मार्क्सवादी इतिहासकार इरफ़ान हबीब ने आउटलुक पत्रिका (फरवरी २०१८) में लिखे एक लेख में दावा किया है कि "this notion of the motherland came to us from the West along with the concept of nation" (हमारे पास मातृभूमि का विचार, राष्ट्र के सिद्धांत के साथ पश्चिम से आया).
जबकि अथर्ववेद में कहा गया है कि ‘माता भूमि’:, पुत्रो अहं पृथिव्या:। अर्थात भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूं।
यजुर्वेद में भी कहा गया है- नमो मात्रे पृथिव्ये, नमो मात्रे पृथिव्या:।
अर्थात माता पृथ्वी (मातृभूमि) को नमस्कार है, मातृभूमि को नमस्कार है। इतना ही नहीं वाल्मीकि रामायण के अनुसार, ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ (जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।)
श्रीसूक्त , यजुर्वेद में " राष्ट्र "के कल्याण की कामना है।
अब हबीब साहब ने वेद-रामायण का परायण नहीं किया है, ऐसा मानना तो उनकी विद्वता के अनुकूल-अनुरूप नहीं होगा!
फिर ऐसा लिखने का क्या अभिप्राय-अभिप्रेत?
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