ननिहाल की याद
जब मौका मिले, झांक लेता हूं । जैसे ननिहाल में हम सब बच्चे फेरीवाले के फेर में रहते थे और मौका मिलते ही खिड़की में से उचक कर देख लेते थे मानो कुछ हुआ ही न हो । मौका मिलने पर फाटक वाला दरवाजा खोल कर दबे पांव चप्पल उतारकर नंगे पांव गर्म रेत पर दौड़ जाते थे, ठंडी कुल्फी की आस में । कितनी अलग दुनिया थी अब न नानी है, न ननिहाल और न ही नौनिहाल और न ही जौ, बाजरा और गेहूं कि एवज में कुल्फी देने वाला कुल्फीवाला ।
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