Saturday, July 30, 2011
kahani 2
उसने कितनी बार बस स्टॉप पर इंतजार में बसों को छोड़ा था, ऑफिस से उसके साथ निकलने के फेर में रहा था। पर साथ चलने के बावजूद वह जिंदगी में नहीं आई। हिस्से आया तो सिर्फ इंतजार। आज उसी स्टॉप पर बीते पल ताजा हो गए क्योंकि दर्द तो दिल के कोने में सीता की तरह समा गया था। मिलने, बिछड़ने की कश्मकश से जिंदगी कहां रूकती है । झूठ के पांव नहीं होते और सच का गांव नहीं होता । सो, बस आई तो वह उसमें चढ़ गया और मन स्टॉप पर ही रह गया ।
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