Friday, April 13, 2012

Arthavaved

अथर्ववेद का प्रसंग

एक आर्यसमाजी युवा संन्यासी ने सुनाया, अथर्ववेद का प्रसंग. उसमें कहा गया है कि हे मनुष्य ! अपनी आदत सुधारो. तुम उल्लू की चाल मत चलो. यानी मोह-अंधकार से उबरो. उल्लू, मोह और अंधकार का प्रतीक है. तुम भेड़िये की चाल छोड़ दो. भेड़िया, हिंसा और क्रोध का संकेत है. मनुष्य के लिए यह भी प्रार्थना है कि तुम श्वान (कुत्ता) न बनो. श्वान का संदर्भ चापलूसी से है. इससे भी है कि एक कुत्ता, दूसरे से झगड़ता ही है. इसलिए कुत्ते की इन दोनों आदतों से मुक्ति की प्रार्थना है. गरुड़ का अहंकार न पालो. गरुड़ को अपने पैर और सुंदरता पर अहंकार है.
मनुष्य अहंकार से मुक्ति पाये, इसका आशय यह है. गिद्ध की चाल मनुष्य न चले, इसकी चेतावनी है. यानी लालची न बने. मनुष्य के संदर्भ में अथर्ववेद में यह प्रार्थना है कि ऐसे आचरण छोड़ कर वह चले, बढ़े और जीवन में कुछ करे. पर आज गलाकाट प्रतियोगिता की दुनिया में हम कहां खड़े हैं? या पहुंच गये हैं? पहले हर घर में या खासतौर से गांवों में धर्मग्रंथों का पारायण होता था.

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