ऐसा क्यों होता है कि जो मिल जाता है, उससे मन ऊब जाता है ।
जो नहीं मिलता वो मन में कांटा बनकर टीस देता रहता है ।
मिलने वाले फूल और न मिलने वाले कांटे की जद्दोजहद जिंदगी की पहेली है जो चिता पर चढ़ने तक चिंता में घुलाए रखती है ।
सही में पर्दे के पीछे का आकर्षण, पाने और न पाने की पहेली अबूझ ही है ।
जो नहीं मिलता वो मन में कांटा बनकर टीस देता रहता है ।
मिलने वाले फूल और न मिलने वाले कांटे की जद्दोजहद जिंदगी की पहेली है जो चिता पर चढ़ने तक चिंता में घुलाए रखती है ।
सही में पर्दे के पीछे का आकर्षण, पाने और न पाने की पहेली अबूझ ही है ।
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