Monday, January 28, 2019
Saturday, January 26, 2019
Raisina_from village to President House_रायसीना गाँव_जागीर से राष्ट्रपति भवन तक
Sunday, January 20, 2019
Story of Karol Bagh_करोलबाग के बसने की कहानी
19012019_Dainik Jagran |
अंग्रेज सरकार ने दिल्ली की तेजी से बढ़ती आबादी को समायोजित करने के हिसाब से दिल्ली इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट योजना के तहत 1937 में करोलबाग की स्थापना की थी। तब अंग्रेजों की नई राजधानी नई दिल्ली के निर्माण के लिए लगे मजदूरों के परिवारों को बसाने के उद्देश्य से करोलबाग में वेस्टर्न एक्सटेंशन एरिया नामक एक योजना बनाई गई थी। वेस्टर्न एक्सटेंशन एरिया में करोलबाग, सिदीपुरा, नाईवालान और बस्ती रैगरान आता था।
जबकि इससे पहले लाॅर्ड इरविन (1926-31) ने अपने कार्यकाल में वेस्टर्न एक्सटेंशन एरिया में जल आपूर्ति, जल निकासी, पुराने शहर से सहज परिवहन की समुचित व्यवस्था की थी। तब करोल बाग इलाके को लोकप्रिय बनाने के हिसाब से बाड़ा हिंदू राव से अजमेरी गेट तक वाया करोलबाग एक बस सेवा शुरू करने की भी योजना बनाई गई थी। इरविन का मानना था कि केंद्रीय अंग्रेज सरकार के दिल्ली पर काबिज होने के कारण यहां पर जनसंख्या में वृद्वि हुई है इसलिए इस जनसंख्या घनत्व को कम करने की जिम्मेदारी भी उसकी ही है। इस कारण ही इरविन ने दिल्ली म्युनिसिपालिटी को जल आपूर्ति सुधारने और झुग्गी हटाने के लिए अनुदान भी दिया।
"दिल्ली बिटीवीन टू एंपायर्स" पुस्तक में नारायणी गुप्ता लिखती है कि यह इलाका शहर की बढ़ती आबादी के सेफ्टी वाल्व के रूप में माना गया था। गौरतलब है कि करोल बाग, वेस्टर्न एक्सटेंशन एरिया और पहाड़गंज में भारतीय बसने लगे थे। उस दौर में बसी करोलबाग और जंगपुरा कॉलोनियों में एक महत्वपूर्ण साम्यता थी। अंग्रेज सरकार ने इन दोनों काॅलोनियों के लिए चयनित क्षेत्र में समकोणकार सड़कों का जाल बिछाया। जहां बसने वाले हर भारतीय को मकान बनाने के लिए तयशुदा आकार के भूखंड देेने का निर्णय किया। पर उन मकानों के संभावित विकास का दायित्व मालिक के विवेक पर ही छोड़ दिया गया।
अंग्रेजों के दौर में सार्वजनिक निर्माण विभाग और दिल्ली इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट दो मुख्य सरकारी विभाग थे जो कि काॅलोनियों के ले आउट (आकल्पन) और निर्माण के लिए जिम्मेदार थे। अंग्रेज सरकार इन काॅलोनियों की बसावट के लिए स्थान निश्चित करती थी जबकि सभी घर वास्तुकारों की योजना के हिसाब से नहीं बनाए जाते थे। अंग्रेजों की नई दिल्ली में जगह न मिलने के कारण कनिष्ठ स्तर के भारतीय कर्मचारियों ने करोलबाग के देवनगर में अपने मकान बनाए। यहां देश के दूसरे भागों से अपने परिवार सहित आए पेशेवरों को भी जगह मिली।
"ट्रेंड्स ऑफ प्लाॅनिंग एंड डिजाइन ऑफ अर्बन प्लानिंग" पुस्तक के अनुसार, नई दिल्ली के के निर्माण के समय ही अंग्रेज वास्तुकारों लुटियन और बेकर ने क्लर्कों के लिए बसावट को दो हिस्सों में बांट दिया था। एक विशेष श्रेणी के बाबूओं के लिए गोल डाकखाना (नई दिल्ली पोस्ट ऑफिस) के इलाके को विकसित किया गया। दूसरे विश्व युद्व तक सरकारी आवासन के क्षेत्र में यही नीति लागू रही। अंग्रेज सरकार ने नई दिल्ली में सरकारी आवासीय काॅलोनियों के पदानुक्रम (पद पर आधारित) व्यवस्था को अपनाया गया था और सत्ता सुविधाओं के पिरामिड सिद्धांत के आधार पर बड़े अफसरों को अधिक सुविधाएं और उसके नीचे के बाबूओं को कमतर सुविधाएं प्रदान की गई थी।
1947 में दिल्ली देश की आजादी के साथ विभाजन की पीड़ा की भी गवाह थी। पाकिस्तान से आए हजारों हिंदू-सिख शरणार्थियों की साज-संभाल के लिए नवगठित केंद्रीय पुर्नवास मंत्रालय ने करोल बाग के तिब्बिया काॅलेज इलाके में शरणार्थियों के लिए शिविर लगाए। इसके परिणामस्वरूप यहां पर आबादी में यकायक काफी इजाफा हुआ।
Tuesday, January 8, 2019
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