Saturday, July 30, 2011

media ki kahani (मीडिया की कहानी)



सत्ता के नंगेपन ने सचिन को दोराहे पर ला दिया था। यूज करने और यूज होने का विकल्प था तो दूसरी ओर अकेले जूझने का। काला,सफेद रंग चौसर में होता है राजनीति के ग्रे रंग ने उसकी जिंदगी बदरंग कर दी थी। सत्ता के गुबंद में कई राज ममी बन चुके थे,कुछ पैसे की धार और सलवार की कतार में थे। सत्ता की रखवाली कोई ठकुरेती नहीं समय की मार थी।शेर,सियारों का कैदी था तो गीदड़ भगवान महान से माहौल गुंजाएं हुए थे। समय,सीखने से ज्यादा भुलाने का था।
राहुल दिल्ली के आइआइएमसी में पढ़ाई के बीच में ही मुंबई एक चैनल में ब्रेक मिलने की वजह से यमुना की बजाया समुंदर किनारे पहुंच गया । करीब साल भर चैनल में रात की शिफ्ट में काम करने के बाद उसका खुद के बारे में मानना था कि वह पहले से ज्यादा काला हो गया था । पर यह चमड़ी से ज्यादा मन का मैल था जो कि चैनल में रात की शिफ्ट की देन चैनल था।

उसकी यूनिट से लेकर कैन्टीन का किशोर तक दोनों के दिल में उठ रही प्यार की लहरों के शोर से वाकिफ थे । उनके कदमों की आहट से संगी साथी उनके मिलने का अंदाजा लगा लेते थे तो लंबे समय तक न दिखने पर अक्सर कैन्टीन में मिलने वाली लखनऊ की सपना उसे नजमा के रात की शिफ्ट में न होने की बात बता देती थी।  

मजेदार बात यह थी कि यह ब्रेकिंग स्टोरी लाने वाली नजमा दीन के नाम हरदम दान करती थी । सिनेमा की बेपर्दा हकीकत को पूरे से बयान करने वाली पटना के नामचीन डॉक्टर की यह खुद्दार लड़की अपने निकाह के इकरारनामे को ठुकराते हुए ठाकरे की मुबंई में आबाद थी । इस ब्रेकिंग स्टोरी पर काम करते हुए दोनों की मुलाकात की बात चैनल में आम हो गई थी ।

उसने गोरे, सुदंर स्क्रीन पर चमकने वाले चेहरों को एडिट रूम में चैनल हैड के साथ अंधेरे में जाते देखा, टीआरपी की दौड़ में अंधे आउटपुट इंचार्ज को मुंबादेवी के बाबाजी और कामतीपुरा की बाईजी के आगे झुकते देखा तो सेकुलरवाद की वजह से मुंबई के गली चौराहों पर फल बेचने के धंधे पर बांग्लादेशियों के कब्जे की स्टोरी को ड्रॉप होते हुए देखा था ।

kahani 2

उसने कितनी बार बस स्टॉप पर इंतजार में बसों को छोड़ा था, ऑफिस से उसके साथ निकलने के फेर में रहा था। पर साथ चलने के बावजूद वह जिंदगी में नहीं आई। हिस्से आया तो सिर्फ इंतजार। आज उसी स्टॉप पर बीते पल ताजा हो गए क्योंकि दर्द तो दिल के कोने में सीता की तरह समा गया था। मिलने, ‌बिछड़ने की कश्मकश से जिंदगी कहां रूकती है । झूठ के पांव नहीं होते और सच का गांव नहीं होता । सो, बस आई तो वह उसमें चढ़ गया और मन स्टॉप पर ही रह गया ।

pasandida line

कभी किसी का साथ

ऐसा मत छोड़ना दोस्त

जिंदगी बहुत लंबी है

फिर आमने सामने ला खड़ा करती है

पहला

पहला जन्म,

पहला स्पर्श

पहला नाद,

पहला पग,

पहला डग,

पहला पाठ,

पहला गुरू

पहला भाव,

पहला अभाव

पहला कुभाव,

पहला प्रभाव

पहला पराभव

पहला स्वीकार,

पहला अस्वीकार

Saturday, July 16, 2011

bombay bomb blast




अब तो जटा खोल, गंगा को बहने दो
हो चुका बहुत, अब शिव का तांडव होने दो
कितना संभालोगे, इन मर चुके पुतलों को
खुली आंखों से, सोने वालो को सोने दो

पार से आए, बन बैठे पहरूओं का ज्यादा भरोसा ठीक नहीं
डालर के लारे, कहां गिरेंगे पता नहीं
दिल्ली से वाशिंगटन क्या लाहौर भी दूर नहीं
रण है, रणभेरी है, रणछोड़दास है

ऐसे मन के कालों से धरती भारी, आकाश उदास है
चारों ओर पसरा शल्य भाव, जता रहा अभाव है
ऐसी क्या मजबूरी है, मरना जनता का जरूरी है
मेरी जुबानी हो या तेरे जुबानी, अब बहस बेमानी है

देश के शरीर पर उग आई है फुन्सियां, उनका ईलाज अब जरूरी है
चीरा लगाएं या गरम चिमटा चिपकाएं, कुछ होना अब अपने लिए जरूरी है

याद करो उन मासूमों की कुर्बानी, न आसमान फटा न धरती हिली
न किसी ने दी, तिरंगे में लिपटाकर तोपों की सलामी

क्या फर्क रह जाता मांग के लाल सिंदूर और चिता का लाल चंदन में
उजड़ से उजाड़ तक दोनों की एक ही नियति है

राजा विदेह के लिए देह का क्या है मोल, जब बड़े हो रहे हो खेल
सभा में विमर्श जारी है संयम का छूटना भारी है,अब जनता के अष्टाबक्र की बारी है

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...