Saturday, January 13, 2018

Arrival of Electricity in Delhi_दिल्ली में बिजली आने की कहानी



बीसवीं सदी के आरंभ में दिल्ली में विद्युतीकरण की शुरूआत हुई और संयोग से शहर की राजनीतिक हैसियत में भी इजाफा हुआ। 


“दिल्ली बिटवीन टू एंपायर्स” पुस्तक में नारायणी गुप्ता लिखती है कि पाइप से पानी और कचरे-मल की निकासी के लिए नाली की व्यवस्था की तरह बिजली भी 1902 में (दिल्ली) दरबार के होने के कारण दिल्ली में आई। फानशावे ("दिल्ली: पास्ट एंड प्रेजेन्ट" पुस्तक का लेखक एच॰ सी॰ फांशवा)  ने पूरब (यानी भारत) में बिजली की रोशनी के आरंभ के विषय पर चर्चा करते हुए इसे एक फिजूल अपव्यय के रूप में खारिज कर दिया था। उसने (कु) तर्क देते हुए कहा था कि दिल्ली में कलकत्ता के उलट कारोबार सूर्यास्त तक खत्म हो जाता है और ऐसे में मिट्टी के तेल से होने वाली रोशनी काफी थी।

बीसवीं सदी के पहले दशक में अंग्रेज साम्राज्यवादी शासन की तरफ से भारतीय परंपरा की नकल करते हुए दिल्ली में दो दरबार (1903, 1911) आयोजित किए, जिनमें दिल्ली की साज-सजावट के लिए बिजली का इस्तेमाल किया गया। “ए मॉरल टेक्नोलाजी: इलेक्ट्रिफिकेशन एज पोलिटिकल रिचुअल इन न्यू दिल्ली” पुस्तक में लियो कोल्मैन लिखते हैं कि इन अंग्रेज शाही-रस्मों ने आधुनिक प्रौद्योगिकियों पर औपनिवेशिक पकड़ (श्रेष्ठता) को प्रदर्शित किया और भारतीय राजा रजवाड़ों को भी अपने राजनीतिक और दूसरे अनुष्ठान कार्यक्रमों के लिए बिजली का इस्तेमाल करने की दिशा में प्रेरित किया। कोलमैन के अनुसार रस्म-अनुष्ठान, नैतिक निर्णय और प्रौद्योगिकीय प्रतिष्ठानों की स्थापना संयुक्त रूप से मिलकर आधुनिक राज्य शक्ति, नागरिक जीवन और राजनीतिक समुदाय को आकार देते हैं।

दिल्ली में वर्ष 1905 में पहली डीजल पावर स्टेशन बनाया गया और मैसर्स जॉन फ्लेमिंग नामक एक निजी अंग्रेजी कंपनी को भारतीय विद्युत अधिनियम 1903 के प्रावधानों के तहत बिजली बनाने की अनुमति दी गई थी। इस कंपनी को सीमित रूप से बिजली बनाने और वितरण करने की दोहरी जिम्मेदारी दी गई थी। इस कंपनी ने विद्युत अधिनियम, 1903 के तहत लाइसेंस लेने के बाद पुरानी दिल्ली में लाहौरी गेट पर दो मेगावाट का एक छोटा डीजल स्टेशन बनाया था। कुछ समय बाद, यह कंपनी दिल्ली इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई एंड ट्रैक्शन कंपनी बन गई। 


वर्ष 1911 में, बिजली उत्पादन के लिए स्टीम जनरेशन स्टेशन यानी भाप से बिजली बनाने की शुरूआत की गई। वर्ष 1932 में सेंट्रल पावर हाउस का प्रबंधन नई दिल्ली नगर निगम समिति (एनडीएमसी) के हाथ में दे दिया गया।

दिल्ली में बिजली उत्पादन और वितरण के क्षेत्र में वर्ष 1939 एक मील का पत्थर साबित हुआ जब दिल्ली सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी पॉवर अथॉरिटी (डीसीईएए) की स्थापना हुई। इस कंपनी कि जिम्मे स्थानीय निकायों, विशेष रूप से दिल्ली म्यूनिसिपल कमेटियों के क्षेत्रों पश्चिम दिल्ली और दक्षिण दिल्ली के अलावा अधिसूचित क्षेत्र समितियों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों लाल किला, सिविल लाइंस, महरौली] नजफगढ़ तथा दिल्ली डिस्ट्रिक बोर्ड को बिजली आपूर्ति करने की जिम्मेदारी थी। दिल्ली-शाहदरा की म्यूनिसिपल कमेटियों के क्षेत्रों और नरेला के अधिसूचित क्षेत्र में बिजली आपूर्ति का काम विभिन्न निजी एजेंसियां करती थी। देश की आजादी के साल यानी वर्ष 1947 में डीसीईएपी ने दिल्ली इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रैक्शन कंपनी लिमिटेड के नाम से एक निजी लिमिटेड कंपनी का अधिग्रहण किया।




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