पादरी नोतरोत ने एक दिन बिरसा मुंडा की उपस्थिति में कहा : ये मुंडा सरदार लोग बेइमान होते हैं. (धर्म परिवर्तन में बाधक होने के कारण) तुरंत बिरसा मुंडा ने इस पर प्रतिवाद किया-मुंडा लोग तो बेइमान क्या होता है उसे जानते भी नहीं और आज हमें बेइमान कह रहे हैं. जरा बताइए तो हम मुंडाओं ने किसकी धरती लूटी, किसका धन लूटा, किसका धर्म लूटा, किसकी धाक (राज्य) लूटी? ये सब तो आप लोग लूट रहे हैं. हमारा आदि धरम तक आप ने लूट लिया और हमें बेइमान कहते हैं.
पादरी नोतरोत ने कहा क्या है तुम्हारा धर्म, कौन है तुम्हारा मसीहा, कौन है तुम्हारा पैगंबर, कौन है तुम्हारा अवतारी? बिरसा ने कहा मैं हूं बीर ईसा (बिरसा) मैं हूं, अपने धर्म का मसीहा. इस विरोध के बाद बिरसा पढ़ाई और मिशन दोनों का त्याग कर चाईबासा से केन्दार गांव के कपड़ा बुनकर आनंद पांड के यहां आया जो रामायण, महाभारत और जड़ी-बूटी का अच्छा जानकार था. वहां आनंद पांड के पास क्यों आया इसकी एक मौखिक इतिहास है.
एक बार चाईबासा बाजार में बिरसा मुंडा अपने पिता सुगना उर्फ मसीह दास आनंद पांड से कपड़े खरीद रहे थे, तभी एक विदेशी पादरी आ कर आनंद पांड से पूछा चाईबासा का गिरजाघर कहां पर है? उस विचित्र रंगरूप वेश भूषा के पादरी से आनंद पांड ने पूछा आप कौन है? उसने कहा मैं पादरी हूं. आनंद पांड ने पूछा ये पादरी क्या होता है? पादरी ने कहा-पादरी स्वर्ग का रास्ता बताता है.
आनंद पांड को विचित्र व्यक्ति लगा वह कहा-तुम स्वर्ग का रास्ता जानते हो और गिरजा घर का रास्ता नहीं जानते कैसे पादरी हो? ये घटना पादरी नोतरोत के मुंडा सरदार बेइमान होते हैं की घटना के कुछ ही पहले की घटना थी. 21 वर्ष की उम्र में बिरसा उर्फ दाउद हमेशा के लिए ईसाई धर्म त्याग कर वैष्णव भक्त बुन कर आनंद पांड के पास आया और अपना दूसरा गुरु बनाया. बिरसा को पहले गुरु थे इलियास जयपाल नाग.
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