Saturday, February 3, 2018

Surajkund_अतीत और आधुनिकता के बीच सूरजकुंड




दिल्ली से सटे हरियाणा में अरावली पर्वतमाला में पहाड़ियों के बीच अनेक जलाशय हैं, जिनमें सूरजकुंड प्रमुख है। हरियाणा के बल्लभगढ़ (अब बलरामगढ़, जिला फरीदाबाद) तहसील की सीमा राजधानी दिल्ली से लगी हुई है। अंग्रेजी राज में यह क्षेत्र दिल्ली का ही एक हिस्सा था। 


“इंपीरियल गैजेटियर ऑफ इंडिया” खंड-एक के अनुसार, इस जिले का इतिहास, दिल्ली नगर का इतिहास है, जिसकी अधीनस्थता में वह अनंत काल से विद्यमान है। जिला गुड़गांव में तुगलकाबाद से लगभग तीन किलोमीटर दक्षिण पूर्व में दिल्ली के इतिहास से अभिन्न रूप से जुड़ा एक ऐसा ही जलाशय सूरजकुंड है। 


"दिल्ली और उसका अंचल" पुस्तक के अनुसार, ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस जलाशय को तोमर वंश के राजा सूरजपाल ने, जिसका अस्तित्व भाट परंपरा पर आधारित है, दसवीं शताब्दी में निर्मित करवाया था।

हरियाणा के फरीदाबाद जिले में स्थित सूरजकुंड की प्राचीनता का बोध इस तथ्य से ही होता है कि उसी के दक्षिण में एक किलोमीटर आगे अड़ंगपुर या अनंगपुर गांव के समीप एक बांध है जिसके बारे में यह माना जाता है कि तोमर वंष के अंनगपाल ने इसे बनवाया था। बरसाती पानी के संरक्षण और इस्तेमाल के लिए बनाया गया यह बांध आज भी देखा जा सकता है। यह व्यवस्था सूरजकुंड बनाए जाने से करीब 300 साल पहले की गई मानी जाती है।

सूरजकुंड का निर्माण पहाड़ियों से आने वाले वर्षा के पानी को एकत्र करने के लिए एक अदभुत गोलाकार रूपरेखा के आधार पर सीढ़ीदार पत्थर के बांध के रूप में है। 


यह विश्वास किया जाता है कि इसके पश्चिम में सूर्य का एक मन्दिर था। अब इस मंदिर के अवशेष ही रह गए हैं। चट्टानों की दरारों से रिसने वाले ताजे पानी का तालाब, जिसे सिद्ध-कुंड कहते हैं, सूरज कुंड के दक्षिण में लगभग 600 मीटर पर स्थित है और धार्मिक पर्वों पर यहां बहुत बड़ी संख्या में तीर्थ यात्री आते हैं। 


सूरजकुंड और दिल्ली में बनाई गई बावड़ियों में एक ही समानता कही जा सकती है और वह है पानी तक पहुंचने के लिए बनी सीढ़ियां। उस समय कुंओं के अलावा तालाब और बांध बनाकर बरसाती पानी को रोके जाने का तरीका अपनाया जाता था। सूरजकुंड को अपने दौर में वर्षा जल संचयन का सबसे अनोखा उदाहरण कह सकते हैं। 


"कुंड" संस्कृत भाषा का शब्द है। कुंड का मतलब है तालाब या गड्ढा, जिसे बनाया गया हो। प्राकृतिक रूप से नीची जगह पर पानी भर जाने के लिए तालाब तड़ाग आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है। कुंड हमेशा मानव निर्मित ही हो सकता है। मंदिरों और गुरूद्वारों के साथ कुंड और तालाब बनाए जाने की परंपरा रही है। इस कुंड से पानी के इस्तेमाल के लिए पत्थर की सीढ़ियां बनी हुई थीं। कुंड में पानी की स्थिति के अनुसार इन सीढ़ियों से होकर पानी तक आया-जाया जा सकता है। जानवरों को पिलाने के लिए एक अलग रास्ता बनाया गया था।


फीरोजशाह तुगलक (1351-88) ने, जिसने सिंचाई संबंधी निर्माण कार्यों में गहरी अभिरूचि दिखाई है, इसकी (सूरजकुंड) सीढ़ियों पर चूना-कंकरीट बिछवाकर इसकी सीढ़ियों और चबूतरों की मरम्मत करवाई थी। बाद में एक किला बन्द अहाता जिसे अभी तक गढ़ी कहा जाता है इस मन्दिर के परम्परागत स्थल के आसपास पश्चिमी किनारे पर निर्मित किया गया।

वैसे देखे तो सूरजकुंड की अब तो केवल एक मेला और मनोरंजन स्थल के रूप में ही पहचान रह गई है।

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