बिस्तर पर सलवटें
वैसे ही हैं
जैसी तुम छोड़ गयी थी
रसोई के बर्तन भी
तुम्हारे बिना चुपचाप हैं
सब उदास हैं
भगवान के मंदिर में
दिया तो जलता है
पर लौ खामोश है
घर तो कामवाली
साफ़ कर जाती है
कमरों के कोने इंतजार में हैं
पड़ोस वाले भी
पूछ लेते हैं
तुमको कब आना है
बिस्तर, बर्तन, दिया, कमरे
आस-पास वाले
कितना तुम्हें याद करते हैं
इन सबके मन-के धागे में पिरोकर
फेरता हूँ माला तुम्हारी
अबोल-अकेले-अपने से
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