(तस्वीर: दिल्ली में रहीम का मकबरा)
अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।
सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥
छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात।
कह ‘रहीम’ हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
जे गरीब सों हित करै, धनि रहीम वे लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥
जो बड़ेन को लघु कहे, नहिं रहीम घटि जांहि।
गिरिधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नांहि॥
अनुचित वचन न मानिए, जदपि गुराइस गाढ़ि।
है ‘रहीम’ रघुनाथ तें, सुजस भरत को बाढ़ि।।
सब कोऊ सबसों करें,राम जुहार सलाम।
हित अनहित तब जानिये,जा दिन अटके काम।।
कौन बड़ाई जलधि मिलि ,गंग नाम भो धीम।
केहि की प्रभुता नहि घटी पर-घर गए रहीम।।
राम नाम जान्यो नहीं, भइ पूजा में हानि।
कहि रहीम क्यों मानिहै, जम के किंकर कानि।।
राम नाम जान्यो नहीं, जान्यो सदा उपाधि।
कहि रहीम तिहिं आपुनो, जनम गंवायो वादि।।
जो रहीम करिबो हुतो, ब्रज को इहै हवाल।
तौ काहे कर धरुयो, गोवर्धन गोपाल।।
जैसी तुम हमसौं करी, करी करो जो तीर।
बाढे दिन के मीत हौ, गाढे दिन रघुवीर।।
बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥
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