Sunday, October 11, 2015

Return of Sahitya Academy Prize_साहित्य अकादेमी पुरस्कार वापसी

देश में सांप्रदायिक हिंसा की हालिया घटनाओं पर अपना विरोध जताते हुए नाता तोड़ने की घोषणा करने वाले मलयालम के कवि के. सच्चिदानंदन और साहित्य अकादेमी पुरस्कार वापस करने वाली उपन्यासकार सारा जोसेफ़ इस तथ्यात्मक सच्चाई से तो अवगत ही होंगे कि पिछले चार वर्षों में केरल में 131 सांप्रदायिक घटनाएँ हुई। 

केन्द्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, दक्षिण भारत में जनवरी 2011 से जून 2015 की अवधि में सर्वाधिक सांप्रदायिक घटनाएँ दो राज्यों-कर्नाटक और केरल में हुई हैं। राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो 10.54 प्रतिशत कर्नाटक का था, जहाँ कुल 222 सांप्रदायिक घटनाएँ घटी, जबकि उसके बाद सबसे ज्यादा सांप्रदायिक घटनाएँ 131 केरल में दर्ज की गईं।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि हर लेखक करता हैं, अपनी भाषा-अपने प्रदेश से प्यार तो फिर ऐसे में मलयालम के लेखक भी कैसे कर सकते हैं, साक्षात सत्य से इंकार?

अब "अश्वत्थामा हतो नरो वा कुंजरो" (अश्वत्थामा मारा गया है, लेकिन मुझे पता नहीं कि वह नर था या हाथी) वाले कथन से ये लेखक भ्रम की सृष्टि करते हुए अर्द्धसत्य से राष्ट्र-भाव को खोखला करने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं।

अगर विशुद्ध रूप से केरल के ही साहित्यिक परिदृश्य की बात करें तो एम टी वासुदेवन नायर का कहना है कि स्वीकार किए जा चुके पुरस्कारों को नहीं लौटाऊँगा तो यू ए खादर का कहना है कि प्रतिरोध के लिए पुरस्कारों की वापसी का कोई अर्थ नहीं। वहीं सुगता कुमारी के शब्दों में पुरस्कार वापस करके प्रतिरोध जताने से कोई फायदा होगा यह नहीं लगता तो पी वलसला का मानना है कि पुरस्कार लिए हुए तथा मिले हुए दोनों तरह के होते है। वापस किए जा रहे पुरस्कार लिए गए हैं यह याद रहना चाहिए।

लाख टके का सवाल यह है कि आखिर ये लेखक केरल में हुई पिछले चार वर्षों में हुई सांप्रदायिक घटनाओं से उद्वेलित क्यों नहीं हुए और उनका मन क्यों नहीं पसीजा?

लगता है कि उन्हें 'घर' में लगी आग की कोई फिक्र नहीं बस चिंता है तो दूसरे के जलते से अपनी रोटी सेंकने की। सो, सब अपनी सीमा में सुरक्षित खेल रहे हैं और इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि अभी तक किसी साहित्यकार ने पद्म पुरस्कार नहीं लौटाया है, जो कि सरकार देती है, साहित्य अकादेमी नहीं।

पते की बात यह है कि सरकार न तो साहित्य अकादेमी के पुरस्कार पर निर्णय करती है और न ही उनकी प्रक्रिया को प्रभावित-नियंत्रित करती है तो ऐसे में साहित्य अकादेमी पुरस्कार को वापिस करना बेमानी है।

ऐसे में केरल सरकार से इस्तीफा मांगने की बजाए साहित्य अकादेमी पुरस्कार वापिस करना अंगुली कटा कर शहीद होने का हल्ला दोगले चरित्र-चिंतन से अधिक कुछ नहीं।


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