Monday, June 30, 2014

indian cinema: soft power (भारतीय सिनेमा: सॉफ्ट पावर)




धीरे-धीरे भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सवों में मान्यता तथा सम्मान प्राप्त हो रहा है। आज भारतीय सिनेमा ने बहुत से देशों में बाजार ढूंढ निकाला है। यह इस बात का बड़ा उदाहरण है कि भारत की साफ्ट पावर किस तरह विश्व भर में देश का छवि का बना सकती है।
भारतीय सांस्कृतिक विरासत समृद्ध तथा विविध है और यह दुनिया को भारत की—एक ऐसे देश की कहानी सुनाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण आधार रही है और अभी भी बनी हुई, जो लाखों वर्ष पुराना है, जो समसामयिक विश्व में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है तथा जिसका भविष्य उज्जवल है।

http://dillifirst.com/hindi/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A5%89%E0%A4%AB%E0%A5%8D%E0%A4%9F-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B0/ 

Sunday, June 29, 2014

Improvement stats from 'I' (हंस अकेला)




जीवन में दूसरे की आलोचना, शिकायत, निंदा और तुलना करने की बजाय अपने पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास हो तो जीवन का अर्थ ही बदल जाएगा।

History lies (इतिहास सच नहीं होता)



अच्छी चीजें तो तारीख में दर्ज़ ही नहीं हो पाती और जो दर्ज़ होती हैं, उनमें सच्चाई नहीं होती। 
मसलन आज ब्राज़ील की जीत और चिली की हार।
अच्छा खेल कर भी चिली हार गया और अपेक्षा से कमतर प्रदर्शन के बावजूद ब्राज़ील जीत गया सिर्फ अपने गोल रक्षक के कारण।  

Mirage of equality in Socialist Red countries (व्यक्ति स्वातंत्र्य का अभाव)


कथित साम्यवादी देशों में ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला, उल्टा व्यक्ति स्वातंत्र्य का अभाव, स्थायी रूप से रचना के भाव के अकाल का कारण बन गया. ना माया मिली ना राम.

Saturday, June 28, 2014

sex in education (सेक्स इन एजुकेशन: आर्यभट्ट से आलिया भट्ट तक)




यह कहाँ आ गए हम: आर्यभट्ट से आलिया भट्ट तक...
हाल में जब एक स्कूल में जब शिक्षिका ने छात्रों को आर्यभट्ट पर निबंध लिखने को कहा तो एक छात्र ने आलिया भट्ट पर कलम चला डाली । (फेसबुक पर शिक्षिका की वाल से साभार)

Aryabhatt to Alia Bhatt: Where we have reached...
Recently when a school teacher asked the students to write an essay on Aryabhatt, one student wrote on Alia Bhatt. 
(The teacher had shared the incident on her facebook wall)
  

Thursday, June 26, 2014

Ananya's NSD Certificate



मेरी बेटी अनन्या की मेहनत का सुफल 

(जिसमें उसके दादाजी और माँ का अन्यतम योगदान रहा)


Wednesday, June 25, 2014

Pul Mithai (पुल मिठाई)





पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास एक विचित्र नाम वाला भीड़भाड़ वाला स्थान है। ‘पुल मिठाई’ या ‘मिठाई पुल’ यानी मिठाई से जुड़ा हुआ एक पुल, जिसका इतिहास 18 वीं सदी के अंत जितना पुराना है। यह स्थान पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से पीली कोठी की ओर जाने वाले रास्ते पर है। उसका एक हिस्सा जहां कुतुब रोड और आजाद मार्केट रोड मिलती हैं और उसके नीचे से दो रेल लाइनें गुजरती है। आज इस गंदे रास्ते पर अस्थायी छतरियां के नीचे से मसाले, सूखे मेवे और अनाज बेचते खुदरा विक्रेताओं की दुकानें हैं। वैसे इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि यहां सन् 1783 में यह पुल क्यों था जबकि पहली रेलवे लाइन सन् 1860 के बाद ही बिछी।

कैसे पड़ा नाम
इतिहास की किताबों को खंगाले तो इसके नाम को लेकर अलग प्रकार की जानकारी मिलती है। बताते हैं कि पुल मिठाई का नाम सरदार बघेल सिंह से जुड़ा है, जो मिठाई के बहुत शौकीन थे। उस दौर में, यहां पर मिठाइयों की एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था और बघेल सिंह ने सबसे अच्छी मिठाई बनाने वालों को इनाम दिए थे। इस घटना के बाद यह स्थान पुल मिठाई के नाम से मशहूर हो गया। कहा यह भी जाता है कि फैंथम के 1857 की पहली आजादी की लड़ाई पर लिखे उपन्यास मरियम, जिस पर बाद में जुनून फिल्म बनी, में अजीब बात कही गई है कि जिन्न मिठाई का पुल से मिठाई लाते थे और वहां के दुकानदार देर रात तक अपनी दुकानें खोल कर रखते थे। बताते हैं कि सन 1957 तक ऐसी कई दुकानें वहां मौजूद थी।

कौन थे बघेल सिंह
इतिहासकारों के अनुसार मराठा सेना के लगातार हमलों से भयभीत मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय (1761) के कहने पर बेगम समरू ने सिख सरदारों को मदद के लिए आमंत्रित किया। सरदार बघेल सिंह के नेतृत्व में सिख सेना के आगमन की सूचना मिलने पर मुगल बादशाह ने घबराकर उसकी मदद के लिए आए सिखों के प्रवेश को रोकने के लिए शहर के दरवाजे बंद करने का आदेश दिया। उसके बावजूद, सिख सेना ने अजमेरी गेट से शहर में प्रवेश किया और तुर्कमान गेट के इलाके में आग लगा दी। उन्होंने शहर में लूटपाट की और रात में मजनू का टीला पर आराम किया। सरधना की बेगम समरू सिखों के साथ वादाखिलाफी करने के कारण मुगल बादशाह से बेहद नाराज हो गई। उसके बाद बादशाह ने बेगम को सरदार बघेल सिंह को बातचीत के लिए उनके पास लाने को कहा। सरदार बघेल सिंह अपने 500 सिख घुड़सवार सैनिकों के साथ आया और उसने बेगम के बगीचे में अपना डेरा डाला जहां पर अब चांदनी चैक इलाके का बिजली के सामान का थोक बाजार भगीरथ प्लेस है।

मदद की दरकार
बेगम समरू ने सरदार बघेल सिंह को बीती बातों को भूलकर मुगल बादशाह की मदद करने की गुजारिश की। उसने कहा कि आप बाबा नानक संबंध रखते हो और हम बाबर के वारिस हैं तो हमें दोस्त बन जाना चाहिए। लेकिन बघेल सिंह ने बेगम समरू के बगीचे में ही बने रहना पसंद किया और मुगल बादशाह से भेंट नहीं की। बेगम समरू ने पतनशील मुगल साम्राज्य को मराठों के कहर से बचाने के लिए सिखों को दिल्ली लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसने बघेल सिंह को कहा कि अगर मुगल और सिख दोस्त बन जाते हैं तो मराठों और अंग्रेजों की फौजें दिल्ली पर हमला करने की हिम्मत नहीं करेंगी। बेगम के साथ आया मुगल वजीर बादशाह शाह आलम से एक फरमान लाया था जिसमें सिखों को उनके ऐतिहासिक गुरूद्वारों के निर्माण की आज्ञा दी गई थी। उन्होंने राजधानी में गुरूद्वारों के निर्माण के लिए चार साल रहने और अपनी सेना के खर्च के लिए मुगलों की ओर से वसूले जाने वाले लगान में से एक हिस्से की मांग की।

सात गुरुद्वारों का निर्माण
बघेल सिंह ने अपनी सेना को दूर भेज दिया और केवल 4000 लड़ाकू सैनिकों को अपने साथ रखा। उन्होंने दिल्ली में सात ऐतिहासिक सिख धार्मिक स्थलों का निर्माण किया, जिनमें माता सुंदरी गुरुद्वारा, बंगला साहिब, बाला साहिब, रकाबगंज, शीशगंज, मोती बाग, मजनू का टीला और दमदमा साहिब शामिल है। सरदार बघेल सिंह को सन् 1761 ईस्वी में सिंधिया मिसल की जत्थेदारी प्राप्त हुई। साहसी और बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी बघेल सिंह गाँव झबाल, अमृतसर के रहने वाले थे। उनके समय में, दिल्ली नजीबुद्दौला के अधिकार में थी। पंजाब लौटते समय बघेल सिंह ने अपना एक वकील लखपतराय दिल्ली दरबार में अपने प्रतिनिधि के रूप में छोड़ दिया। वर्ष 1802 में होशियारपुर में बघेल सिंह का निधन हुआ।


Bhartiya Vidhya Bhavan (भारतीय विद्या भवन)




भारतीय विद्या भवन की स्थापना 1938 में स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, शिक्षाविद् और प्रबल पर्यावरणविद् डॉ. के.एम. मुंशी ने की थी। मुंशी जी मानते थे कि जब तक हमारे लोगों के दिलों-दिमाग में सांस्कृतिक, सदाचार और नैतिक मूल्य समाहित नहीं होंगे तब तक स्वतंत्रता निरर्थक और मूल्यहीन होगी। इसलिए उन्होंने एक ऐसी संस्था के निर्माण की आवश्यकता महसूस की जो छोटे पैमाने पर शिक्षा के माध्यम से ठोस बदलाव लाने की शुरुआत कर सके।

भारतीय विद्या भवन, जिसकी शुरुआत एक संस्था के रूप में की गई थी, आज एक विशाल सांस्कृतिक और शैक्षणिक आंदोलन बन गया है। भारत में अब भवन के 119 केंद्र, विदेशों में 7 केंद्र तथा 367 संघटक संस्थान हैं, जो संस्कृत और वेद से लेकर सूचना प्रौद्योगिकी तक विभिन्न विषयों पर गुणवत्तापूर्ण मूल्य आधारित शिक्षा का प्रसार कर रहे हैं।

old moments (पुराने पलछिन)

 

वह बिछुड़ा मुझसे कुछ इस तरह, मानो जानता ही न हो 
मैंने भी उसकी रुखसत की अदा का, पूरा कर्ज अदा किया 
गुजरा उसकी बगल से कुछ इस तरह, मानो उसका वज़ूद ही न हो 
हम दोनों की इस फितरत का, दुनिया ने पूरा मजा लिया 

Tuesday, June 24, 2014

cross bread




संकर में संकर निभता है, शुद्ध होगा कुछ तो शुद्धता का आग्रह
होगा, नहीं तो सब चलता है ही ! अंतर पड़ता है क्या ?

aalha udal (आल्हा-उदल)




आधुनिक उत्तर प्रदेश स्थित कालिंजर के चन्देल राजा परमार्दिदेव (परमाल ११६५-१२०३ ईस्वी) के आश्रयी (भाट) कवि जगनिक ने परमाल के सहायक और महोबा के सामंत बंधु आल्हा और ऊदल के नाम पर "आल्हखण्ड" रचा 
इसे जन-साधारण में 'आल्हा' नाम से इतनी प्रसिद्धि मिली कि लोकमानस में "आल्हा-ऊदल" दोनों भाई सदा के लिए अमर हो गये। इस मूल काव्य की प्रति के अप्राप्त होने के बावजूद आज भी यह लोकमानस की स्मृति में कायम है।

Poet: Critique (कवि-आलोचक)


 
किसी स्थान पर कवि की प्रतिमा तो जरूर देखने को मिलेगी पर कदाचित किसी आलोचक की नहीं।  

India that is bharat (इंडिया बनाम भारत)




India that is Bharat..........it started with the constitution only and now the gap is widening day by day. 

Sunday, June 22, 2014

Time is supreme (फैसले नहीं, वक्त मुश्किल होता है)






फैसले नहीं, वक्त मुश्किल होता है जो सही को भी गलत साबित कर देता है..........

self journey (स्वयं की खोज)




मैं स्वयं की खोज के लिए लिखता हूँ.…………… 

Writing



Writing gives you a space where you are brahma of your own universe....

Face the struggle of Life (कसौटी जिंदगी की)

 
 
जिंदगी में कभी लगता है कि बहुत कुछ खराब है, पर सब कुछ खराब नहीं इस भाव के साथ ही अपनी नाव की पतवार को आगे बढ़ाना होता है।
जीवन समुंदर है सो तूफान भी आएंगे, लहरें भी उठेंगी बस हौसला बनाए रखना ही अकेली कसौटी है।

(एक फेसबुक दोस्त की अंतर्दशा पर)
 
 

Saturday, June 21, 2014

Friends (मित्र)




अपने मित्रों के सफलता की ख़ुशी पर खुश होने का संयोग ईश्वर कम को देता है.
हम तो कोई नामचीन नहीं बस मित्रों की छांव में आनंद-मग्न है. 

फोटो : अक्षय नागदे  

Wednesday, June 18, 2014

Ghazal (अकेला जानकर)





अकेला जानकर कई लोग, जान के पीछे पड़ गए थे 
ऐसे में क्या करता मैं भी, सो अकेला लड़ता रहा 

जिंदगी के सफर में कई लोग आएं, आगे निकल गए 
एक मैं ही था, गिरने वालों को उठाता रहा अकेला 

अब बीते हुए समय के दुख, लगते हैं पहले से ज्यादा प्यारे 
अब इस उम्र में आकर मैं, पहचान पाया हूँ कमजोर आखों से 

यहाँ दूसरों के फ़सानो से ही, कहाँ फुर्सत मिल पाई 
खुद पर तो तब ध्यान देता, जब अपना गुमान होता 

Memory (स्मरण बोध)






 स्मरण बोध: जो भी होता है, अकारण नहीं होता .………

Be in line or not (पंक्ति में स्थान की लिप्सा)






जब पंक्ति में स्थान पाने की लिप्सा नहीं
तो फिर क्या आगे, क्या पीछे !

News anchor-newsticker (बोलने और लिखने का फर्क)




अभी एक हिंदी का चैनल केंद्र सरकार के मंत्रियों के निजी सचिवों की खबर बता रहा था और उसकी खबरों की पट्टी बता रही थी मंत्रियों के सचिव ! 
जबकि केंद्र सरकार के मंत्रालयों में काबीना मंत्री के बाद नौकरशाही में सचिव, जो कि अमूनन आईएस ही होता है, सबसे बड़ा अधिकारी होता है और निजी सचिव उस कड़ी में सबसे कनिष्ठ हालांकि वह भी निदेशक स्तर का आईएस ही होता है।

खबर थी चेन्नै के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (एडिशनल सीपी), यातायात की और महिला प्रस्तोता (एंकर) कह रही थी एसपी (पुलिस अधीक्षक), ट्रैफिक !
जबकि एक एसपी को एडिशनल सीपी बनने में कम से कम दस साल लग जाते हैं।
अगर पत्रकारिता की भाषा में कहे तो यह ऐसा ही कुछ हुआ कि आप ब्यूरो चीफ को चीफ रिपोर्टर बताएं कि दर्शक है, कुछ भी परोसो सब भकाभक जीम जाएंगे।
फिर लगा एंकर भी क्या करें जो स्क्रॉल पर आया पढ़ दिया और जो लिखा मिला पट्टी पर चला दिया।
पता नहीं चैनलों के संपादकों देश-दुनिया की फिक्रमंदी के बाद अपने चैनल की समाचार की पट्टी देखने का समय मिलता भी है या नहीं।


Tuesday, June 17, 2014

pin drop silence (शांत मन)






शांत मन ही नीरवता में आत्मा की आवाज़ का एकमेव साक्षी है... 

Monday, June 16, 2014

Life a voyage (सफर)




इस सफर से 
ऐसा कोई वादा नहीं था 
कोई इरादा नहीं था 


इस सफर के लिए 
सोचा नहीं था 
समझा नहीं था 


इस सफर में 
अलग से कुछ नहीं था 
मन में 


पर जो जाना 
बूझा-समझा-माना 
अब वही साथ है 


इस सफर के बाद 
उतरा जो कागज़ पर कोई 
वह मैं नहीं 
कोई और था

फोटो: अक्षय नागदे 

IIMC Hindi Journalism Batch 1994-95 (हिंदी पत्रकारिता के संगी-साथियों)



मेरी इच्छाशक्ति और संकल्प शक्ति ने ही मुझे मेरी मंजिल आईआईएमसी तक पहुंचाया। हमारे बैच में भी मुझसे काबिल और पढ़ाकू शिवप्रसाद जोशी को दूसरी बार में सफलता मिली। 
जीवन में कुछ मिलना, न मिलना, मजिल तक पहुँचना, आधे रास्ते में लक्ष्य को बिसरा देना व्यक्ति की अपनी सोच पर निर्भर करता है।
अब आप किसी और चीज़ में रमकर, न हासिल होने वाले लक्ष्य को कमतर आंकना आंके तो यह आपकी अपनी कमख्याली की स्वीकारोक्ति है, इस से ज्यादा कुछ नहीं। 
आज रविश कुमार, सुप्रिया प्रसाद, संगीता तिवारी, शालिनी जोशी, अमरेंद्र किशोर, सर्वेश तिवारी, सुभाष, सीमा, पवन जिंदल, विकास मिश्रा, शिवप्रसाद जोशी, रत्नेश, राजीव रंजन, प्रमोद सिन्हा, प्रमोद चौहान, सत्य प्रकाश, मिहिर कुमार, अमृता मौर्या, अमन कुमार, उत्पल चौधरी, कमलेश मीणा का अपने अपने क्षेत्र में माहिर और नामचीन होना मेरी बात की ताकीद करता है। 
मुझे यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं कि हिंदी पत्रकारिता के इन संगी-साथियों से मैंने बिना कुछ पूछे-कहे बिना काफी कुछ सीखा दूसरों के बारे में मैं नहीं जानता। 
जहां तक मेरी बात है तो इन सब लोगों की सफलता, मुझे अपनी ही कामयाबी दिखती है। यह स्वाभाविक भी है, जैसी सीरत होगी अक्स में सूरत भी वैसी ही दिखेगी। मुझे लगता है की हमारे बैच के मित्रों को किसी को कुछ साबित नहीं करना है क्योंकि दुनिया उनके लहराते परचम को पहले से ही सलामी दे चुकी है। 
अब सोते हुए को तो कोई भी जगा सकता है और जागकर सोने का नाटक करने वाले को भगवान भी नहीं। वैसे भी यह हमारी बात है सो मेरे अपने विभीषण कहे या कुछ और रहेंगे मेरे दुःख-सुख के साथी ही। 

Mihir-Nalin IIMC (आईआईएमसी के डिग्री कागज़ का टुकड़ा)


आईआईएमसी के डिग्री कागज़ का टुकड़ा भर नहीं है, वह तो मिटटी की तासीर ही कुछ ऐसी है की वहां से निकला हर शख्स कुछ अलहदा सा है।
और वैसे भी मोल मिट्ठी का ही होता है.… बाकी जगत, सब मिथ्या तो है।
मिटटी है, मिटटी हो जाना है, संसार है कागज़ की पुड़िया बूंद पड़े गल जाना है।

Sunday, June 15, 2014

Translation loss (अनुवाद में कुंद होती अनुभूति )



अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करते-करते मानो हिंदी का असली स्वाद ही बिसरा गया है। 
जब मन से लिखने बैठो तो मानो शब्द अपने से कागज़ पर उतरने लगते हैं अपना लिखा ही पढ़कर ही भाषा की शक्ति का ज्ञान होता है। शायद इसी को कहते है मन से सीधा कागज़ पर उतारना।
इसलिए मूल प्रारूप हिंदी में बनाना चाहिए फिर उसका अंग्रेजी अनुवाद करना बेहतर होता है। पर हम सब इसके उलट पहले अंग्रेजी में सिर खपाई करते हैं फिर हिंदी बनाते हैं बस यही चूक है। 
इससे आभास होता है कि हम अपनी भाषा के साथ नहीं बल्कि अपने साथ कितना बड़ा अन्याय कर रहे है।


IIMC days (आईआईएमसी का समय)




उस दौर में (हिंदी पत्रकारिता बैच, आईआईएमसी, 1995सही में कितना कुछ बिना कहे-सुने सीखा चुपचाप, अब उसकी अहमियत पता का ज्ञान होता है (मेरे जैसे गिस्सामार को। 
शायद अगर आईआईएमसी में दाखिला नहीं मिलता तो जीवन का क्या ठौर होता पता नहीं। 
उस सुनहरे दौर और मुझे झेलने वाले साथियों का आभार। मैं भी इन साथियों की संगत में पत्रकारिता का ककहरा सीख गया नहीं तो राम जाने जीवन की गाड़ी किस प्लेटफार्म पर रूकती! 
मेरी माँ कहती थी कि साथ अच्छा हो तो कठिन समय भी अच्छे से बीत जाता है वर्ना खराब संगत में अच्छा समय भी नष्ट हो जाता है।

Truth prevails (सच-स्वीकार)



सच को स्वीकार करने में भला कैसा संकोच ?

Prayer (प्रार्थना)






शब्द ही संबल है.……… 

Stuggle in life (जीवन में संघर्ष)





कोई चारा नहीं, सब को करना ही पड़ता है, जीवन में संघर्ष !

Saturday, June 14, 2014

Meaning of Mother (माँ का अर्थ)

 

 

 

 

 

माँ शब्द का अर्थ शब्दातीत है.............

Tuesday, June 10, 2014

Life once again (जिंदगी मिलेगी दुबारा)







जिंदगी मिलेगी दुबारा
किसी मोड़ पर
चुपके से झांकते हुए

इस बार तैयार रहना
मत चूक जाना
फिर दुबारा

नहीं तो कहोगे
इसमें मेरा क्या कसूर
नहीं पहचान पाया दुबारा

कितने रूपों में
आती है याद उसकी
कितनी बार दुबारा

न जाने वाले मेहमान की तरह
घर में आ जाती है 
बिन बुलाए दुबारा 

अब क्या बताऊं 
जब मैं ही 
भरम में हूं दुबारा 

रहने भी दो 
जैसे हो ठीक है 
होना क्यों चाहते हो 
पहले जैसे दुबारा


X-Ray life (एक्स-रे जिंदगी)






अब तो कोई भ्रम नहीं रहा तो भरमाना कैसा?
जिंदगी एक्स-रे की तरह साफ है, एकदम।

Death (मृत्यु)






मृत्यु एक चमत्कार है जो व्यक्ति को अमर कर देती है.……।

Sunday, June 8, 2014

when school bus leaves the stop without you (जब स्टॉप से स्कूल बस छूट जाती है)



जब स्टॉप से स्कूल बस छूट जाती है............

आप अकेले नहीं हो इस दौड़ में, हम भी आपके साथ हैं. 
मैं भी कई बार इस तरह की दौड़ लगा चुका हूँ, अलसुबह घर से बस स्टॉप और फिर वहां से स्कूल। और वह भी ऑटो न मिलने की सूरत में सिटी बस में.
मानो सुबह उठते ही जिंदगी परीक्षा लेने लगती है कि आओ देखें किसमें है कितना दम ……… 

rani lakshmi bai postal stamp 1957 (रानी लक्ष्मी बाई का डाक टिकट)





Issued in 1957 to mark the Centenary of First Indian Freedom Struggle against the colonial britishers 


indian history text books (इतिहास के पाठ्यक्रम की पुस्तकें)




"यह एक शर्मनाक सच है कि हमारी इतिहास की पुस्तकें इस ढंग से लिखी गयी है मानो अंग्रेज़ों के उपनिवेशवादी शासन से पहले हम असभ्य थे," आज अपनी बेटी को उसकी इतिहास के पाठ्यक्रम की पुस्तक पढ़ाते हुए आज फिर इस बात का अहसास हुआ.

Saturday, June 7, 2014

Who needs language (भाषा की जरूरत)





समझने के लिए 
भला 
भाषा की
कहाँ
जरूरत
होती है ?

Friday, June 6, 2014

Right time (समय अनुकूल)






समय अनुकूल बने तो आपके सामने शंख का युद्धघोष करने वाले थाली बजाने लग जाते हैं……

Thursday, June 5, 2014

Facts on Screen (टीवी स्क्रीन पर पट्टी)



आज एक बचपन का साथी, जो अब कॉलेज पढ़ाता है, रात को प्राइम टाइम में एक चैनल पर चर्चा देख कर बोला कि यार तुम मीडिया वाले भी कितने अपढ़ हो, लेक्चरर, सीनियर लेक्चरर, रीडर और प्रोफेसर का अंतर भी नहीं रखते सब को प्रोफेसर साहिब बना देते हो।
क्यों न हो मैं भी अपने मित्र को प्रोफेसर ही बुलाता हूँ और मोबाइल में भी उसका नंबर प्रोफेसर नाम से ही डाला हुआ है।
पर बात थी मीडिया की अपढ़ता की तो फिर इंकार कैसा ?
अब भला समाचार चैनलों में टिकर देखने और नाम के पट्टी चलाने वालों को कोई यूजीसी का नेट तो देना नहीं होता फिर भी कभी कभी भाषा के जाल में उलझ जाते है, नैना मोरे नैना।
इस बार फिर से टीवी स्क्रीन पर कोई प्रोफेसर की पट्टी दिखी तो मैं गांधारी को याद करते हुए अपने दिमाग पर पट्टी बांध लूंगा।

Blog Writing ( ब्लॉग लेखन)


समाचार पत्रों की एडिट पेज की चाकरी और सेटिंग की उम्र नहीं रही, जब थी तब नहीं किया तो अब क्या खाक होगा!
(एक मित्र के मुझसे अपने ब्लॉग लेखन करने के सवाल पर) 

Right chance in Life (अवसर)





बस अवसर की बात है, किसी को मिल जाता है और किसी का जीवन बीत जाता है, एक सही अवसर के इंतज़ार में.

फोटो: अक्षय नागदे  

Monday, June 2, 2014

Adorable Delhi (दिल्ली का बाहरी रूप)






दिल्ली बाहर से कितनी खूबसूरत और उसका जीवन कितना सहज दिखता है........... 

फोटो: अतुल यादव  

Sunday, June 1, 2014

Mother-Daughter (बेटी)



हर माँ का मन होता है कि उसकी बेटी को अच्छा वर-घर मिले, उसका दाम्पत्य जीवन सुखद हो. इसी प्रेरणा के साथ हम अपनी बेटियों को जीवन से जूझने की सीख देते हैं. 

Dream of looking beyond (सपने-गरीब )



सपने तो गरीब ही देखते हैं क्योंकि उनके पास आगे बढ़ने की तमन्ना रहती है, संपन्नता तो दृष्टि को धन तक ही सीमित कर देती है, जो की विघटन के ओर ही ले जाती है.। चाहे वह परिवार का हो या समाज का।

फोटो: अनंत चौहान की डिजिटल कल्पना 

Hard Work (जीवन बढ़ता है, नई मंजिलों की ओर)



कड़ी मेहनत के बावजूद कितनी बार-कितना कुछ मन में ही रह जाता है, लब अबोल रह जाते हैं.…
दिल-मसोस कर रह जाता है फिर भी जीवन है कि आगे बढ़ता है, नई मंजिलों की ओर.…

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...