पालम बावली अभिलेख दिल्ली के नाम से संबंधित सबसे प्राचीन अभिलेख है जो कि न केवल यहां के इतिहास बल्कि भूगोल पर भी प्रकाश डालता है। यह अभिलेख दक्षिण पश्चिमी दिल्ली में स्थित पालम गांव (जो कि अब इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के कारण प्रसिद्ध है) के एक कुंए में लगा मिला था। जिसे की अब दिल्ली के पुराना किले में पुरातत्व संग्रहालय में संरक्षित करके रखा गया है।
अगर इस अभिलेख की भाषा की बात कहे तो इसमें काले पत्थर पर संस्कृत भाषा की नागरी लिपि में 31 पंक्तियां उत्कीर्ण है। यह पत्थर 19 इंच लंबा और 3‐10 इंच चौड़ा है। अब इस प्रस्तर अभिलेख के दाहिनी तरफ का ऊपरी भाग टूटा हुआ है और स्वस्ति का पहला अक्षर पवित्र उच्चारण ओम के साथ गायब है। पहली और अंतिम दूसरी पंक्तियों में अनेक शब्द अनमेल हैं। हां! अंतिम भाग में एक स्थानीय भाषा है जो हरियाणा में बोली जाती थी।
संस्कृत में और स्थानीय भाषा में भी दिल्ली को "ढिल्ली" लिखा गया है। इससे शहर दिल्ली के आरम्भिक नाम पर कुछ प्रकाश पड़ता है। ऐसा लगता है कि इस अभिलेख का रचियता दिल्ली को हरियाणा मानता है। यह इस नाम का क्षेत्र के लिए आरंभिक उपयोग है। उन दिनों यह ढिल्लिका हरियाणा का ही हिस्सा था। इस अभिलेख का आरंभ गणपति और शिव की वंदना से होता है जो कि पालम में एक बावली और एक धर्मशाला के निर्माण की बात दर्ज करता है।
इस पर सवंत् 1337 विक्रमी (तद्नुसार सन् 1280-81 ईस्वी) खुदा हुआ है, जबकि दिल्ली के सिंहासन पर सुलतान गयासुद्दीन बलबन बैठा शासन कर रहा था। फिर वह देहली और हरियाणा के राजाओं को तोमर, चौहान और शक बतलाता है, इनमें से पहले दो को राजपूत वंश माना गया है तथा अंतिम से अभिप्राय सुल्तान है। यह बात शकों की एक विस्तृत सूची अर्थात् तब तक के शासक बलबन समेत देहली के सुल्तानों की एक सूची से स्पष्ट कर दी गई है। इस शिलालेख की भाषा में तोमर तथा बाद के शाक्य राजाओं "साहावादीना" (शाहबुद्दीन) "खुदुवादीना" (कुतुबुद्दीन) और "असामासादीना" (शम्सुद्दीन) का वर्णन है।
बलबन को नायक श्री हम्मीर गयासुद्दीन नृपति सम्राट कहा गया है और उसकी विजयों का वर्णन अतिश्योक्ति भरी प्रशंसा के साथ किया गया है। उसकी उपाधियों में नए और पुराने का मिश्रण है। नायक तो पहले की एक उपाधि है तथा हम्मीर को "अमीर: का संस्कृत रूप माना गया है।
फिर उसके बाद वंशावली की परम्परागत शैली में उस व्यापारी के परिवार का खासा विस्तृत इतिहास दिया गया है। स्पष्ट है कि वह पर्याप्त धन-दौलत वाला व्यक्ति था। दूसरे स्त्रोत हमें बतलाते हैं कि मुल्तान के हिन्दू सौदागर बलबन के अमीरों (कुलीनों) को, जब भी उनकी राजस्व वसूली में कोई कमी होती थी, कर्ज देते रहते थे। सुल्तान की पहचान पहले के कालों की निरन्तरता में दिखाया गया है तथा व्यापारी की पहचान उसके अपने इतिहास और व्यवसाय के आधार पर और सम्भवतः सुल्तान के अकथित संरक्षण के आधार पर दिखाई गई है। धर्म का एकमात्र जिक्र भी टेड़े ढंग से किया गया है-यह कहकर कि सम्भवतः बलबन के शासन के कारण, विष्णु भी शान्ति की नींद सोते हैं।
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