शब्दों की गठरी
विजयदेव नारायण साही की एक कविता की प्रसिद्व पंक्ति है, अब मुझे उसकी उपस्थिति भी अपनी आलोचना लगती थी ।
रोज सबेरे मैं थोड़ा-सा अतीत में जी लेता हूं क्योंकि रोज शाम को मैं थोड़ा-सा भविष्य में मर जाता हूं-अज्ञेय
मौन सहमति का ही नहीं, असहमति का भी लक्षण है ।
किसी के इंतजार में सर्दी और सन्नाटे के साथ सह रहे है, दिल्ली के मौसम की मार । दूसरे शहरों के मिजाज से अलग है दिल्ली, और यहां के लोग ।
दिल्ली दिलों में तो दरार लाती ही है, अपनों से भी दूर कर देती है । कुछ फितरत, कुछ दस्तूर।
कुछ कसर रह गई, थोड़ा शब्दों को जिन्दगी के सिलबट्टे पर और घिसो । घिसने से सही मुल्लम्मा तैयार हो जाएगा, कहने का ।
किताब का पढ़ना तो दो चार दिन में ही हो जाता है। फिर उसे समझने के लिए ज्यादा समय लगता है। यह दूध उबाल कर, उसका दही जमाने से लेकर घी निकालने के समान है ।
सपना अगर आपके पास सपना नहीं है तो आप खुद को आगे नहीं बढ़ा सकते, आपको नहीं पता चलता कि लक्ष्य क्या है. जरूरी है कि आप एकाग्र रहे और कम अवधि के लक्ष्य तय करें. भविष्य की तरफ बहुत ज्यादा नहीं देखना चाहिए.
अहसास दिल में रहता था कोई, इसका हमें गुमान था ।बसाकर किसी दूसरे का घर, उसने अपने अहसास से भी जुदा कर दिया ।
बेसबब गुजर गया मुकाम से बिना नजर डाले मंजिल पर थी निगाहें सो नजर आया नहीं कोई
प्यार को कहना ही क्या जरूरी होता है ।
लक्ष्मण रेखा में सीता सुरक्षित रहती है, रेखा के घेरे से बाहर जाने पर ही रावण का खतरा होता है ।
मां दूर होते हुए भी कितनी पास लगती है....
पर दिल को आखिर समझाता तो दिमाग ही है चाहत से ज्यादा हवस चाहना तो मनभावन है, जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि ।
उम्मीद पर खरा उतरना ही सबसे बड़ी कसौटी है वरना सब उतरन ही है ।
किताब होश में लिखनी है बेहोश करने के लिए, बेहोशी के लिए नहीं ।
लोटे पर धूल नहीं जमने देनी चाहिए । हम सब एक दूसरे से सीखते है माने या न माने । आपका बड़प्पन है कि आप मान रहे है । नहीं तो मेरे पास ऐसा कुछ नहीं की सीखा सकूं । सिर्फ अपना अनुभव बांट लेता हूं । जैसे अपनी तरक्की के लिए हम जिम्मेदार है, उसी तरह अपने आगे न बढ़ने का कारण भी हम खुद ही है । जितना जल्दी इस बात को समझ ले उतना जल्दी आगे बढ़ने का रास्ता आसान हो जाएगा ।समय का चक्का सब को घिस देता है, सड़क को भी, पहिए को भी और उस पर चलने वाले को भी ।
मतलब आप चाहते कुछ और है और होता कुछ और है ।जरूर भगवान आपको अपने सपनों को पूरा करने की ताकत दें ।
सच कहना और संग रहना नर्तक की तरह बांस पकड़कर रस्सी पर चलने सरीखा है।
जीवन में सहयोग, सीढ़ी नहीं । अनुभव अर्जित करना होता है जबकि जीवन में साझा तो केवल दुख होता है ।
No comments:
Post a Comment