भील राजवंशों को 'कबीला' कहना न्यायसंगत नहीं!
देश की आजादी के बाद भले ही "भील" अनुसूचित जनजाति के वर्ग में वर्गीकृत कर दिए गए हो पर देश में भील राजवंशों का एक गौरवमयी इतिहास रहा है। आज भले ही हम अंग्रेजों के विभेदकारी इतिहास दर्शन और व्याख्या के प्रभाव में भीलों को एक कबीला बताये पर यह ऐतिहासिक और तथ्यात्मक रूप से भ्रामक ही नहीं बल्कि गलत है।
प्राचीन राजपूताने में विशेष रूप से दक्षिणी राजस्थान और हाड़ौती संभाग में भील शासकों के कई राज्य थे। एक ऐतिहासिक मान्यता है कि "भील" शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ शब्द ‘बील’ से हुई है जिसका अर्थ है धनुष। धनुष-बाण भीलों का मुख्य शस्त्र था, अतएव ये लोग भील कहलाने लगे। जबकि दूसरी मान्यता के अनुसार भारत के प्राचीनतम जनसमूहों में से एक भीलों की गणना पुरातन काल में राजवंशों में की जाती थी, जो विहिल नाम प्रसिद्ध था। इस वंश का शासन पहाड़ी इलाकों में था। यह बात इससे भी साबित होती है कि यह समुदाय आज भी मुख्यतः पहाड़ी इलाकों में ही रहता है।
एक प्रसिद्ध कहावत भी है कि दुनिया में केवल साढ़े तीन राजा ही प्रसिद्ध है
इन्द्र राजा, राजा और भील राजा तथा आधे में बींद (दूल्हे-राजा)।
मेवाड़ राज्य की स्थापना के बाद से ही महाराणाओं को भीलों का निरंतर सहयोग मिलता रहा। महाराणा प्रताप भीलों के सहयोग से वर्षों तक मुगल सल्तनत से मोर्चा लेते रहे थे। यही कारण है कि भीलों के निस्वार्थ सहयोग और निरंतर मेवाड़ राज्य की सेवाओं के सम्मान-स्वरूप मेवाड़ राज-चिन्ह में एक ओर राजपूत और दूसरी ओर भील था। मेवाड़ के महाराणा भी भीलों के हाथ के अंगूठे के रक्त से अपना राजतिलक करवाते थे।
भील राजवंश
बांसवाड़ा राज्य पर पहले बांसिया भील का अधिपत्य था। डूंगरपुर के महारावल उदयसिंह के द्वितीय पुत्र जगमल ने इस राज्य को जीता और अपने अधिकार में लिया।
कुशलगढ़ पर कटारा गोत्रीय कुशला भील का अधिकार था। अजमेर-मेरवाड़ा क्षेत्र में भिनाय ठिकाना भी पहले मांदलियां भीलों के अधिकार में था। जिनका बनाया किला आज भी मौजूद है और गढ़ मांदलिया के नाम से प्रसिद्ध है।
ईडर गुजरात में सोढ़ा गोत्र के सावलिया भील का राज्य था, जिसे हराकर राठौड़ों ने वहां अपना राज्य स्थापित किया, मेवाड़ में स्थित जवास जगरगढ़ पर भी भीलों का शासन था। जिसे चॉपनेर के खींचा राजाओं ने जीता जगरगढ़ को जोगरराज भील ने बसया था। मेवाड़ और मलवे के बीच का भू-भाग आमद कहलाता है। इस क्षेत्र के दो बड़े कस्बो रामपुरा और भानपुरा पर रामा और भाना नामक भीलों का अधिकार था, जिन्हें परास्त करके सिसोदिया शाखा के वंशधर चंद्रावतों ने अपना अधिकार जमाया।
कोटा पर शताब्दियों तक भीलों का शासन रहा। कोटा के पास आसलपुर की ध्वस्त नगरी तथा अकेलगढ़ का पुराना किला भीलों के ही थे। वहां के भील सरदार की उपाधि कोटिया थी। सन 1274 में बूंदी के तत्कालीन शासक समर सिंह के पुत्र जेतसिंह ने कोटिया भील को युद्ध में मार डाला और कोटा में हाड़ा वंश के शासन की जींव डाली। पुरानी परंपरा के अनुसार जेतसिंह ने कोटिया भील के नाम पर अपनी राजधानी का नाम कोटा रखा।
झालावाड़ जिले के मनोहर थाना के आसपास के इलाके पर संवत् 1675 तक भील राजा चक्रसेन का राज्य था। कोटा के महाराव भीम सिंह ने राजा चक्रसेन को हराकर उसके राज्य पर अपना अधिकार कर लिया।
1 comment:
Ham bhilon ka itihas chhupa diya he inhone lekin ham fir ek honge
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