नई दिल्ली की बसावट में राजस्थान का अविस्मरणीय योगदान
मेरे पिताजी जब ठेकेदारी के व्यवसाय के शिखर पर थे तो 6,000 से ऊपर मजदूर और दर्जनों क्लर्क, मुनीम और देखरेख करने वाले कर्मचारी उनकी सेवा में थे । मजदूर राजस्थान से आनेवाले बागड़ी लोग थे । अपने सिर पर ईटें, सीमेंट और गारा ढ़ोने के एवज में पुरूषों को आठ आने आधा रुपया और उनकी स्त्रियों को छह आने दैनिक मजदूरी मिलती थी ।
(सच, प्यार और थोड़ी सी शरारत, पेज 40-41, खुशवंत सिंह)
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