as I;
May no beloved be so pitiless and careless as you.’
Occasionally Baburi came to me, but I was so bashful that I could not look him in the face, much less converse with him. In my excitement and agitation I could not thank him for coming, much less complain of his leaving. Who could bear to demand the ceremonies of fealty?
Another time, coming suddenly across the subject of his affections, Babur recalls being so embarrassed that he nearly went to pieces.
In the throes of love, in the foment of youth and madness, I wandered bareheaded and barefoot around the lanes and streets and through gardens and orchard, paying no attention to acquaintances and strangers, oblivious to self and others.
When I fell in love I became mad and crazed. I knew not this to be part of loving beauties.
Sometimes I went out alone like a madman to the hills and wilderness, sometimes I roamed through the orchards and lanes of town, neither walking nor sitting within my own volition, restless in going and staying.
I have no strength to go, no power to stay. You have snared us in this state, my heart.

Wednesday, December 11, 2013

MIG-21



1971 के भारत-पाक युद्ध की दिशा बदल देने वाले मिग-21 एफएल लड़ाकू जेट विमान आज सदा के लिए इतिहास का हिस्सा बन जाएगा।
मौजूदा दिनों के विमानों में मिग-21 की दक्षता के मेल वाला कोई विमान नहीं है। मिग-21 विमान ने वायुसेना में ‘सुपरसोनिक युग’ की शुरुआत करने वाले और सटीक निशाना साधने की क्षमता के चलते लंबी अवधि तक लड़ाकू दस्ते का आधारस्तंभ बना रहा।
पश्चिम मेदिनीपुर में कलाईकुंडा वायुसैनिक केंद्र में सबसे युवा ऑपरेशनल कंवर्सन यूनिट पायलट फ्लाइट लेफ्टिनेंट एल नागराजन ने मिग-21 एफएल के फॉर्म 700 (किसी विमान का डॉक्यूमेंट लॉग) को वायुसेना प्रमुख के सुपुर्द किया। इसके साथ प्रतीकात्मक तौर पर वायु सेना के इतिहास की एक लंबी कहानी पर पर्दा गिर गया।

Red Beacon on Vehicles



लाल बत्ती सरकारी अम्बेस्डर कार के माथे की बड़ी बिंदिया है, अब बिना बिंदिया तो सफ़ेद अम्बेस्डर विधवा लगेगी ।
(उच्चतम न्यायालय ने इसे ‘राज मानसिकता’ करार देते हुए नेताओं और नौकरशाहों द्वारा अपनी हैसियत दिखाने के लिए लाल बत्ती की गाड़ियों के दुरुपयोग पर रोक लगा दी है।)

Monday, December 9, 2013

History of Public Service Commission in India


‘‘इसका उद्देश्य, जैसा कि अनेक वक्ताओं ने कहा है, राष्ट्र के लिए ऐसे योग्य लोक सेवक तैयार करना है जो सभी लोगों की समान सेवा करें तथा सभी समुदायों और कुल मिलाकर राष्ट्र के हितों का सदैव ध्यान रखें।’’-पंडित हृदय नाथ कुंजरू

1926 में सर रोस बार्कर की अध्यक्षता में पहले लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई थी। इस आयोग का सीमित परामर्शी कार्य था। इसके पश्चात, गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1935 के तहत संघीय लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई थी। इसमें प्रांतीय स्तर पर लोक सेवा आयोगों के गठन के प्रावधान निहित थे।
भारत के स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, भारत के संविधान के अनुच्छेद 315 के तहत संघ लोक सेवा आयोग की स्थापना की गई थी। संविधान सभा ने संघ लोक सेवा आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने में एक प्रमुख और दूरदर्शी भूमिका निभाई क्योंकि इसने सिविल सेवाओं के दक्षतापूर्ण ढंग से संचालित संवर्गों पर आधारित लोक प्रशासन उपलबध करने के लिए एक स्वायत्त निकाय की आवश्यकता महसूस की थी।

Gandhi:Prostituion


Prostitution is as sold as the world, but I wonder if it was ever a regular feature of town-life that is today. In any case, the time must come when humanity will rise against the curse and make prostitution a thing of the past, as it has got red of many evil customs, however time-honoured they might have been. 
-Mahatma Gandhi (Young India, 28-5-1925, p. 187)

Photo: Picasso

Prostitution:Politics


पहली बार कोठे की सीढ़िया चढ़ने वाला 'आम आदमी', 'ईमानदार' और 'चरित्रवान' होता है पर यह बात तो इस से तय होती है कि वह सीढ़िया लडख़डाते हुए कदमों से नीचे उतरता है, बिना पतलून के आता है या वापिस आता ही नहीं है. हर रोज़ कोठे के बगल की गली से गुजरते हुए मन में ताकाझांकी की मंशा और दूसरों को दिखाने के लिए मुँह में गाली लिए गुजरना तो बहुत आसान है.

Saturday, December 7, 2013

गीता-वेदांत


गीता के कर्म के दर्शन से प्रेरणा लेते हुए तिलक अपनी राजनीतिक विचारधारा को बौद्धिक आयाम देते हैं। वेदांत के दर्शन से उत्प्रेरित होकर विवेकानंद ने न केवल हिंदू धर्म के मानवीय पक्ष को और भी सशक्त किया बल्कि पूरे देश के पुनर्जागरण और दरिद्रनारायण की सेवा के लिए संगठन की नींव डाली।

yudhisthira-yaksha dialogue


श्रुति र्विस्मृतयोऽपि भिन्नाःनैको मुनि र्यस्य वचः प्रमाणम् ।
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम्महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥

श्रुति में अलग-अलग कहा गया है; स्मृतियाँ भी भिन्न-भिन्न कहती हैं; कोई एक ऐसा मुनि नहीं केवल जिनका वचन प्रमाण माना जा सके; (और) धर्म का तत्त्व तो गूढ है; इस लिए महापुरुष जिस मार्ग से गये हों, वही मार्ग लेना योग्य है । (युधिष्ठिर-यक्ष संवाद)

Photo source: Greek scroll supported by Indian Yaksha, Amaravati, 3rd century CE,Tokyo National Museum.

Wednesday, December 4, 2013

Whose Media?


दिल्ली में मतदान के दिन 'राष्ट्रीय' चैनलो के लिए 'पहली' खबर नारायण साई।
चहुँओर 'साई' का गुणगान फिर भी मेरा 'लोकतंत्र' महान।
किसकी आवाज़, किसकी बात, किसका एजेंडा ?

Sunday, December 1, 2013

Delh College before 1857




अंग्रेजों ने भारत में कलकता, मद्रास, बम्बई तथा इलाहबाद के बाद पांचवां विश्वविद्यालय लाहौर में ही स्थापित किया था। दिल्ली कॉलेज जो सन् 1864 में स्थापित किया गया, को भी सन् 1877 में लाहौर हस्तांतरण कर दिया गया था। इसी प्रकार दिल्ली से पहले लाहौर में सन् 1865 में उच्च न्यायालय स्थापित किया जिसके पीछे अंग्रेजों के अपने स्वार्थ जुड़े थे।

thgir-wrong


 किसी 'दूसरे' के गलत से पहले का गलत 'सही' नहीं हो जाता। 

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...