Saturday, January 20, 2018

26 Jan is more than just Republic Day_सिर्फ तारीख भर नहीं है 26 जनवरी






देश ही नहीं दिल्ली के भी कम लोग इस बात से वाकिफ है कि आजादी के बाद 26 जनवरी, 1950 को हुई पहली गणतंत्र दिवस परेड, राजपथ पर न होकर इंडिया गेट के पास बने नेशनल स्टेडियम में हुई थी। तब इर्विन स्टेडियम के नाम से मशहूर इस इमारत की कोई चहारदीवारी न होने से, पुराना किला साफ दिखता था। फिर अगले चार साल तक कोई निश्चित स्थान तय न होने के कारण दिल्ली में गणतंत्र दिवस समारोह स्थल इर्विन स्टेडियम से लेकर किंग्सवे कैंप, लाल किला और रामलीला मैदान तक बदला। 


1955 में पहली बार गणतंत्र दिवस परेड राजपथ पर हुई। आठ किलोमीटर की दूरी तय करने वाली इस परेड की परंपरा आज तक कायम है जो कि अब रायसीना हिल से आरंभ होकर राजपथ, इंडिया गेट से होती हुई लालकिला पर समाप्त होती है।


भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 26 जनवरी की तिथि का अत्याधिक महत्व है। अगर इतिहास में झांके तो पता चलता है कि लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन पारित एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव में कहा गया था कि अंग्रेज सरकार ने 26 जनवरी, 1930 तक भारत को उपनिवेश का दर्जा (डोमीनियन स्टेटस) नहीं दिया, तो भारत को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर दिया जाएगा। इतना ही नहीं, इस अधिवेशन में पहली बार तिरंगा फहराया गया और हर साल 26 जनवरी को पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाने का भी फैसला हुआ। यही कारण है कि कांग्रेस, तब से लेकर 1947 में देश की आजादी तक, 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाती रही।


पहले भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने 26 जनवरी 1950 को भारत को एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया और फिर राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को देश के पहले राष्ट्रपति की शपथ दिलाई। उन्हें तोपों की सलामी दी गई, और आज भी यह परंपरा बनी हुई है। 

राष्ट्रपति भवन से डाॅ राजेंद्र प्रसाद वाया कनॉट प्लेस से होते हुए छह ऑस्ट्रेलियाई घोड़ों वाली एक बग्घी में सवार होकर इर्विन स्टेडियम पहुंचे। तब करीब 15 हजार नागरिक मुख्य गणतंत्र परेड देखने के लिए इर्विन स्टेडियम, जहां राष्ट्रपति ने तिरंगा फहराकर परेड की सलामी ली, में एकत्र हुए थे। तब परेड में भारतीय सशस्त्र सेना के तीनों अंगों के जवानों सहित सैन्य बैंड दलों ने भाग लिया था। उस समय इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो पहले विदेशी मुख्य अतिथि बने थे।


1951 से गणतंत्र दिवस समारोह के लिए राजपथ का स्थान नियत किया गया और उस साल, पहली बार चार वीरों को उनके अदम्य साहस और शौर्य के लिए सर्वोच्च अलंकरण परमवीर चक्र दिए।


1952 से बीटिंग रिट्रीट का कार्यक्रम की शुरूआत हुई और तब एक समारोह रीगल सिनेमा के सामने मैदान में और दूसरा लालकिले में हुआ था। सेना बैंड ने पहली बार महात्मा गांधी के पसंदीदा गीत "अबाइड विद मी" की धुन बजाई थी, जो कि अब हर साल बजती है।


1953 में गणतंत्र दिवस परेड में पहली बार लोक नृत्य और आतिशबाजी हुई थी। इतना ही नहीं, पूर्वोत्तर राज्यों-त्रिपुरा, असम और अरुणाचल प्रदेश के वनवासी समाज के बंधुओं ने पहली बार गणतंत्र दिवस समारोह में भागीदारी की। जबकि 1955 में दिल्ली के लाल किले के दीवान-ए-आम में गणतंत्र दिवस पर पहली बार मुशायरा हुआ। 

1956 में पहली बार पांच सजे-धजे हाथी गणतंत्र दिवस परेड में शामिल किए गए। इसी तरह, 1958 से दिल्ली की सरकारी इमारतों को बिजली से रोशन किया जाने लगा तो 1959 में पहली बार गणतंत्र दिवस समारोह में दर्शकों पर भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टरों से फूल बरसाए गए। वही 1960 में परेड में पहली बार बहादुर बच्चों को हाथी पर बैठाकर लाया गया। 


1962 में इस परेड और बीटींग रिट्रीट समारोह के लिए पहली बार टिकट के रूप में शुल्क लगाया गया तो अगले साल देश पर चीन के आक्रमण के कारण परेड का आकार छोटा कर दिया गया, जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने पहली बार गणतंत्र दिवस परेड में भाग लिया। 

1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पहली बार इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति पर सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करने गई और तब से यह परंपरा आज तक जारी है।

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