Thursday, November 5, 2020

Maker of Modern India_Sardar Patel_Rozgar Samachar_आधुनिक भारत के वास्तविक निर्माता_सरदार पटेल


 





स्वतंत्र भारत के पहले उपप्रधानमंत्री और केन्द्रीय गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने छह सौ से अधिक देसी रियासतों को एकसूत्र में बांधकर भारतीय एकता के भगीरथ कार्य को सिद्व करते किया। इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखी जाने वाली इस साहसगाथा की ध्यान में रखने की महत्वपूर्ण बात तो यह है कि यह चमत्कार इतिहास की अवज्ञा करके, परम्परा के विरुद्व, अनेक विरोधी परिस्थितियों तथा शक्तियों का सामना करके और दो वर्ष की अल्प अवधि में सिद्व किया गया। यह एक ऐसा महान साहसिक कार्य है जिसका विश्व इतिहास में दूसरा उदाहरण उपलब्ध नहीं होता।


उन्होंने 3 नवंबर 1948 को नागपुर विद्यापीठ में भारतीय संघ के एकीकरण पर कहा, आपको मालूम है कि हिन्दोस्तान में 562 रियासतेें थीं। इतनी रियासतें हिन्दुस्तान को एक तरह से अलग-अलग टुकड़े किए हुए थीं। उन सब की अलग-अलग राज्य-व्यवस्था थी। जब परदेसी सल्तनत हमको छोड़ कर चली गई, तो कौन उम्मीद करता था कि एक साल में इस सारी समस्या को हम ठीक कर लेेंगे। किसे ख्याल था कि इस सारी कार्रवाई में न किसी को नुकसान होगा, न कोई मार-पीट होगी। परमात्मा की कृपा से पूरी शान्ति से, अमन से और प्रेम से यह सब काम हो गया।

सरदार पटेल ने 4 नवंबर 1948 को नागपुर में स्टेट एडवाइजरी कौंसिल के उद्घाटन करते हुए कहा था, ‘‘मैं आपको बतलाना चाहता हूं कि मेरे दिल में रियासतों को एकत्रित करने की और उन्हें हिन्दुस्तान में मिलाने की कल्पना किस तरह उद्भूत हुई, उसका ख्याल मैं आपके सामने रखना चाहता हूं। जब मैंने हिन्दुस्तान सरकार के गृहमंत्री का पद स्वीकार किया, तब मुझे कोई ख्याल न था कि इन देशी रियासतों का काम मेरे पास आने वाला है। उनका क्या नक्शा बनेगा, यह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था। हिन्दुस्तान में यह जो बड़ा भारी विप्लव हुआ है, जिससे देशी रियासतों की समस्या इतने थोड़े समय में हल हो गई है। यह सब क्योंकर हुआ, किस तरह से हुआ, इसे अभी कम लोग जानते हैं। उससे क्या लाभालाभ हुए, उन सब के मूल्य आंकने में अभी वक्त लगेगा। जो कुछ हुआ, उसे कम लोग जानते हैं।’’

जयपुर में संयुक्त राजस्थान का उद्घाटन करते हुए सरदार पटेल ने देश की एकता कायम करने में परोक्ष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राजाओं-राज परिवारों के विषय में कहा था, जिन सब महाराजाओं ने इस काम में साथ दिया और समय को पहचान कर तो त्याग किया, उसके लिए मैं उनको भी धन्यवाद देना चाहता हूं। मैंने जो यह रियासतों के सम्बन्ध में कुछ कार्य किया है, उसके लिए मेरी तारीफ की जाती है। मगर असल में तो इसके लिए हिन्दुस्तान के राजा-महाराजाओं की तारीफ की जानी चाहिए। यदि सच्चे दिल से उन लोगों ने साथ न दिया होता, तो आज हिन्दुस्तान का इतिहास जिस तरह बदल रहा है, वह इस तरह बदल नहीं सका होता। बेसमझ लोग उसकी कदर न करें, तो इसमें किसी का कुछ आता-जाता नहीं। मैं तो उसकी पूरी कदर करता हूँ और सारे हिन्दुस्तान में इस बात की कदर कराने की कोशिश करता हूं। क्योंकि ऐसा करना मैं अपना फर्ज समझता हूं। आज भी हिन्दुस्तान के राजा-महाराजाओं ने अपनी रियासत के लिए, अपने लोगों के लिए त्याग किया है। वे सदा से ऐसा करते आए हैं और करते रहेंगे।


सरदार पटेल रियासतों के एकीकरण के बाद देश के समक्ष आने वाली नई चुनौतियों को लेकर पूरी तरह सजग थे। उन्होंने इसी बात को रेखांकित करते हुए 15 जुलाई 1948 को पेप्सू के उद्घाटन भाषण में कहा था कि राजाओं के पास से राज्य ले लेना आसान है। क्योंकि जब तक हमारे ऊपर परदेसी हुकूमत थी, तक राजाओं के दिल में चाहे कुछ भी रहा हो, लेकिन तब वे भी आजाद नहीं थे। जैसे हम तब गुलाम थे, वे हम से भी दुगुनी गुलामी में फंसे हुए थे। अब हम सब आजाद हैं। यह आप समझ लें कि मैंने बहुत-से राजाओं के साथ प्रजा की तरफ से लड़ाई की। बहुत-से राजा मुझ पर कुछ नाखुश भी थे। लेकिन आज जितनी मेरी राजाओं के साथ मुहब्बत है, उतनी और किसी की नहीं होगी। क्योंकि स्वतन्त्र राजाओं के दिल में भी देश के लिए उतना ही प्रेम है, जितना हमारे दिलों में है। उससे कम नहीं है। उससे कम होता, तो स्वतन्त्र हिन्दुस्तान में किसी का राज्य नहीं चल सकता था। तो राजा लोग समझ गए और उन्होंने अपनी जगह समझ ली। बीच में एक मौका ऐसा आया था कि कई राजा अलग राजस्थान बनाने के लिए कोशिश कर रहे थे। जब पाकिस्तान बना तो उस समय यह हिन्दुस्तान के और टुकड़े करने की कोशिश भी हो रही थी। तब पटियाला महाराजा ने कहा कि ऐसा कभी नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान के राजा हिन्दुस्तान के साथ रहेंगे। उसी समय से मेरी उन से मुहब्बत हुई। वह मुहब्बत कभी टूट नहीं सकतीं।

सरदार पटेल ने 3 अक्तूबर 1948 को दिल्ली के इम्पीरियल होटल में आयोजित एक कार्यक्रम में साफ शब्दों में कहा था कि आप यह भी समझ लें कि राजाओं ने भी अपना साथ हमें दिया। जैसे हम में सब भले नहीं हैं, बुरे भी हैं, वैसे उनमें भी भले और बुरे दोनों हैं। लेकिन जब देश आजाद हुआ, तो उनको भी ख्याल हुआ कि ये लोग मुल्क का कुछ भला करना चाहते हैं और इस में हमें साथ देना चाहिए। अब जिसके पास राज है उसको छोड़ देना, जिसके पास सत्ता है, उसे छोड़ देना, यह कितनी कठिन बात है। जो छोड़े, उसी को मालूम पड़ेगा। जिसके पास नहीं है, उसका यह कहना कि यह आसान बात है, बेमतलब है। कुछ लोग कहते हैं कि हमने राजाओं को इतना पर्स दिया, इतना रुपया दिया, इतना पेंशन दिया। लेकिन जो जानता है उसको मालूम है कि यह एक प्रकार का बहुत बड़ा विप्लव है, एक बड़ा रेवोल्यूशन (क्रांति) है। हमें उनकी कोई खुशामद नहीं करनी पड़ी और उन्होंने देश के हित के लिए स्वयं इतना बड़ा स्वार्थत्याग किया। यह भगवान की बड़ी कृपा है और हिन्दुस्तान के सदभाग्य और भविष्य के लिए अच्छा है।

बम्बई की चौपाटी में आयोजित एक जनसभा (30 अक्तूबर 1948) में सरदार पटेल ने स्वतंत्र भारत की स्थिति को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज हमने राजाओं के हाथ से सत्ता लेकर प्रजा के प्रतिनिधियों को दे तो दी है, पर वहां किस प्रकार काम चलता है और हमारी वहां क्या-क्या जिम्मेदारी है और कितनी हद तक जिम्मेदारी पूरी हो रही है, अगर यह सब हम सोचें, तो हमें धक्का लगेगा। इसलिए हमारे सामने अभी जो काम करने को बाकी है, वह बहुत बड़ा है। अभी तो हमने केवल शुरूआत भर की है। जो कुछ हमने किया है, वह भी बड़ी बात है, लेकिन इतनी बड़ी नहीं कि जो काम बाकी रहा है, उसे हम भूल जाएं। अभी तो हमारे पास सांस लेने का भी समय नहीं है, आराम का समय नहीं है। यह सोचने का भी समय नहीं है कि हमारी आयु कितनी है। अभी तो रात-दिन हमें काम करना है। तभी हिन्दुस्तान उठ सकता है, नहीं तो वह गिर जाएगा।

देश के दूसरे राष्ट्रपति डाक्टर सर्वापल्ली राधाकृष्णन ने सरदार पटेल की अविस्मरणीय भूमिका का सटीक आकलन करते हुए कहा था कि जब तक वर्तमान भारत जीवित है, उनका नाम वर्तमान भारत के ऐसे राष्ट्र निर्माता के रूप में सदा स्मरण किया जाता रहेगा, जिन्होंने सभी 600 भारतीय देसी राज्यों का एक मात्र संघ बनाया। उनका यह कार्य हमारे देश के एकीकरण की दिशा में अत्याधिक स्थायी कार्य था। इस विषय में हम कभी नहीं भूल सकते।


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