Sunday, May 29, 2016

Antim Aranya_Nirmal Verma_निर्मल वर्मा_अंतिम अरण्य



जिसे हम अपनी ज़िन्दगी, अपना विगत और अपना अतीत कहते हैं ऊबड़-खाबड़ क्यों न रहा हो उसमें एक संगति देखते हैं. जीवन के तमाम अनुभव एक महीन धागे से बिंधे जान पड़ते हैं.


-निर्मल वर्मा, ‘अंतिम अरण्य’ उपन्यास में

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