Saturday, February 24, 2018
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र और आजादी का आंदोलन_Delhi University and Freedom Movement
देश की आजादी से पहले अंग्रेजों के शासनकाल में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों और अध्यापकों ने स्वतंत्रता संघर्ष में भाग लिया। सेंट स्टीफंस और हिंदू काॅलेज के छात्र स्वदेशी आंदोलन (1905-1911) में पूरी तरह सक्रिय थे। उन्होंने गरम दल के नेता अरविंद घोष के बचाव के लिए धन एकत्र किया। हिंदू काॅलेज के धीरेन्द्रनाथ चौधरी के घर हुई एक बैठक में अमीर चंद, प्रोफेसर रघुवीर दयाल, डाक्टर बी के मित्रा, सैयद हैदर रजा और रामचद पेशावरी ने हिस्सा लिया। बंगाल के मशहूर क्रांतिकारी खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी को अंग्रेज सरकार के फांसी की सजा देने के बाद सेंट स्टीफंस काॅलेज का अध्ययन कक्ष क्रांतिकारी वार्ता और राजनीतिक विचार विमर्श का केंद्र बन गया।
वर्ष 1911 में अंग्रेज़ भारत की राजधानी को कलकत्ता से स्थानांतरित करके दिल्ली लाने की घोषणा हुई। 23 दिसंबर 1912 को जब वाइसराॅय, जिसे नई राजधानी का उद्घाटन करना था, और लेडी वाइसराॅय जुलूस में चांदनी चौक से गुजर रहे थे तब उन पर बम फेंका गया। इस बम के भयानक विस्फोट से हाथी के हौदे पर लेडी हार्डिंग के पीछे खड़े सेवक के परखच्चे उड़ गए। इसमें वाइसराॅय हार्डिंग भी घायल हुआ।
इस हमले के जिम्मेदार अवध बिहारी और अमीर चंद दोनों ही सेंट स्टीफंस काॅलेज के पूर्व छात्र थे। वे दोनों चांदनी चौक के एक स्कूल में पढ़ाने के साथ रेवोलुशनरी पार्टी में भी सक्रिय थे। अमीर चंद और अवध बिहारी को फरवरी 1914 में लाॅर्ड हार्डिंग को मारने का षडयंत्र रचने के आरोप में गिरफ्तार करके मई 1915 में फांसी पर चढ़ा दिया गया।
सेंट स्टीफंस काॅलेज के होनहार छात्र लाला हरदयाल इंटरमीडिएट परीक्षा में पहले स्थान पर आए थे। लाहौर से अंग्रेजी में एम.ए. करने के बाद वे कुछ समय के लिए सेंट स्टीफंस में अध्यापक रहे। कुछ समय बाद वापिस लाहौर लौटकर उन्होंने छात्रों को क्रांतिकारी बनाने के लिए एक आश्रम स्थापित किया। वर्ष 1908 में उन्होंने अमेरिका जाकर गदर पार्टी की स्थापना की।
वर्ष 1917 में इंद्रप्रस्थ स्कूल की हेड मिस्ट्रेस सुश्री जी मेइनर की राजनीतिक गतिविधियों के कारण स्कूल की मान्यता रद्द कर दी गई। जबकि वे बाद में इंद्रप्रस्थ स्कूल की प्रिंसिपल भी बनी।
असहयोग आंदोलन ने अनेक छात्रों-शिक्षकों को आकर्षित किया। नवंबर 1920 में महात्मा गांधी ने औपचारिक रूप से दिल्ली में राष्ट्रीय विद्यालय खोला, जिसकी स्थापना आसफ अली ने की। गांधी सेंट स्टीफंस कालेज गए, जहां उन्होंने सेंट स्टीफंस, हिंदू और रामजस काॅलेजों के छात्रों की एक संयुक्त सभा को संबोधित किया। इसी का नतीजा था कि रामजस काॅलेज के प्रिंसीपल ए. टी. गिडवाणी ने खुलेआम असहयोग आंदोलन का समर्थन करते हुए त्यागपत्र दे दिया।
गांधी के व्यापक स्तर पर नागरिक असहयोग आंदोलन शुरू करने के साथ 6 अप्रैल 1930 को नमक कानून तोड़ा। 3 अप्रैल को दिल्ली में नागरिक असहयोग के लिए एक सत्याग्रह बुलेटिन निकाला गया, जिसमें 6 अप्रैल की कार्यक्रम की योजना छपी थी। उस दिन जनता राष्ट्र ध्वज को फहराने के समारोह को देखने के लिए क्वींस गाॅर्डन में जमा हुई। 9 अप्रैल को आसफ अली, चमनलाल, देशबंधु गुप्ता, श्रीमती सत्यवती सहित दिल्ली के प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके विरोध स्वरूप दिल्ली की जनता ने अगले दिन हड़ताल की और छात्रों ने कक्षाओं का बहिष्कार किया। रामजस काॅलेज में पूर्ण हड़ताल रही। 14 अप्रैल को हनवंत सहाय ने हिंदू काॅलेज के छात्रों की उपस्थिति में राष्ट्रीय ध्वज फहराया और विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई।
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