लिखने में टांके टूट जाते हैं, मां-बाप और भगवान सब याद आ जाते हैं । लिखना सही में एक सजा है, जिसे हम स्वयं को जानते-बूझते देते हैं । स्त्री की प्रसव पीड़ा का तो इस जन्म में अनुभव नहीं कर सकता पर रचना रचने की पीड़ा को साझा कर ही सकता हूं।
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कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...
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