असदुल्लहा खां गालिब
बल्लीमारां के मोहल्लों की वो पेचीदा दलीलों की सी गलियां
सामने टाल के नुक्कड पे, बटेरों के कसीदे
गुडगुडाती हुई पान की पीकों में वह दाद, वह वाह-वा
चंद दरवाजों पे लटके हुए बोसीदा से कुछ टाट के परदे
एक बकरी के मिमियाने की आवाज
और धुंधलायी हुई शाम के बेनूर अंधेरे
ऐसे दीवारों से मुंह जोडकर चलते हैं यहाँ
चूडीवालान के कटरे की बडी बी जैसे
अपनी बुझती हुई आंखों से दरवाजे टटोले
इसी बेनूर अंधेरी-सी गली कासिम से
एक तरतीब चरागों की शुरू होती है
एक कुरान-ए-सुखन का सफा खुलता है
असदुल्लाह खां गालिब का पता मिलता है...
-गुलजार
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