Wednesday, July 4, 2018

British India Census_अंग्रेजी राज की जनगणना का सच

एम. ए. शेरिंग




अंग्रेजी राज की जनगणना का सच

1872 में "हिंदू कास्ट्स एंड टाइब्स" नामक पुस्तक लिखने वाले एम. ए. शेरिंग ने ने 1880 में "कलकत्ता रिव्यू" में जाति के विभाजनकारी पक्ष को उभारते हुए लिखा, अन्य देशों में पाए जाने वाली सामाजिक एकता को जाति नष्ट कर देती है।

इस विभाजनकारी साम्राज्यवादी सोच के कार्यान्वयन का मुख्य माध्यम बनाया गया सन् 1871 से प्रारंभ हुई दस वर्षीय जनगणना की प्रक्रिया को। उसका एकमात्र लक्ष्य था हिंदू यथार्थ को जाति, उपासना और बोलियों आदि के भेदों में खंड-खंड करके चित्रित करना।

अपने साम्राज्यवादी उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने 1871-72 की जनगणना से ही जातियों की सूचियां तैयार करना और उनका कृत्रिम वर्गीकरण शुरू कर दिया।

सन् 1881 में प्रत्येक प्रांत के लिए ग्रामशः प्रत्येक जाति की संख्या देते हुए जातियों की सूची तैयार की गई। इतना ही नहीं, जातीय स्पर्धा पैदा करने हेतु उन्होंने प्रत्येक जाति की अन्य जातियों से ऊंच नीच का तुलनात्मक आकलन भी करना चाहा। किन्तु उनके इस प्रयत्न का उस समय के भारतीय समाज की ओर से इतना कड़ा विरोध हुआ कि उन्हें उस समय अपनी इस योजना को स्थगित करना पड़ा।

पर सन् 1909 के जनगणना आयुक्त सर हर्बर्ट रिस्ले ने सामाजिक उच्चता के सिद्धांत के आवरण में इस योजना को कार्यान्वित कर ही डाला। जनगणना कर्मचारियों को निर्देश दिया गया कि वे जाति और उपजाति पूछने के साथ ही यह भी पूछेें कि आपकी जाति अमुक जाति से ऊंची है या नीची। इस पूछताछ का परिणाम हुआ कि विभिन्न जातियों में अपने को ऊंचा बताने की होड़ लग गई। 

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