Thursday, July 7, 2016

छिन्नमस्ता_कविता_self to death




अब कोई भूले
तो फिर कैसे कटे रात
अकेले या दुकेले!


पर ऐसा भला
कहाँ होता है जीवन में हर बार
कहो तो जरा!


हर कोई अपना
बोझ लिए सिर पर निकल जाता है
चुपचाप बिना आहट के!


खुशी हो या गम
हो चुकने को तो होना होता है
चुकते तो बस हम है!


मौत की आहट
भला दबे पाँव आने की बात
कही जाती हो!

फिर ऐसे कोई
माने या न माने मेरी बात
सच्चाई कहाँ बदलती है बेबात!


पृथ्वी पर हम
आते हैं गिनती के दिनों के साथ
वापस जाने को!


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