Wednesday, August 29, 2012

Love:Intensity

प्यार किया, आग के दरिया में डूबने का मतलब समझ आया ।
प्यार नहीं मिला, डूबकर जाना समझा ।

Thursday, August 23, 2012

Ups and Downs of Life

One should not worry too much about the transitional phase in the life. While acting cautiously, one should learn to accept the ups and downs of life. Then only one would be able to stabilize relationship and feel intense emotions about life.

Monday, August 20, 2012

Silence-Graveyard

Peace is a must but silence of graveyard is not welcome anywhere in the world.

Inward Journey: Paul Cezanne

When something doesn’t work, do not blame someone else and look for possible causes in you.

Photo Credit: Painting of Paul Cezanne, Five Bathers (1885-57)

India-Spritual Books

"The books on spiritualism have become the USP (unique selling proposition) of the Indian publishing houses. These books are selling like hot cakes in foreign countries."
M.A. Sikander, Director, National Book Trust
.

British Columbia University: Study on Indian Corporate

कनाडा की नॉर्थन ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के डी अजित, हान डोंकर और रवि सक्सेना ने 1,000 निजी और सरकारी शीर्ष भारतीय कंपनियों के बोर्ड सदस्यों का अध्ययन किया है.
अध्ययन में पाया गया कि 93 प्रतिशत बोर्ड सदस्य अगड़ी जातियों से थे जबकि अन्य पिछड़ी जातियों से सिर्फ़ 3.8 प्रतिशत निदेशक ही थे.
साठ के दशक से आरक्षण नीति होने के बावजूद अनुसूचित जाति और जनजाति के निदेशक इस कड़ी में सबसे नीचे, 3.5 प्रतिशत ही थे.
शोधकर्ताओं के मुताबिक, "ये नतीजे दिखाते हैं कि भारतीय कॉरपोरेट जगत एक छोटी और सीमित दुनिया है. कॉरपोरेट जगत में सामाजिक संबंधों या नेटवर्किंग का बहुत महत्व है. भारतीय कॉरपोरेट बोर्डरूम अब भी योग्यता या अनुभव से ज़्यादा जाति के आधार पर काम करता है."
http://www.bbc.co.uk/hindi/business/2012/08/120814_indian_boardroom_ar.shtml

Sonu Nigam-Double meaning songs

अब गायक कॉन्सर्ट्स और प्राइवेट एलबम्स के जरिए भी अपना पसंदीदा काम कर सकते हैं, जो उन्हें रचनात्मक संतुष्टि और पैसे दोनों दे सकता है. इसलिए अब मैं फिल्मों में वही गाने गाता हूं जो मुझे अच्छे लगते हैं और संतुष्टि देते हैं. मैं जानते-बूझते किसी घटिया और बेतुके गाने का हिस्सा नहीं बन सकता.
-सोनू निगम, गायक
(मैंने करियर की शुरुआत में जरूर ऐसे कुछ गाने गाए जिनमें द्विअर्थी शब्द थे. लेकिन उस वक्त मेरे हाथों में कोई ताकत नहीं थे. मैं इंडस्ट्री में नया-नया था. लेकिन अब मैं परिपक्व हो चुका हूं. एक गायक के तौर पर स्थापित हो चुका हूं. एक कलाकार को कई बार अपने आप पर अंकुश लगाना जरूरी हो जाता है.)

http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/2012/08/120817_sonu_nigam_pkp.shtml

indian women:cigarette


यदि कोई लड़की सिगरेट पीती है तो इसका मतलब ऐसा नहीं है कि उसके सामने जो पहला इंसान आएगा वो उसके साथ सोने के लिए तैयार हो जाएगी. लोग ऐसा ही समझते हैं कि जो लड़की सिगरेट पीती है वो किसी के भी साथ सो सकती है. मुझे नहीं पता कि ऐसा क्यों माना जाता हैं क्योंकि अगर एक आदमी सिगरेट पीता है ये एकदम साधारण बात मानी जाती है और सिगरेट पीने को नैतिकता से जोड़ा नहीं जाता.

North Eastern states of India

नागालैंड, मेघालय और मिज़ोरम ऐसे राज्य हैं जहां लगभग पूरी आबादी कैथोलिक मज़हब को मानती है जबकि बोडोलैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाके कैथोलिक है.............
नागालैंड और मिज़ोरम के देहातों में आम जीवन गांव के गिरजाघर के इर्द गिर्द घूमता है.

http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/08/120817_north_east_analysis_da.shtml

Prithviraj grave in Afghanistan

‘Prithviraj grave in Afghanistan’
Monday, August 01, 2005

NEW DELHI: While the legendary Rajput king Prithviraj Chauhan is a hero in India, his ‘grave’ in Afghanistan is visited by the locals even today to vent their anger for killing Muhammed Ghori, 900 years ago says a new book.The book “Arms and Armour: Traditional Weapons of India” by E Jaiwant Paul says on the outskirts of Ghazni are two domed tombs. The larger was of Ghori and few meters away was a second smaller tomb of Prithviraj Chauhan. “In the centre of the second tomb was a bare patch of earth where the actual grave should have been. Hanging over this spot from the top of the dome is a long, thick rope ending in a knot at shoulder height. Local visitors would grab hold of this knot in one hand and stamp vigorously and repeatedly with one foot on the bare patch in the centre of the tomb,” says Paul, a weapons collector.Paul, who saw this on his visit to Afghanistan says on seeking an explanation, he found that the Afghans still stamped on his grave because Prithviraj killed Ghori, 900 years ago, a PTI report said on Sunady.

Sunday, August 19, 2012

Prithviraj Chauhan-chandar bardai


चार बाँस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान !
-चंदर बरदाई

Soft porn

Soft porn. New height of nudity in open with film poster while using bra instead of parachute with instigating sexual feelings in open.

India-Attack=Survival

भारत पर मुस्लिम आक्रमणों एवं शासन का काल बहुत लम्बा रहा। सन् 700 से लेकर 1803 में दिल्ली में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के प्रवेश तक, लगभग 1100 वर्ष तक भारत मुस्लिम आक्रमणों एवं शासन से आक्रांत रहा। मुस्लिम आक्रमणकारी जहां कहीं गए, वहां का लगभग पूरा समाज अपनी परम्परागत उपासना पद्धति को छोड़कर इस्लाम में दीक्षित हो गया, अपने पुराने इतिहास व संस्कृति से संबंध विच्छेद कर बैठा। पर भारत में ऐसा क्यों नहीं हो पाया?

Saturday, August 18, 2012

Action is better than thought

विचार से नहीं व्यवहार से जंग जीतो सिर्फ विचार से तो बस व्याभिचार ही फैलता है.

Hollywood-Joseph Kanon

An industry (Hollywood) made rich and powerful by the war, now so blinded by its success, and moral cowardice, that it is unable to defend itself against opportunistic political forces.
-Joseph Kanon, Award-winning author of bestsellers Los Alamos, Alibi and The Good German.

http://www.nypl.org/press/press-release/2010/08/02/researching-and-writing-bestsellers-interview-joseph-kanon-full-versi

Destiny-Approach

नीयत और नियति का गर्भनाल का रिश्ता है ।

mother-magnet

मां का चुंबक ही ऐसा है चाहे अनचाहे हर कोई खींच जाता है ।

Friday, August 17, 2012

Writing:Home Government

कुछ लिखने का मौका मिले तो ध्यान रखना नहीं तो घर की सरकार ब्रेनवाश करके ही मानेगी ।

Lotus: Sun

कमल कीचड़ में पैदा होता है पर खिलता है वह सूर्य के संस्पर्श से ।

Bhism granti


कुर्सी नहीं छोड़ती या उम्रदराज नेता नहीं छोड़ते ।

मोह या व्यामोह !

वानप्रस्थ या संशयग्रस्त ?

Mumbai:Blackhole

पता नहीं कितने युवा आंखों में सपने लिए समुंदर किनारे मायानगरी में आते हैं । कितने मुंबई के किनारे पर आने वाली लहरों पर आकर दम तोड़ देते है । और खत्म हो जाते हैं सपने, बंद आंखों में सदा के लिए । समुंदर किनारे, पानी की सतह पर आ जाती लाशें, गुमनामी के गहरे अंधेरे में डूबकर । सपना देखने वाली आंखें और शख्स दोनों हो समां जाते है चमकते ब्लैक होल में मुंबई के ।

Tuesday, August 14, 2012

Person-Mehandi


धीरे-धीरे रंग लाती है हिना,
खिलता है हर शख्स, आहिस्ता-आहिस्ता

Ceasefire violations on Pakistan Border

The government has accepted the ceasefire violations on the western front of the country with Pakistan. As per government statement in the parliamnet in last three years, 154 ceasefire violations have been reported along the Line of Control (LoC) at the Indo-Pakistan border. Out of these 145, 28 violations were reported in 2009, 44 during 2010, 51 in 2011 and 31 between January and August till date.

Infinity

1+1=Infinity

Sunday, August 12, 2012

Jaipur-Vidyadhar

The founder of the Walled City of Jaipur, Sawai Jai Singh (1688-1743) was ably assisted by his Diwan Vidyadhar. Sawai Jai Singh made it obligatory for his thakurs (nobles) to build their houses in the new walled city of Jaipur. But it was Vidyadhar who ran the show. He enforced the collection of 10% of the thakurs’ income to cover costs of building their houses. Vidyadhar also implemented several rules to ensure conformity in the design and execution of Jai Singh's planned city. As several documents of the time attest "Do as Vidyadhar says" used to be a routine part of the orders signed by Jai Singh.

Life:Flow




कोई अपराधबोध नहीं, कोई पछतावा नहीं, जीवन चलने का नाम है, किसी के साथ, किसी के बिना भी । अपनी चिता पर स्वयं ही चढ़ने के संकल्प के साथ, घबराना कैसा ।

no apology, no hangover, life must go on........with you, without you and even without me...............

Saturday, August 11, 2012

Ramchanra Guha:Nehru

Nehru nurtured institutions of democracy – an independent election commission, an independent judiciary, bureaucracy autonomous of political interference, pluralism, secularism.
Ramchanra Guha, Historian, writer of India after Gandhi

Julius Caesar:William Shakespeare

“The evil that men do lives after them; The good is oft interred with their bones.”
-Mark Antony in Julius Caesar: Act 3 Scene 2 (William Shakespeare)

Friday, August 10, 2012

Trikal Sandhya: Mantra



त्रिकाल संध्या

त्रिकाल संध्या - जो कहती है दिन में सिर्फ तीन बार भगवान को याद करना ।
सुबह उठने के बाद , दोपहर को भोजन के समय और रात को सोने से पहले । तीनों कालों के लिए स्वाध्याय ने हमें अलग अलग तीन मंत्र दिए है।

सुबह उठने के बाद :

1. कराग्रे वसते लक्ष्मी, करमूले सरस्वती
करमध्ये तू गोविंद प्रभाते कर दर्शनं।
हमारे हाथ के अग्र भाग में लक्ष्मी, तथा हाथ के मूल मे सरस्वती का वास है अर्थात भगवान ने हमारे हाथों में इतनी ताकत दे रखी है,ज़िसके बल पर हम धन अर्थात लक्ष्मी अर्जित करतें हैं। जिसके बल पर हम विद्या सरस्वती प्राप्त करतें हैं।इतना ही नहीं सरस्वती तथा लक्ष्मी जो हम अर्जित करते हैं, उनका समन्वय स्थापित करने के लिए प्रभू स्वयं हाथ के मध्य में बैठे हैं। ऐसे में क्यों न सुबह अपनें हाथ के दर्शन कर प्रभू की दी हुई ताकत का अहसास करते हुए तथा प्रभू के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए दिन की अच्छी शुरूवात करें।

2. समुद्रवसने देवि पर्वतस्तन मंडले
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पशं क्षमस्व में।
इस श्लोक के अंर्तगत धरती माँ से माफी की याचना की गई है। कहा गया है, हे धरती माँ मै ना जाने कितने पाप कर रहा हूँ तुझ पर, रोज मैं तेरे उपर चलता हूँ, तुझे मेरे चरणों का स्पर्श होता है, फ़िर भी तू मुझ जैसों का बोझ उठाती है अतः तू मुझे माफ कर दे। यहां धरती माँ को बिष्णु की पत्नि कहा गया है।

3. वसुदेव सुतं देवं ,कंस चारूण मर्दनं
देवकी परमानंदं, कृष्णं वंदे जगतगुरूं।
वसुदेव के पुत्र, कंस तथा चारूण का मर्दन करने वाले, देवकी के लाल , भगवान श्रीकृष्ण ही इस जगत के गुरू हैं। उन्हें कोटि कोटि प्रणाम।

दोपहर के खाने के समयः

यज्ञशिष्टाशिनः संतो मुच्च्यंते सर्वकिल्बिषैः ।
भुञ्जते ते त्वधं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात ।।
यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत ।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरूष्व मदर्पणम ।।
अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः ।
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यान्नं चतुविधम ।।
ॐ सह नाववतु सह नव भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विध्दिषावहै ।।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।।

यज्ञशिष्ट याने यज्ञ से देवों को समर्पण करके बाकी बचा हुआ उपभोगने वाला सज्जन सभी पापों से मुक्त होता है, जो केवल अपने लिए ही स्वार्थ सिध्दि से अन्न पकाता है वह पाप का अन्न भक्षण करता है। हे अर्जुन तू जो जो कर्म करेगा, जो जो सेवन, जो जो हवन करेगा, जो जो देगा अथवा जो जो तप याने व्रताचरण करेगा वह सभी मुझे परमेश्वर को अर्पण कर। मै परमात्मा अग्निरूप और सभी प्राणियों के आश्रय से प्राण, अपान वगैरह आयुओं से युक्त होकर चतुर्विद्य खाद्य, पेय, लेह्य, और चौष्य अन्न पचाता हूँ। हे परमात्मन् हम दोनो का गुरू तथा शिष्य का बराबर रक्षण कर, हम दोनों ही समान बल प्राप्त करें, हम दोनो में परस्पर द्वेष न हो। हम दोनो की अध्ययन की हुई विद्या तेजस्वी रहे। हमारे सभी संतापों की निवृत्ति होने दो।

हमें भगवान की कृपा से अन्न मिलता है। पकाने वाला या उगाने वाला भले कोई भी हो, तो भी उसके पीछे भगवान की ही कृपा होती है। हम कहते हैं कि किसान बीज बोते हैं और तब अन्न मिलता है, लेकिन प्रथम बीज कहाँ से आया। खेत में चार दानें बोनें के बाद चार हजार दाने बनाने मे किसान की कौन सी शक्ति काम मे आयी। जो जीव को जन्म देता ह,ै वही उसके पोषण की चिंता करता है। जिसने दांत दिये उसी ने दानें दिये। अरे, उस करूणानिधि नें अपने शरीर की रचना भी कैसे की है। ज्वार बाजरे की रोटी खायें या गेहूँ की रोटी खायें सभी का खून लाल ही बनता है। खाने के बाद अन्न किस प्रकार पचता है, इसकी चिंता कौन करता है। अन्नरस खून में मिलकर सतत् शक्तिप्रदान करता है, इतना ही हम जानते हैं। बडे बडे वैज्ञानिक भी विविध पदार्थों से एक ही रसायन नही बना पाते है। ऌसीलिए इस अदृश्य शक्ति को जिसने हमारे लिए अन्न उगाया और् हमारा खाया हुया पचाया, लाल खून बनाया है, उसे खाते समय कृतज्ञतार्पूवक नमस्कार करना ही हमारी संस्कृती का आदेश है। खाना खाते समय भगवान को याद करना ही चाहिए।

भोजन सिर्फ उदर भरण ही नहीं है वह एक यज्ञकर्म है। सभी यज्ञों का स्वामी और भोक्ता भगवान ही है।

TV Serials: Joshi

वे (मनोहर श्याम जोशी) भारत में हिन्दी टी0वी0 धारावाहिकों के जनक माने जाते हैं। उनके द्वारा लिखित सोप ओपेरा ‘हम लोग‘ हिन्दी का और भारत का ऐसा धारावाहिक बना जो अपने समय में दुनिया के सबसे ज्यादा देखे जाने वाले धारावाहिकों में शामिल था। ‘हम लोग‘ की विशेषता भारतीय शहरी मध्य और निम्न मध्य वर्ग की आकांक्षाओं-संघर्षों की ऐसी कहानी है, जो बेहद सहजता, शालीनता व संवेदनशीलता के साथ कही गई है। जब ‘हम लोग‘ धारावाहिक शुरू होता था तो बाहर सड़कों और गलियों में कोई नजर नहीं आता था। उन्हीं दिनों एक अखबार में ‘हम लोग टाइम‘ नाम से एक कार्टून प्रकाशित हुआ था, जिसमें मंत्री जी की सभा में किसी के भी न आने पर वे अपने सेक्रेटरी को डाँट पिलाते हैं- ‘‘किस मूर्ख ने तुम्हें सभा का यह वक्त रखने के लिए कहा था? जानते नहीं कि यह हम लोग टाइम है।‘‘ हिन्दी साहित्य के उत्तर आधुनिक काल में लिखे उनके धारावाहिकों- बुनियाद, कक्का जी कहिन, मुंगेरी लाल के हसीन सपने, जमीन आसमान, गाथा हमराही इत्यादि ने भारतीय मनोरंजन को एक नई दिशा दी एवं दूरदर्शन के क्षेत्र में भी क्रान्ति लाई। ‘बुनियाद‘ तो एक ऐसे परिवार की कहानी थी जो सन् 1947 में विभाजन के बाद भारत आया था। ‘हम लोग‘ और ‘बुनियाद‘ धारावाहिक जोशी की किस्सागोई के प्रत्यक्ष उदाहरण रहे हैं। टी0वी0 धारावाहिकों के साथ-साथ जोशी जी ने कई फिल्मों की पटकथा भी लिखी। इनमें हे राम, अप्पू राजा, भ्रष्टाचार और पापा कहते हैं इत्यादि प्रमुख हैं।

Manhohar shayam Joshi-Journalism

मैं विद्वान नहीं हूँ। मेरी विद्वता मात्र पत्रकारिता के स्तर की है। थोड़ा यह भी सूँघ लिया, थोड़ा वह भी सूँघ लिया। मैं तो प्रिन्ट मीडिया का आदमी हूँ।
-मनोहर श्याम जोशी

Prithviraj Chauhan

Samrat Prithviraj Chauhan (1162-1192 A.D.) ruled from Delhi at a crucial juncture of India's history. Known for his bravery, chivalry and kindness, he has been immortalised in Prithvirajaraso, an epic poem composed by one of his associates Chand Bardai.

The manner in which he wooed and won Sanyogita, daughter of King Jayachandra of Kannauj has made him a romantic hero. The forces of Muhammed Ghuri regrouped themselves and a battle took place at Tarain in 1192, in which Prithviraj Chauhan was defeated and taken prisoner.

Krishn-Krishna-Lohia


गज को जब ग्राह ग्रस्यो, दुस्सासन चीर हरयो,
सभा बीच कृष्ण-कृष्ण द्रौपदी पुकारी ।
इतने में हरि आइ गये, बसनन आरूढ़ भये,
सूरदास द्वारे ठाढ़ो, आँधरो भिखारी ।
यह कृष्णा तो कृष्ण के ही लायक थी । महाभारत का नायक कृष्ण , नायिका कृष्णा । कृष्णा और कृष्ण का सम्बन्ध भी विश्व – साहित्य में बेमिसाल है । दोनों सखा – सखी ही क्यों रहे । कभी कुछ और दोनों में से किसीने होना चाहा ? क्या सखा – सखी का सम्बन्ध पूर्व रूप से मन की देन थी या उसमें कुरु – धुरी के निर्माण और फैलाव का अंश था ? जो हो , कृष्ण और कृष्णा का यह सम्बन्ध राधा और कृष्ण के सम्बन्ध से कम नहीं , लेकिन साहित्यकारों और भक्तों की नजर इस ओर कम पड़ी है । हो सकता है कि भारत की पूर्व – पश्चिम एकता के इस निर्माता को अपनी ही सीख के अनुसार केवल कर्म , न कि कर्मफल का अधिकारी होना पड़ा , शायद इसलिए कि यदि वह वस्य कर्मफल-हेतु बन जाता , तो इतना अनहोना निर्माता हो ही नहीं सकता था । उसने कभी लालच न की कि अपनी मथुरा को ही धुरी – केन्द्र बनाये , उसके लिए दूसरों का हस्तिनापुर ही अच्छा रहा । उसी तरह कृष्णा को भी सखी रूप में रखा , जिसे संसार अपनी कहता है , वैसी न बनाया । कौन जाने कृष्ण के लिए यह सहज था या इसमें भी उसका दिल दूखा था ।
कृष्णा अपने नाम के अनुरूप साँवली थी , महान सुन्दरी रही होगी । उसकी बुद्धि का तेज , उसकी चकित हरिणी आँखों में चमकता रहा होगा । महाभारत की नायिका कृष्णा है ।गोरी की अपेक्षा साँवला अधिक सजीव है । जो भी हो , इसी कृष्ण – कृष्णा सम्बन्ध का अनाड़ी हाथों फिर पुनर्जन्म हुआ। न रहा उसमें कर्मफल और कर्मफल हेतु त्याग । कृष्णा पांचाल यानी कनौज के इलाके की थी , संयुक्ता भी । धुरी – केन्द्र इन्द्रप्रस्थ का अनाड़ी राजा पृथ्वीराज अपने पुरखे कृष्ण के रास्ते न चल सका ।जिस पांचाली द्रौपदी के जरिये कुरु - धुरी की आधार - शिला रखी गयी , उसी पांचाली संयुक्ता के जरिये दिल्ली – कनौज की होड़ जो विदेशियों के सफल आक्रमणों का कारण बना । कभी – कभी लगता है कि व्यक्ति का तो नहीं लेकिन इतिहास का पुनर्जन्म होता है , कभी फीका कभी रँगीला । कहाँ द्रौपदी और कहाँ संयुक्ता , कहाँ कृष्ण और कहाँ पृथ्वीराज , यह सही है । फीका और मारात्मक पुनर्जन्म , लेकिन पुनर्जन्म तो है ही ।
कृष्ण की कुरु - धुरी के और भी रहस्य रहे होंगे । कृष्ण आदर्शवादी बहुरूप एकत्व का का निर्माता था । जहाँ तक मुझे मालूम है ,अभी तक भारत का निर्माण भौतिकवादी बहुरूप एकत्व के आधार पर कभी नहीं हुआ । चिर चमत्कार तो तब होगा जब आदर्शवाद और भौतिकवाद के मिलेजुले बहुरूप एकत्व के आधार पर भारत का निर्माण होगा । अभी तक तो कृष्ण का प्रयास ही सर्वाधिक माननीय मलूम होता है , चाहे अनुकरणीय राम का एकरूप एकत्व ही हो । कृष्ण की बहुरूपता में वह त्रिकाल – जीवन है जो औरों में नहीं ।
कृष्ण यादव-शिरोमणि था , केवल क्षत्रीय राजा ही नहीं , शायद क्षत्रीय उतना नहीं था , जितना अहीर । तभी तो अहीरिन राधा की जगह अडिग है ,क्षत्राणी द्रौपदी उसे हटा न पायी । विराट विश्व और त्रिकाल के उपयुक्त कृष्ण बहुरूप था ।
बेचारे कृष्ण ने इतनी नि:स्वार्थ मेहनत की , लेकिन जन-मन में राम ही आगे रहा है । सिर्फ बंगाल में ही मुर्दे – ” बोलो हरि , हरि बोल ” के उच्चारण से – अपनी आख़री यात्रा पर निकाले जाते हैं , नहीं तो कुछ दक्षिण को छोड़ कर सारे भारत में हिन्दू मुर्दे – ” राम नाम सत्य है ” के साथ ही ले जाये जाते हैं ।
बंगाल के इतना तो नहीं , फिर भी उड़ीसा और असम में कृष्ण का स्थान अच्छा है। कहना मुशकिल है कि राम और कृष्ण में कौन उन्नीस , कौन बीस है । सबसे आश्चर्य की बात है कि स्वयं ब्रज के चारों ओर की भूमि के लोग भी वहाँ एक – दूसरे को ‘ जैरामजी ” से नमस्ते करते हैं। सड़क चलते अनजान लोगों को भी यह ” जैरामजी ” बड़ा मीठा लगता है , शायद एक कारण यह भी हो ।
राम त्रेता के मीठे , शान्त और सुसंस्कृत युग का देव है । कृष्ण पके , जटिल , तीखे और प्रखर बुद्धि युग का देव है । राम गम्य है। कृष्ण अगम्य है । कृष्ण ने इतनी अधिक मेहनत की उसके वंशज उसे अपना अंतिम आदर्श बनाने से घबड़ाते हैं , यदि बनाते भी हैं तो उसके मित्रभेद और कूटनीति की नकल करते हैं , उसका अथक निस्व उनके लिए असाध्य रहता है । इसीलिए कृष्ण हिन्दुस्तान में कर्म का देव न बन सका ।
कृष्ण ने कर्म राम से ज्यादा किये हैं । कितने सन्धि और विग्रह और प्रदेशों के आपसी सम्बन्धों के धागे उसे पलटने पड़ते थे ।यह बड़ी मेहनत और बड़ा पराक्रम था। इसके यह मतलब नहीं की प्रदेशों के आपसी सम्बन्धों में में कृष्णनीति अब भी चलायी जए । कृष्ण जो पूर्व – पश्चिम की एकता दे गया, उसी के साथ – साथ उस नीति का औचित्य भी खतम हो गया । बच गया कृष्ण का मन और उसकी वाणी । और बच गया राम का कर्म । अभी तक हिन्दुस्तानी इन दोनों का समन्वय नहीं कर पाये हैं । करें , तो राम के कर्म में भी परिवर्तन आये । राम रोऊ है , इतना कि मर्यादा भंग होती है ।
कृष्ण कभी रोता नहीं । आँखें जरूर डबडबाती हैं उसकी, कुछ मौकों पर , जैसे जब किसी सखी या नारी को दुष्ट लोग नंगा करने की कोशिश करते हैं । कैसे मन और वाणी थे उस कृष्ण के । अब भी तब की गोपियाँ और जो चाहें वे ,उसकी वाणी और मुरली की तान सुन कर रस विभोर हो सकते हैं और अपने चमड़े के बाहर उछल सकते हैं । साथ ही कर्म-संग के त्याग , सुख-दुख,शीत-उष्ण,जय-पराजय के समत्व के योग और सब भूतों में एक अव्यव भाव का सुरीला दर्शन ,उसकी वाणी में सुन सकते हैं ।संसार में एक कृष्ण ही हुआ जिसने दर्शन को गीत बनाया ।
वाणी की देवी द्रौपदी से कृष्ण का सम्बन्ध कैसा था । क्या सखा – सखी का सम्बन्ध स्वयं एक अन्तिम सीढ़ी और असीम मैदान है , जिसके बाद और किसी सीढ़ी और मैदान की जरूरत नहीं ? कृष्ण छलिया जरूर था, लेकिन कृष्णा से उसने कभी छल न किया । शायद वचन – बद्ध था , इसलिए । जब कभी कृष्णा ने उसे याद किया , वह आया । स्त्री – पुरुष की किसलय – मित्रता को , आजकल के वैज्ञानिक , अवरुद्ध रसिकता के नाम से पुकारते हैं । यह अवरोध सामाजिक या मन के आन्तरिक कारणों से हो सकता है ।
पाँचों पाण्डव कृष्ण के भाई थे और द्रौपदी कुरु – पांचाल संधि की आधार- शिला थी ।अवरोध के सभी कारण मौजूद थे । फिर भी , हो सकता है कि कृष्ण को अपनी चित्तप्रवृत्तियों का कभी विरोध न करना पड़ा हो । यह उसके लिए सहज और अन्तिम सम्बन्ध था अगर यह सही है , तो कृष्ण – कृष्णा के सखा – सखी सम्बन्ध के ब्योरे पर दुनिया में विश्वास होना चाहिए और तफ़सील से , जिससे से स्त्री – पुरुष सम्बन्ध का एक नया कमरा खुल सके । अगर राधा की छटा निराली है , तो कृष्ण की घटा भी । छटा में तुष्टिप्रदान रस है , घटा में उत्कंठा-प्रधान कर्त्तव्य ।
( ” जन ” , १९५८ जुलाई से )

Thursday, August 9, 2012

Purna Purush:Krishna

Every religion, up to now, has divided life into two parts, and while they accept one part they deny the other, Krishna alone accepts the whole of life. Acceptance of life in its totality has attained full fruition in Krishna.
That is why India held him to be a perfect incarnation of God, while all other incarnations were assessed as imperfect and incomplete. Even Rama is described as an incomplete incarnation of God. But Krishna is the whole of God. And there is a reason for saying so. The reason is that Krishna has accepted and absorbed everything that life is.
Albert Schweitzer made a significant remark in criticism of the Indian religion. He said that the religion of this country is life negative. This remark is correct to a large extent, if Krishna is left out. But it is utterly wrong in the context of Krishna. If Schweitzer had tried to understand Krishna he would never have said so.
(Photo: The Infant Krishna-Nandlal Bose)

Red Fort Wall, Delhi

Bikaner Fort

Rammanohar Lohia-Sri krishna

कृष्ण ने आत्मा के गीत गाए। उन्होंने आत्मा को अजर-अमर व अविनाशी बताया। उन्होंने कर्म के गीत गाए और मनुष्य को, फल की अपेक्षा किए बिना, और उसका माध्य मव कारण बने बिना। निर्लिप्त भाव से डटे रहने के लिए कहा। उन्होंने समत्व भाव, सर्दी-गर्मी, जीत-हार, हानि-लाभ इत्यादि जीवन में आने वाले उद्वेलनों में समान भाव से रहने को कहा।
-डॉ. राममनोहर लोहिया

Krishna-Life circle

कृष्ण ऐसी जिन्दगी है, जिस दरवाजे पर मौत बहुत रूपों में आती है और हारकर लौट जाती है। बहुत रूपों में। वे सब रूपों की कथाएँ हमें पता हैं कि कितने रूपों में घेरती हैं और हार जाती हैं। लेकिन कभी हमें खयाल नहीं आया कि इन कथाओं को हम गहरे समझने की कोशिश करें। सत्य सिर्फ उन कथाओं में एक है, और वह यह है कि कृष्ण जीवन की तरफ रोज जीतते चले जाते हैं और मौत रोज हारती चली जाती है। मौत की धमकी एक दिन समाप्त हो जाती है। जिन-जिन ने चाहा है जिस-जिस ढंग से चाहा है कृष्ण मर जाएँ, वह-वह ढँग असफल हो जाते हैं और कृष्ण जिए ही चले जाते हैं। इसका मतलब है मौत पर जीवन की जीत।

Sunil Gavaskar

"As my opening partner, Srikkanth somehow liberated me as a batsman. He used to encourage me to play the shots that I wouldn't otherwise offer. He had a positive influence on me."
-Sunil Gavaskar, Replying to a query on IPL at an event in Toronto to promote cricket among the Indo-Canadians.

Mary Kom




“We are Indian. Ya, the face is different. But heart is Indian.”
-Mary Kom, in Intelligent Life magazine
http://​moreintelligentlife.com/​content/lifestyle/​India's-shot-gold?page=full

Saturday, August 4, 2012

Munnawar Rana


मुहाजिर है मगर हम एक दुनिया छोड़ आये है
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आये है
वुजू करने को जब भी बैठते है याद आता है कि हम उजलत में
जमुना का किनारा छोड़ आये है
तयम्मुम के लिए मिट्टी भला किस मुंह से हम ढूंढें
कि हम शफ्फाक़ गंगा का किनारा छोड़ आये है
हमें तारीख़ भी इक खान - ऐ- मुजरिम में रखेगी
गले मस्जिद से मिलता एक शिवाला छोड़ आये है
ये खुदगर्ज़ी का जज़्बा आज तक हमको रुलाता है
कि हम बेटे तो ले आ ये भतीजा छोड़ आये है
न जाने कितने चेहरों को धुंआ करके चले आये
न जाने कितनी आंखों को छलकता छोड़ आये है
गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब,
इलाहाबाद में कैसा नाज़ारा छोड़ आए हैं
शकर इस जिस्म से खिलवाड़ करना कैसे छोड़ेगी
के हम जामुन के पेड़ों को अकेला छोड़ आए हैं

(मुनव्वर राना की मुहाजिरनामा में से कुछ अशआर)

Writer-Reader

लिखने वाले का असली पुरस्कार पाठकों का कृति से जुड़ाव महसूस करना ही है ।

Wednesday, August 1, 2012

Distance-Delhi

दिल्ली में लंबी दूरी की वजह से तसल्ली से मिलना भी एक सपना हो गया है.......

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...