Saturday, July 28, 2018

Delhi with changing times_समय के साथ बदलती दिल्ली





प्रस्तर युग से ही दिल्ली मानवीय बसावट का एक केंद्र थी। मनुष्यों के वास करने योग्य एक स्थान के रूप में दिल्ली को कुछ प्राकृतिक लाभ थे खासकर अपनी भौगोलिक अवस्थिति के कारण। इन विशेषताओं में प्रमुख थीं, एक बारहमासी नदी, पत्थरों के औजार को बनाने के लिए पहाड़ियां, जो कि युद्ध के समय में एक प्रतिरोध का काम करती थी, कृषि से अलग कार्यों में लगी एक बड़ी शहरी आबादी को भोजन उपलब्ध करवाने के लिए भीतरी इलाके में एक उपजाऊ कृषि क्षेत्र। दिल्ली के क्षेत्रीय महत्व की व्यापकता का ऐतिहासिक कारण रहा है। ऐसा उत्तरापथ के महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग, जो कि गंगा के मैदान से गुजरते हुए रेशमी मार्ग तक जुड़ा हुआ था, पर उसकी निर्णायक भौगोलिक स्थिति के कारण था।


बीती शताब्दियों में यमुना नदी और रिज में बने त्रिभुज क्षेत्र में विभिन्न बसावटें पनपी। यहां मिले पुरातात्त्विक अवशेषों, तीसरी-चौथी ईसा पूर्व से लेकर मुगल काल तक यहां लगातार रही सांस्कृतिक परतों की उपस्थिति का खुलासा करते हैं। यहां मिले मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े तो लगभग 1000-500 ईसा पूर्व तक पुराने हैं। दिल्ली पर सिलसिलेवार ढंग से विजय पताका लहराने वाले राजवंशों के शासकों ने दिल्ली के इस त्रिकोणीय क्षेत्र में अलग-अलग स्थानों को विकसित किया। जो कि उनकी बसावटों की अलग-अलग दीवारों, किलों और उससे जुड़े निर्माणों से प्रकट होता है। यहां समय के साथ बने विभिन्न शहर इसके गवाह है।

तेरहवीं शताब्दी के आरंभ में, दिल्ली के विचार को नागरिकों और कवियों ने अंतर में आत्मसात कर लिया था। वे इसे “हजरत-ए-देहली” (सम्मानित दिल्ली) या “शहर” के नाम से पुकारते थे। तोमर वंश ने 1060 ईस्वी में दिल्ली के पहले शहर लाल कोट की स्थापना की थी। जबकि चौहान शासकों ने 12 वीं शताब्दी के मध्य में तोमर को अपदस्थ करके लाल कोट का विस्तार करते हुए किला राय पिथौरा (अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के नाम पर) बनाया। उनके बाद 1192 ईस्वी में दिल्ली पर पहली बार मध्य एशिया के विदेशी तुर्कों ने कब्जा जमाते हुए दिल्ली में मुस्लिम शासन की नींव रखी। दिल्ली सल्तनत के समय में दिल्ली एक साम्राज्य की राजधानी बनी। खिलजी वंश के दौरान दिल्ली के दूसरे शहर सिरी की स्थापना हुई। खिलजी वंश का अंत होने के बाद पहले तुगलक सुल्तान गियासुद्दीन तुगलक (1320-24) ने दिल्ली के तीसरे शहर तुगलकाबाद का निर्माण किया।

मुहम्मद बिन तुगलक ने 1326-27 ईस्वी में दिल्ली के  चौथे शहर जहांपनाह को बनाने के लिए लाल कोट और सिरी के पुराने शहरों को दो दीवारों से जोड़ने का काम किया। फिरोज शाह तुगलक (1351-1388) ने यमुना किनारे दिल्ली के पांचवे शहर फिरोजाबाद का निर्माण किया। दिल्ली पर शासन करने वाले अनेक राजवंशों के विपरीत सैय्यद वंश (15 वीं शताब्दी) और लोदी राजवंश (15 वीं शताब्दी के मध्य) ने अलग से किसी कोई शहर विशेष को नहीं बसाया।


फिर दिल्ली समय-समय पर मुगल शासन की राजधानी (16 वीं शताब्दी के मध्य से लेकर 17 वीं शताब्दी के कालखंड में) रही। 1533 ईस्वी में मुगल बादशाह हुमायूं ने दिल्ली के छठें शहर दीनानाह का निर्माण किया। 1639 ईस्वी में, शाहजहां ने मुगल साम्राज्य की राजधानी को आगरा (अकबर की फतेहपुर सीकरी) से वापस दिल्ली को बना दिया। इस तरह, परकोटे वाला शाहजहांनाबाद दिल्ली का सातवां शहर बना। 


इन विभिन्न शहरों के अवशेषों को आंशिक रूप से आज भी देखा जा सकता है। इस क्षेत्र की स्थलाकृति और पारिस्थितिकी के अनुरूप बने ये शहर अपने नएपन में भी पिछली बसावटों के सहअस्तित्व के साथ समृद्ध हुए थे। दुनिया में शायद ही कहीं मानवीय सभ्यता और उसकी बसावट के विकास का ऐसा नैरन्तर्य देखने को मिलता है। इस तरह, शहर के आकार की कई संगतियां, अनेक रंगतों वाली अभिव्यक्तियां और उसके परिणामस्वरूप एक विलक्षण घनी आबादी वाली बसावट के रूप में सामने आई, भारतीयों की दिल्ली।


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