Sunday, October 9, 2011

साथ और साझा

बोझ को बोझ मत मानो, दर्द को कमतर जानो तो जिन्दगी का सफर आराम से कट जाएगा, राह आसान हो जाएगी। इसलिए जब कोई बात मन में घर जाती है तो उसे कागज की बजाय अब कंप्यूटर पर उतार देता हूं ।

साहित्य साथ होने और साझा करने का ही दूसरा नाम है । पढ़ना,लिखने को संभव करता है जैसे बात करना मन को हल्का करता है ।

अच्छा है जो भी लिखो जमा करो फिर जमा चाहे इस्तेमाल करो या नहीं तुम्हारी मर्जी । गुल्लक में कोशिश करके रोज कुछ शब्द जमा कर लेने चाहिए । फिर गुल्लक एक दुनिया रच ही देती है ।

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