सामान्य रूप से सार्वजनिक जीवन में मंच, माइक और मलाई पाने की चाह भला किसके मन में नहीं होती! पर कई बार यह चाहना बस मन में ही रह जाती है!
आखिर यथार्थ में, कर्तव्य की डगर पर निरंतर धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने से ही मंजिल मिलती है।
जवानी में गुनगुनाने वाला एक गीत का पहला अंतरा अनायास ही याद हो आया, "जीवन का लक्ष्य नहीं है, सिंहासन चढ़ते जाना...."
Photo Caption: Bharat Mata", offset print, 1937, painting by P.S. Ramachandran Rao.
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