Tuesday, October 30, 2012

Shaitan Singh:Indo-China War 1962

 
About soldiers thse lines are engraved on shrine of Shaitan Singh of Rajputana Rifles all whose men perished fighting. Their bodies were found frozen but yet ready to throw grenade or fire gun when discovered months later.
“How can a man die better/ Than facing fearful odds/ For the ashes of his fathers/ And the temples of his gods”

Indian Communists: Ghost of Mao

 
As per today's media report Chinese Communist Party, which is holding its Congress next month to select once in a decade leadership, has dropped "Mao thoughts" from a key document whereas in India the ghost of Mao is still on the shoulders of Indian communists who publicly raised the slogans of Mao Tse-Tung Zindabad in West bengal.                            
In Sept 1960 the first evidence of a vertical split in the CPI became evident with the hard left faction comprising Jyoti Basu, Harikishen Singh Surjit, Basavapunniah, Sundarayya and Ranadive supporting the Chinese position on the Indo-Sino border dispute.
When Z.A. Ahmed indicated that the Party should take a nationalist stand on Chinese incursions to India, he was severely berated by the West Bengal faction.

regimentation:ghetto

Everywhere regimentation creates ghettos and inspire mindblock which is never-ever inspiring and positive in any sense.

Monday, October 29, 2012

Ghalib-1857 Delhi

आधा मुसलमान हूँ
 
अपनी हाज़िरजवाबी और विनोदवृत्ति के कारण मिर्ज़ा जहाँ कई बार कठिनाईयों में फँस जाते थे वहीं कई बार बड़ी-बड़ी मुसीबतों से बच निकलते थे । आजादी की पहली लड़ाई, 1857 के दिनों की बात है । उन दिनों का माहौल ऐसा था कि अँगरेज़ सभी मुसलमानों को शक की नज़र से देखते थे । दिल्ली लगभग मुसलमानों से खाली हो गयी थी । पर ग़ालिब थे कि वहीँ चुपचाप अपने घर में पड़े रहे । आखिर एक दिन कुछ गोरे सिपाही उन्हें भी पकड़कर कर्नल ब्राउन के पास ले गये । जब ग़ालिब को कर्नल के सम्मुख उपस्थित किया गया मिर्ज़ा के सिर पर ऊँची टोपी थी । वेशभूषा भी अजब थी । कर्नल ने मिर्ज़ा की यह सजधज देखी तो पूछा- “वेल टुम मुसलमान ?”

मिर्ज़ा ने कहा- “आधा ।”
कर्नल से पूछा- “इसका क्या मटलब है ?”
मिर्ज़ा बोले- “मतलब साफ है, शराब पीता हूँ, सुअर नहीं खाता ।“
कर्नल सुनकर हँसने लगा और हँसते-हँसते मिर्ज़ा को घर लौटने की इजाजत दे दी ।

First-Last B&W Photograph of Mirza Ghalib

 
मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग खान अर्थात मिर्जा ग़ालिब की शायरी के बारे में बहुत सारी बातें की जाती हैं, लेकिन इस फेर में उनके जीवन से संबंधित अनेक बातों की अनजाने में अनदेखी हो जाती है ।
यह एक कम जानी बात है कि गालिब का बस एक ही ब्लैक एंड व्हाइट फोटो है, जिसके आधार पर अनेक कलाकारों ने चित्र बनाए हैं। गालिब के दौर में पिन-होल कैमरा नया-नया आया था और उस समय इस कैमरे से अवध के नवाब वाजिद अली शाह और गालिब के दोस्त बहादुर शाह जफर के फोटो भी लिए  गए थे।
गालिब का पहला और एक तरह से अंतिम फोटो दिल्ली के फोटोग्राफर रहमत अली ने उतारा था। अफसोसजनक बात यह है कि आज रहमत अली का नाम और काम दोनों ही दुनिया की नजरों से ओझल है, दूसरे शब्दों में इतिहास की किताब में रहमत अली का पन्ना गायब है ।

Sunday, October 28, 2012

Life:Target

It happens in life when everything seems to be pulling in opposite direction but it is our duty to stay calm, compose and commit towards the goal with single sight in the eye of achieving the target.

History of Delhi: 1857-Fatehpuri Masjid


Lala Chunnamal, who "was given the Fatehpuri Masjid after 1857 by the British, for Rs 20,000, with a suggestion to turn it into a market. But he preserved the sanctity of it, and 20 years later, restored it to the mosque that it was."

Saturday, October 27, 2012

Mother-child-self

हम तो बस बाहर को साधने और उसके स्वीकारने में लगे है पर मां तो मन को, संतान को, साधती है जो आपका ही विस्तार है ।

corporate corruption


Each one of us knows that corporate corruption in India is monumental. The media never talks about corporate corruption. We’ve had a thousand exposes against politicians in last 20 years, you can’t name me 10 exposes that the media has done against corporations. Because corporations pay for our lives, they pay for our advertising, they pay our salaries. So we genuflect to corporations.

irrelevant commitment

मृतकों और संन्यासियों के प्रति निष्ठा निरर्थक है ।

Individual moksh

निजी मुक्ति का मार्ग समाज की मुक्ति से अधिक आकर्षक है पर सभ्यता की मुक्ति का मार्ग समाज की मुक्ति से ही निकलता है ।

Friday, October 26, 2012

Jaipur Sweets: Temptation

अभी किशनपोल बाजार के भगत के देसी घी के लड्डू की कशिश से पत्नी भी परेशान है कि कल से आज तक डेढ़ किलो मिठाई चट हो गई है, बस अब गिनती के लाडू बचे हैं । लगता है फिर जयपुर से दिल्ली मिठाई मंगवानी पड़ेगी, भगवान अगले सप्ताह जयपुर की टिकट कटवा दे तो फिर सोने पर सुहागा ।

Wednesday, October 24, 2012

Nirad C. Chaudhuri: Making of capital Delhi



In 1911, unknown to all of us, the shadow of death had already fallen (on Calcutta). I still remember my father reading with his friends the news of the transfer of the capital to Delhi. The Statesman of Calcutta was furious but was thinking more of the past than future and was not inspired to prophecies in the spirit of Cassandra. We, the Bengalis, were, but not in the spirit of Cassandra. We were flippant. One of my father’s friend dryly said, “They are going to Delhi, the graveyard of empires, to be buried there.” Everybody present laughed, but none of us on that day imagined that although the burial was the object of our most fervent hopes it was only thirty six year away.
 Nirad C. Chaudhuri recalled their (Bengalis) reaction in his autobiography published in 1951 just after independence.

Meer-Delhi


अहमद शाह अब्दाली और नादिरशाह के हमलों से कटी-फटी दिल्ली को मीर तक़ी मीर ने अपनी आँखों से देखा था। इस त्रासदी की व्यथा उनके कलामो मे दिखती है, अपनी ग़ज़लों के बारे में एक जगह उन्होने कहा था-

हमको शायर न कहो मीर कि साहिब हमने
दर्दो ग़म कितने किए जमा तो दीवान किया

Rajasthan in New Delhi

नई दिल्ली की बसावट में राजस्थान का अविस्मरणीय योगदान
मेरे पिताजी जब ठेकेदारी के व्यवसाय के शिखर पर थे तो 6,000 से ऊपर मजदूर और दर्जनों क्लर्क, मुनीम और देखरेख करने वाले कर्मचारी उनकी सेवा में थे । मजदूर राजस्थान से आनेवाले बागड़ी लोग थे । अपने सिर पर ईटें, सीमेंट और गारा ढ़ोने के एवज में पुरूषों को आठ आने आधा रुपया और उनकी स्त्रियों को छह आने दैनिक मजदूरी मिलती थी ।
(सच, प्यार और थोड़ी सी शरारत, पेज 40-41, खुशवंत सिंह)

Tuesday, October 23, 2012

power:surrender

power wants absolute authority, complete surrender. no arguments, no pleas.

Monday, October 22, 2012

Sale of House and city..............

मालूम न था कि इतना कुछ है घर में बेचने के लिए । जमीन से लेकर जमीर तक सब बिक रहा है, बिकता जा रहा है । कही शहर बिक रहा है, कहीं रियासत बिक रही है।

Change in Character

चारित्रिक परिवर्तन भाषा ही नहीं व्यक्तित्व का चिंतन भी बदल देता है ।
Change in Character not only changes the language but also tone and tenor of the personality.

Sunday, October 21, 2012

mystery of unknown

ऐसा क्यों होता है कि जो मिल जाता है, उससे मन ऊब जाता है ।
जो नहीं मिलता वो मन में कांटा बनकर टीस देता रहता है ।
मिलने वाले फूल और न मिलने वाले कांटे की जद्दोजहद जिंदगी की पहेली है जो चिता पर चढ़ने तक चिंता में घुलाए रखती है ।
सही में पर्दे के पीछे का आकर्षण, पाने और न पाने की पहेली अबूझ ही है ।

Saturday, October 20, 2012

Poem's:Ramdhari Singh Dinkar

 
सब से विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तय करो
अभिषेक आज राजा का नहीं,प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
आरती लिये तू किसे ढूंढता है मूरख,
मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में?
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।

फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
(जनतंत्र का जन्‍म:रामधारी सिंह 'दिनकर')

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जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल
(कलम, आज उनकी जय बोल:रामधारी सिंह 'दिनकर')

Tuesday, October 2, 2012

False impression

हुआ-हुआ थ्योरी

कौवा बोले कोयल से,
तुझसे सुंदर कौन ?
कोयल बोले कौवे से,
तुझसे मधुर कौन ?

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...