Monday, April 30, 2018
Sunday, April 15, 2018
Changing demographic profile of British Delhi_अंग्रेजों के बाद, बदला आबादी का स्वरूप
1911 के साल और उससे पहले के दशक में भारत की जनगणना में दिल्ली केवल एक शहर के रूप में दर्ज थी। इस शहर में पुरानी दिल्ली म्युनिसिपलिटी, सिविल लाइंस और छावनी का क्षेत्र शामिल था। अंग्रेज भारत की राजधानी के कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित होने के बाद 1931 की जनगणना में दो शहर, पुरानी दिल्ली और नयी दिल्ली या शाही दिल्ली दर्ज किए गए। पुरानी दिल्ली शहर में पुरानी दिल्ली म्युनिसिपलिटी, फोर्ट नोटिफाइड कमेटी और शाहदरा का इलाका तथा नयी दिल्ली म्युनिसिपलिटी और नए छावनी के तहत क्षेत्रों को नयी दिल्ली शहर में सम्मिलित कर लिया गया। 1951 की भारत की जनगणना में तीन और उपनगरों महरौली, नजफगढ़ और नरेला को भी शामिल कर लिया गया और उन्हें दूसरों के साथ शहरी क्षेत्रों का नाम दिया गया। हालांकि तब भी शहर में विभिन्न स्थानीय निकाय अलग-अलग काम कर रहे थे। एक तरह से कहा जा सकता है कि शाहदरा को छोड़कर सभी क्षेत्र और उपनगर कमोबेश एक एकीकृत इकाई थे।
1803 में जब दिल्ली पर अंग्रेजों के कब्जे से पहले शहर की आबादी की गिनती का कोई पुख्ता हिसाब-किताब नहीं रखा जाता था। फिर भी एक हिसाब से दिल्ली की आबादी डेढ़ लाख से अधिक नहीं थी। उसके बाद अगले चालीस बरस में भी जनसंख्या में अधिक तेजी नहीं दर्ज की गई। 1847 में दिल्ली की आबादी केवल 160279 थी यानी केवल 6.5 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी। जबकि 1868 के दशक में जनसंख्या में 3.7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इसका एक मुख्य कारण 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद दिल्ली बड़े पैमाने पर भारतीयों के कत्लेआम और दिल्ली से निष्काषन था। उसके बाद दिल्ली को फिर से आबाद होने में समय लगा।
दिल्ली में रेल आने (1867) के साथ एक बार फिर आबादी बढ़ी और करीब 12 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। 19 वीं सदी के आरंभ में शहर की जनसंख्या में करीब आठ प्रतिशत का इजाफा हुआ। उसके बाद 1911 में हुए तीसरे दिल्ली दरबार की तैयारियों के कारण सैकड़ों लोग विभिन्न देसी राज-रजवाड़ों से दिल्ली आए। इस वजह से उस दशक में आबादी में 12 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई। उस दौर में राजधानी में प्लेग होने के कारण भी काफी लोग अकाल मृत्यु का शिकार हुए।
अंग्रेजी साम्राज्य की राजधानी (1911 में) बनने के बाद ही दिल्ली में जनसंख्या में असली वृद्धि देखने को मिली। उस समय तक राजधानी में औद्योगिक और व्यावसायिक स्थितियों में सुधार हुआ। जिसके कारण शहर में प्रवासियों की आमद बढ़ी। नयी राजधानी के निर्माण के लिए हजारों मजदूरों की जरूरत थी जो कि पड़ोस के इलाकों से आए। साथ ही, व्यापारी वर्ग के अलावा अंग्रेजों की पूर्व राजधानी कलकत्ता में रहने वाले सरकारी कर्मचारी-अधिकारी में यहां स्थानांतरित हुए। 1921 में प्रवासी आबादी कुल आबादी का 45 प्रतिशत थी। उस समय शहर में पुरानी दिल्ली (शाहजहांनाबाद) और नयी दिल्ली (रायसीना) आते थे। 65 वर्ग मील का यह पूरा इलाका विभिन्न स्थानीय निकायों के तहत आता था।
1921 के बाद से दिल्ली की राजनीतिक, व्यावसायिक और औद्योगिक महत्व में खासा इजाफा हुआ। इसका नतीजा, अधिक प्रवासियों का यहां आना हुआ। 1931 में शहर में 47 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई, जिसमें 48 प्रतिशत हिस्सा प्रवासियों का था। इसी दशक में करोलबाग में आबादी के बसने की सिलसिला देखने में आया, जहां बसावट के लिए अच्छी जमीन थी। इसी तरह, सब्जी मंडी इलाके के बाहर भी जनसंख्या का फैलाव हुआ। दूसरी तरफ, पूरब में शाहदरा गांव भी आठ हजार की आबादी वाला एक कस्बा बन गया। शाहदरा की इस बड़ी आबादी का अधिकांश हिस्सा रोजगार के लिए शहर पर निर्भर था।
1941 में जनसंख्या के बढ़ने का प्रतिशत केवल 5.5 था। शहर में आबादी में अभूतपूर्व वृद्धि केवल 1951 के बाद ही दर्ज की गई। जबकि इसी दौरान जल-मल निकासी और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन में सुधार के कारण मृत्यु दर 1931 में 26.5 प्रतिशत से घटकर 12.6 प्रतिशत हो गई। 1947 में देश विभाजन के कारण अचानाक करीब साढ़े चार लाख हिंदू-सिखों की आबादी विस्थापित होकर दिल्ली आई। जिससे राजधानी में विभिन्न राज्यों से कारोबार-रोजगार की तलाश में आने वाले प्रवासियों की हिस्सेदारी कम हुई। इतना ही नहीं, रातो-रात शहर की आबादी में 103.4 प्रतिशत का इजाफा दर्ज किया गया। इन विस्थापितों के अचानक आगमन से शहर में रहने लायक स्थानों पर जोर बढ़ा। इनमें से कुछ आबादी खाली मकानों तो कुछ उपनगरों और कुछ पास-पड़ोस के शहरों में बसी।
Monday, April 9, 2018
Thursday, April 5, 2018
Sunday, April 1, 2018
poem_dharamvir bharti_धर्मवीर भारती_क्योंकि सपना है अभी भी
...क्योंकि सपना है अभी भी
इसलिए तलवार टूटी अश्व घायल
कोहरे डूबी दिशाएं
कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध धूमिल
किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
...क्योंकि सपना है अभी भी!
तोड़ कर अपने चतुर्दिक का छलावा
जब कि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा
कुछ नहीं था पास बस इसके अलावा
विदा बेला, यही सपना भाल पर तुमने तिलक की तरह आँका था
(एक युग के बाद अब तुमको कहां याद होगा?)
किन्तु मुझको तो इसी के लिए जीना और लड़ना है धधकती आग में तपना अभी भी
....क्योंकि सपना है अभी भी!
तुम नहीं हो, मैं अकेला हूँ मगर
वह तुम्ही हो जो
टूटती तलवार की झंकार में
या भीड़ की जयकार में
या मौत के सुनसान हाहाकार में
फिर गूंज जाती हो
और मुझको
ढाल छूटे, कवच टूटे हुए मुझको
फिर तड़प कर याद आता है कि
सब कुछ खो गया है - दिशाएं, पहचान, कुंडल,कवच
लेकिन शेष हूँ मैं, युद्धरत् मैं, तुम्हारा मैं
तुम्हारा अपना अभी भी
इसलिए, तलवार टूटी, अश्व घायल
कोहरे डूबी दिशाएं
कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध धूमिल
किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
... क्योंकि सपना है अभी भी!
-धर्मवीर भारती (क्योंकि सपना है अभी भी)
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