सच पूछो, तो विश्वास मुझे भी नहीं होता। जो चीज अदृश्य है, उसमें विश्वास कैसा ? हम ‘दैहिक’ लोग हैं। दुनिया में शायद ही कोई जाति हो, जिसका देह के प्रति इतना मांसल, इतना सजीव लगाव हो। नंगी आँखों से देखने का सुख, नंगे हाथों से खाने का संतोष, नंगे निरोधहीन अंगों से प्यार करने की तृप्ति, थिएटर-सिनेमा में सोने का आनन्द–क्या कभी कोई हमें इन सुखों से वंचित कर सकता है ? देह के प्रति इतनी गहरी, इतनी अटूट आत्मीयता के कारण ही हमारे पुरखों ने दूसरे जन्मों की कल्पना की होगी
-निर्मल वर्मा (कहानी ‘अपने देश वापसी’)
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