Wednesday, July 29, 2015

कुछ शब्द अनबूझे_some words without meaning





चित्र: सिन्धु सभ्यता लिपि का चित्र 



हर शब्द का एक अर्थ है, माना फिर भी वह व्यर्थ है.


खारेपन से गीली थीं आंखें
दिल की रुकी हुई थी सांसे

समय की सेज पर थे सिर्फ कांटे
वक्त ने एक जिस्म-दो जान थे बांटे

अकेलेपन को तेरे साथ ने था किया था दूर
तेरे जाने के बाद पता लगा कितना था मैं मजबूर

Sunday, July 19, 2015

फिराक गोरखपुरी







तुझे मंजिलें भी हैं रहगुजर
मुझे रहगुजर भी मंजिलें।
यहीं फर्क है मेरे हमसफर
वह तेरा चलन, यह मेरा चलन।
-फिराक गोरखपुरी (बज्मे जिंदगी)

Saturday, July 18, 2015

kumbh nirmal verma_कुंभ-निर्मल वर्मा




सबके हाथों में गीली धोतियां, तौलिए हैं, गगरियों और लोटों में गंगाजल भरा है। मैं इन्हें फिर कभी नहीं देखूंगा। कुछ दिनों में वे सब हिंदुस्तान के सुदूर कोनों में खो जाएंगे, लेकिन एक दिन हम फिर मिलेंगे, मृत्यु की घड़ी में आज का गंगाजल, उसकी कुछ बूंदें, उनके चेहरों पर छिड़की जाएगी! ऊन के गोले की तरह खुलते सूरज से लेकर मेले में फहरती पताकाओं, शिविरों, बुझी आवाजो में गाते कीर्तनियों, ऋगवेद की ऋचाओं के शुद्ध उच्चारण में पगी सुर लहरियों, नंगे निरंजनी साधुओं, खुली धूप में पसरे हिप्पियों, युद्ध की छोटी-मोटी छावनियों से तने तंबुओं के इस वातावरण से बावस्ता निर्मल वर्मा ने यहां अपने भीतर के निर्माल्य का खुला परिचय दिया है। 
मैं वहीं बैठ जाना चाहता था, भीगी रेत पर। असंख्य पदचिह्नों के बीच अपनी भाग्यरेखा को बांधता हुआ। पर यह असंभव था। मेरे आगे-पीछे अंतहीन यात्रियों की कतार थी। शताब्दियों से चलती हुई, थकी, उद्भ्रांत, मलिन, फिर भी सतत प्रवाहमान। पता नहीं, वे कहां जा रहे हैं, किस दिशा में, किस दिशा को खोज रहे हैं, एक शती से दूसरी शती की सीढि़यां चढ़ते हुए? कहां है वह कुंभ घट जिसे देवताओं ने यहीं कहीं बालू के भीतर दबा कर रखा था? न जाने कैसा स्वाद होगा उस सत्य का, अमृत की कुछ तलछटी बूंदों का, जिसकी तलाश में यह लंबी यातना भरी धूलधूसरित यात्रा शुरु हुई हैं। हजारों वर्षो की लॉन्ग मार्च, तीर्थ अभियान, सूखे कंठ की अपार तृष्णा, जिसे इतिहासकार भारतीय संस्कृति कहते हैं!

Saturday, July 11, 2015

वन की प्राकृतिक वनस्पति और हाथी_elephant and forest greenery



जंगलों में पेड़-पौधों की वनस्पति के पनपने में हाथियों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि हाथी जानवरों की दूसरी प्रजातियों के विपरीत बीज को बिना तोड़े पूरी तरह से निगल जाते हैं.
जंगल में पेड़ों की लगभग 30 प्रजातियों दोबारा उगने के लिए पूरी तरह से हाथियों पर निर्भर हैं।

Friday, July 10, 2015

गज़ल_ghazal_तन्हाई




मिला नहीं था जब तक कोई, कितना सुकून से था
          अकेला बेशक था पर परेशान कतई नहीं था                      
खुद से ही करता था कई बातें, तन्हाई में
कोई दोस्त जो नहीं था, मेरी जिंदगी में

रब ने मुझे अकेला ही रखा था
फिर भी कोई गम तो नहीं था

मिलकर तुझसे ऐसा लगा, जिंदगी में
बहार आ गयी हो, मानो चमन में

बिछुड़ने की बात तो कभी ज़ेहन में नहीं आई
पर अलग होकर, अब कितनी काटती है तन्हाई

पता लगा है कि बसा ली है, उसने दुनिया जुदा होकर
हम तो आसरे में थे, सो आँसू भी नहीं निकले रोकर 

अब जहां हो आबाद रहो, जिंदगी में खुश होकर
हमने तो कभी हिसाब नहीं रखा, अलग होकर 








Saturday, July 4, 2015

शब्द अपने, भाव पराए




"राष्ट्रवाद केवल मात्र एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है; राष्ट्रवाद ईश्वर प्रदत्त धर्म है; राष्ट्रवाद एक पंथ है, जिसमें तुम जीना होगा। क्या तुमने इस बात को अनुभूत किया है कि तुम केवल ईश्वर के उपकरण हो और तुम्हारे शरीर भी तुम्हारे स्वयं के नहीं हैं? अगर तुमने इस बात को अनुभूत किया है, तभी तुम अकेले इस महान राष्ट्र को बनाए रखने में सक्षम होंगे। "

-महर्षि अरविन्द घोष 
अगर मुझे विस्मृत ही करना होता तो यह ऐसे ही होता मानो ऐसा कुछ कभी हुआ ही नहीं था। संसार से हमेशा के लिए स्मृतियों का लोप हो जाता। लेकिन क्या वास्तव में यह सच है? शायद स्मृतियां कहीं होती हैं, तुम्हारे अपने स्वयं के अस्तित्व के परे।
-मीको कावाकामी: अबाउट हर एंड द मेमोरिज दैट बिलाॅग टू हर-न्यू राइटिंग (अनुवाद हितोमो योशियो)

First Indian Bicycle Lock_Godrej_1962_याद आया स्वदेशी साइकिल लाॅक_नलिन चौहान

कोविद-19 ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर पड़ा है। इस महामारी ने आवागमन के बुनियादी ढांचे को लेकर भी नए सिरे ...