Saturday, February 25, 2012

Praveena Shakir

"खुली आंखों में सपना"

पूरा दुःख और आधा चाँद हिज्र की शब और ऐसा चाँद
किस मकतल से गुजरा होगा ऐसा सहमा सहमा चाँद
यादों की आबाद गली में घूम रहा है तनहा चाँद
मेरे मुंह हो किस हैरत से देख रहा है भोला चाँद
इतने घने बादल के पीछे कितना तनहा होगा चाँद
इतने रोशन चेहरे पर भी सूरज का है साया चाँद
जब पानी में चेहरा देखा तूने किसको सोचा चाँद
बरगद की एक शाख हटाकर जाने किसको झाँका चाँद
रात के शाने पर सर रखे देख रहा है सपना चाँद
सहरा सहरा भटक रहा है अपने इश्क में सच्चा चाँद
रात के शायद एक बजे हैं सोता होगा मेरा चाँद
परवीन शाकिर की "खुली आंखों में सपना" ( किताबघर)
मेरी तलब था एक शख्स, वो जो नहीं मिला तो फिर हाथ दुआ से यूं गिरा, भूल गया सवाल भी ।

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