वर्ष 1947 में देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने आज ही के दिन प्रशासनिक तंत्र के नाम का भारतीयकरण किया था।
1 अक्तूबर, 1947 को नई दिल्ली से एक प्रेस नोट जारी करके गृह मंत्रालय ने अंग्रेजों की इंडियन सिविल सर्विस और इंडियन पुलिस को भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आइपीएस) के रूप में नामित करने की सार्वजनिक घोषणा की थी।
इससे पूर्व, आइसीएस और आइपी के स्थान पर परिवर्तन करके अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवा और अखिल भारतीय पुलिस सेवा का गठन किया था।
तब महजबी आधार पर राष्ट्र-विभाजन ने राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह से परिवर्तित कर दिया था। वर्ष 1946 में प्रांत-प्रमुखों की बैठक में पारित प्रस्ताव ही एक प्रकार से भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा के लिए घोषणापत्र बन गया।
भारतीय प्रशासनिक सेवा में भर्ती के लिए पहली प्रतियोगी परीक्षा जुलाई 1947 में आयोजित हुई। इससे पूर्व इंडियन सिविल सर्विस के लिए चयनित लेकिन वास्तव में उस सेवा में नियुक्त नहीं किए गए व्यक्तियों को भी भारतीय प्रशासनिक सेवा में सम्मिलित कर दिया गया। वर्ष 1948 के मध्य तक, द्वितीय विश्व युद्व में उनकी सेवाओं के के आधार पर चुने गए अधिकारियों को भी भारतीय प्रशासनिक सेवा में नियुक्त किया गया।
नव-स्वतंत्र देश के इस महत्वपूर्ण तंत्र के रूपातंरण की प्रक्रिया केन्द्रीय गृहमंत्री वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में हुई। तत्कालीन उप प्रधानमंत्री सरदार पटेल ने 18 जनवरी 1948 को बम्बई में हुई एक सभा में इससे संबंधित अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि कितने ही सालों से अंग्रेजों ने हमारी हुकूमत चलाने के लिए एक तन्त्र बनाया था, जिसको 'लोहे की चौखटी' यानी 'स्टील फ्रेम' कहते हैं। यह वज्र का बना हुआ एक फ्रेम था, जिसको सिविल सर्विस कहते हैं। यह कोई पन्द्रह सौ आदमियों की एक सर्विस थी। यह पन्द्रह सौ अफसर सारे हिन्दुस्तान का राज्य चलाते थे। बहुत साल से और बड़ी मजबूती से यह राज्य चला रहे थे। जब यह फैसला हुआ, तब हमारे पास पन्द्रह सौ अफसर थे। उसमें 25 फीसदी अंग्रेज थे। वे सभी तो भागकर चले गए। तो वह जो फ्रेम था, आधा तो टूट गया। अब जो बाकी रहा, उसमें से जितने मुसलमान थे, वह सब भी चले गए। उनमें से चन्द लोग यहां रहे, बाकी सब चले गए। नतीजा यह हुआ कि आज हमारे पास पुरानी सर्विस के लोगों का सिर्फ चौथा हिस्सा बच रहा है, और इसी 25 फीसदी सर्विस से हम हिन्दुस्तान का सारा कारोबार चला रहे हैं। नई सर्विस तो हमारे पास कोई है नहीं। वह तो हमें बनानी पड़ेगी। इस तरह से तो लोग मिलते नहीं, और जिसके पास अनुभव नहीं है, जिसने कभी काम नहीं किया, वैसे आदमियों को ले लेने से तो काम चलता नहीं है। इस पर भी पिछले चार पांच महीनों में हमने इतना काम कर लिया।
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