Sunday, May 29, 2016
Tuesday, May 24, 2016
मावठ की बारिश_Mavath Rain
आज किसी के मावठ के बारे में सवाल पूछने के के बहाने मेरे जेहन से अपने प्रदेश, खेत-खलिहान से जुड़ी यादों पर जमा धूल झड़ गयी।
मावठ राजस्थानी शब्द है, जिसका अर्थ "माघ वृष्टि से है। एक तरह से इसका संबंध माघ महीने से है।
भूमध्य सागर से लेकर हिंदुस्तान तक खाली मैदान और रेगिस्तान होने की वजह से हवा बिना किसी अवरोध के हिंदुस्तान तक पहुंचती हैं। इस हवा के कारण होने वाली बारिश मावठ कहलाती है।
राजस्थान के अपने गाँव-ननिहाल गए तो बरसों हो गए अब तो बस यादें है बचपन की और दिल्ली की इमारतों का जंगल और दौड़ है।
ऐसी दौड़ जो शहर के किसी श्मशान घाट पर ही जाकर खत्म होगी। अब न केवल शब्द, संदर्भ, सम्बोधन और उससे जुड़ा सहज जीवन सभी कुछ समाए जा रहा है, इस कथित आधुनिकता के "भंवर" में।
स्मरण को पाथेय बनने दें।
Monday, May 23, 2016
Angoorlata Deka_lucid comments_ अंगूरलता डेका_अश्लील-भद्दी टिप्पणियों
प्रगतिशील स्त्रीवादी विमर्श!
असम विधानसभा में नवनिर्वाचित भाजपा महिला विधायक और फिल्म अभिनेत्री अंगूरलता डेका के नाम पर फर्जी तस्वीरें लगाकर फ़ेसबुक पर प्रगतिशील नक्सली-वामपंथी विचार समर्थक अपनी अश्लील-भद्दी टिप्पणियों से अपनी कुंठित-कम्यून वाली पशुवत मानसिकता को जगजाहिर कर रहे हैं।
एक स्त्री को कमतर दिखाने के लिए दूसरी स्त्री की फोटो-पहचान का जानबूझकर गलत इस्तेमाल।
Sunday, May 22, 2016
हमारी हिंदी_रघुवीर सहाय (Hamari Hindi_Raghuvir Sahay)
हमारी हिंदी एक दुहाजू की नई बीवी है
बहुत बोलनेवाली बहुत खानेवाली बहुत सोनेवाली
गहने गढ़ाते जाओ
सर पर चढ़ाते जाओ
वह मुटाती जाए
पसीने से गंधाती जाए घर का माल मैके पहुँचाती जाए
पड़ोसिनों से जले
कचरा फेंकने को ले कर लड़े
घर से तो खैर निकलने का सवाल ही नहीं उठता
औरतों को जो चाहिए घर ही में है
एक महाभारत है एक रामायण है तुलसीदास की भी राधेश्याम की भी
एक नागिन की स्टोरी बमय गाने
और एक खारी बावली में छपा कोकशास्त्र
एक खूसट महरिन है परपंच के लिए
एक अधेड़ खसम है जिसके प्राण अकच्छ किए जा सकें
एक गुचकुलिया-सा आँगन कई कमरे कुठरिया एक के अंदर एक
बिस्तरों पर चीकट तकिए कुरसियों पर गौंजे हुए उतारे कपड़े
फर्श पर ढंनगते गिलास
खूँटियों पर कुचैली चादरें जो कुएँ पर ले जाकर फींची जाएँगी
घर में सबकुछ है जो औरतों को चाहिए
सीलन भी और अंदर की कोठरी में पाँच सेर सोना भी
और संतान भी जिसका जिगर बढ गया है
जिसे वह मासिक पत्रिकाओं पर हगाया करती है
और जमीन भी जिस पर हिंदी भवन बनेगा
कहनेवाले चाहे कुछ कहें
हमारी हिंदी सुहागिन है सती है खुश है
उसकी साध यही है कि खसम से पहले मरे
और तो सब ठीक है पर पहले खसम उससे बचे
तब तो वह अपनी साध पूरी करे ।
Saturday, May 14, 2016
history of name of kankroli_कांकरोली
खांखाडोली के कांकरोली होने की कहानी
खांखा रावत मेवाड़-मारवाड़ में धाड़ा मारते थे। उनकी चारभुजानाथ जी में गहरी आस्था थी। इस कारण एक बार धाड़ा मारने जाते समय उन्होंने चारभुजानाथ में संकल्प लिया कि यदि उन्हें धाड़े में सफलता मिली तो वे मन्दिर निर्माण के साथ पुजारी को डोली देंगे।
खांखा रावत ने सफल धाड़े के बाद मन्दिर बनवाया और पुजारी को डोली दी।और फिर इस घटना के बाद इस स्थान का नाम खांखाडोली हुआ।
खांखाडोली से खांखरोली और बाद में कांकरोली!
आज का कांकरोली राजसमन्द जिले में है।
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