हाल में ही दिल्ली सरकार ने पुरानी दिल्ली की विरासत को पुनर्जीवित करने की कोशिश की कड़ी में लाल किला, जामा मस्जिद, दिगंबर जैन मंदिर, शीशगंज गुरुद्वारा, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन जैसे पुरानी दिल्ली के अनेक स्थानों को जोड़ने के लिए ट्राम चलाने का फैसला लिया है। शाहजहांनाबाद रीडेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के जरिए इस क्षेत्र में अनेक विकास कार्य करवाने की योजना बनाई गई है।
अगर दुनिया की बात करें तो लंदन में ट्राम सेवा का विकास हुआ और वर्ष 1901 में घोड़ों के बजाय बिजली से ट्रामें चलनी शुरू हुईं। अंग्रेजों ने भारत के सभी बड़े शहरों में शहरी परिवहन के लिए ट्राम सेवा का चयन किया गया था और दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता, मद्रास, कानपुर और नासिक में भी ट्राम चलाई गईं।
सन् 1903 में शहर के दिल्ली दरबार के लिए हो रही साफ सफाई के दौरान राजधानी में बिजली आई और उसके साथ ही दिल्ली में बिजली से चलने वाली ट्राम का आगमन हुआ। भले ही आज पुरानी दिल्ली इलाके के चांदनी चौक, चावड़ी बाजार की जमीन के नीचे मेट्रो और सड़कों के ऊपर चमचमाती गाडि़यां और रिक्शों का रेला नजर आता हो, लेकिन एक समय इसी जगह कभी ट्राम भी चला करती थी।
दिल्ली में बिजली, ट्राॅम और रेलवे लाइनों ने कई एकड़ जमीन को एक बस्ती में बदल दिया जो कि सन् 1903 क्षेत्रफल में ग्रेटर लंदन के समान और सन् 1911 में उससे भी कई गुना बड़ा था। गवर्नर-जनरल हैनरी हार्डिंग ने इस विस्मयकारी परिवर्तन के विषय में लिखा, जिसके परिणामस्वरूप ”जहां कभी मक्के के खेत हो थे वहां अब दस प्लेटफार्मों वाला एक बड़ा रेलवे स्टेशन, पोलो के दो मैदान और धंसी हुई जमीन पर बने छत वाले मकान थे।
सन् 1907 तक ट्राम ने अजमेरी गेट, पहाड़ गंज, सदर और सब्जी मंडी को चांदनी चौक और जामा मस्जिद से जोड़ दिया। दिल्ली शहर में ट्राम का फैलाव करीब 14 मील (24 किलोमीटर) तक हो गया और इससे तीस हजारी और सब्जी मंडी क्षेत्र वाया चांदनी चौक, जामा मस्जिद, चावड़ी, लाल कुआं, कटरा बादियान और फतेहपुरी से जुड़ गया।
सन् 1908 में बनी "दिल्ली इलेक्ट्रिक ट्रामवेज लाइटिंग कंपनी" ने राजधानी में ट्राम की शुरुआत की थी जो कि सन् 1930 सिविल लाइंस, पुरानी दिल्ली, करोलबाग जैसे कुछ इलाकों में फैल गई। यह ट्राम बिजली संचालित थी। सन् 1921 में दिल्ली में 15 किलोमीटर के सर्किट में कुल 24 ट्राम संचालित की जा रही थी। 30 के दशक में ही दिल्ली में बस सेवा शुरु हुई, जिसे ट्राम सहित दिल्ली सड़क परिवहन प्राधिकरण के अधीन कर दिया गया था।
सन् 1916 में 4 फरवरी को वसंत पंचमी के दिन जब देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने जवाहरलाल नेहरू और कमला कौल की शादी पुरानी दिल्ली के बाजार सीताराम इलाके में हुई और उसमें शामिल अनेक बाराती ट्राम में सफर करके विवाह स्थल पर पहुंचे थे। यहां तक कि उस दौर के दिल्ली के मशहूर हकीम अजमल खान भी बल्लीमरान में मौजूद अपने घर जाने के लिए ट्राम का इस्तेमाल करते थे।
50 के दशक में ट्राम का डिपो श्रद्धानंद बाजार के पीछे हुआ करता था। उस समय ट्राम श्रद्धानंद डिपो से निकलकर खारी बावली होकर पूरे चांदनी चौक का चक्कर लगाया करती थी। तब ट्राम जामा मस्जिद, काजी हॉल, फराशखाना, फतेहपुरी जाया करती थी। इसी तरह, ट्राम लाहौरी गेट को पार करके अजमेरी गेट और बाड़ा हिंदूराव तक जाती थी। दूसरी लाइन पर ट्राम सेंट स्टीफेंस हॉस्पिटल से चला करती थी। सदर बाजार, जामा मस्जिद, फव्वारा मार्ग पर ट्राम का ट्रैक था। एस्प्लानेड रोड, क्वीन्स वे, मिंटो रोड, कनाट सर्कस, फतेहपुरी, चांदनी चैक, कटरा नील, खारी बावली, बाड़ा हिंदूराव जैसे इलाके से गुजरती थी ट्राम। सदर बाजार, फव्वारा, हौजकाजी, लालकुआं जैसे इलाके ट्राम सेवा से जुड़े हुए थे।
इस ट्राम के सफर का किराया आधा आना (तीन पैसा) एक आना (छह पैसा) और दो आना (12 पैसे) और 4 आना का हुआ करता था। ट्राम की गति इतनी धीमी हुआ करती थी कि मुसाफिर चलते-चलते उसमें चढ़ जाया करते थे, हालांकि उस जमाने में भी कम भीड़ नहीं हुआ करती थी। तब ट्राम के अलावा 2-3 ट्राली बसें चला करती थीं, जो कि वहां से गुड़ मंडी यानी आज के आजादपुर आया-जाया करती थीं। बिजली से चलने वाली ट्राम में तीन तरह के डिब्बे हुआ करते थे। लोअर, मिड्ल और अपर क्लास। पर ज्यादातर मुसाफिर चलते थे लोअर क्लास में।
लेखक अहमद अली ने अपनी पुस्तक "ट्विलाइट्स ऑफ दिल्ली" में ट्राम को लुटियन दिल्ली और शाहजहाँनाबाद की शान बताया है। दिल्ली में लगभग 50 वर्षों से रहने वाले गीतकार संतोष आनन्द के अनुसार, जुबली, मैजेस्टिक या कुमार सिनेमा हॉल में फिल्म देखकर तांगे से ही कुतुब मीनार तक पिकनिक मनाने चला जाना, फिर ट्राम पर चांदनी चौक से सदर बाजार चला जाना, वह अद्भुत आनन्द वाला समय था। आज की मेट्रो में रफ्तार हो सकती है, वह आनन्द कहां!
प्रसिद्व लेखिका निर्मला जैन अपनी पुस्तक दिल्ली शहर दर शहर में लिखा है कि स्वाधीनता के कई वर्ष बाद तक भी चांदनी चौक के दोनों सिरों को जोड़ने के लिए धीमी गति वाली एक ट्राम चलती थी।
प्रसिद्ध सरोद वादक अमजद अली खान के शब्दों में, “सन् 1957 में जब मैं पहली बार अपने पिता और गुरु हाफिज अली खान के साथ दिल्ली रहने के लिए आया था तो आज की तुलना में जनसंख्या कमतर थी । उन दिनों पुरानी दिल्ली में ट्राम चला करती थी और प्रमुख पड़ावों में चांदनी चौक, घन्टा घर और जामा मस्जिद हुआ करते थे।”
यह ट्राम देश आजाद होने समय भी पुरानी दिल्ली के लोगों के लिए परिवहन का प्रमुख साधन थी। उस समय दिल्ली की मुख्य आबादी इसी क्षेत्र में सिमटी हुई थी। तब दिल्ली शहर का इतना विस्तार नहीं हुआ था। देश की आजादी के बाद परिवहन के दूसरे आधुनिक साधनों के आने के बाद सन् 1960 में दिल्ली में ट्राम बंद हुई जबकि मुंबई में वर्ष 1964 में ट्राम सेवा खत्म की गई।
कवि ज्ञानेंद्र पति की कलकत्ता के अनुभव पर ‘ट्राम में एक याद’ शीर्षक की एक चर्चित कविता है, जिसका प्रकाशन नौवें दशक में हुआ था। केदारनाथ सिंह के संपादन में हिंदी अकादेमी, दिल्ली से नौवें दशक की प्रतिनिधि कविताओं के संचयन में भी इस कविता को स्थान मिला।
हिंदी के जनकवि नागार्जुन अपनी "ट्राम पर घिन तो नहीं आती है" शीर्षक कविता में ट्राम जनपक्षधरता को कुछ यूँ कहते हैं
पूरी स्पीड में है ट्राम
खाती है दचके पै दचके
सटता है बदन से बदन
पसीने से लथपथ ।
छूती है निगाहों को
कत्थई दांतों की मोटी मुस्कान
बेतरतीब मूँछों की थिरकन
सच सच बतलाओ
घिन तो नहीं आती है?
जी तो नहीं कढता है?