इंटेलेक्चुअल भैया, राखी का दिन बीत गया। तुम्हें राखी बंधवाने की फुरसत न मिली। तुम चले गए, तब से इस पूनो की बाट जोह रही थी, तुम राखी बंधवाने उसी भीने भाव से आओगे। पर तुम नहीं आए।
-विद्यानिवास मिश्र, बदलते सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में रक्षाबंधन पर्व का निरूपण करते हुए
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