Saturday, August 18, 2018

Atali Bihari Vajpayee and his guru Shivmangal singh suman_अटल का साहित्यिक-गुरुतर नाता

शिवमंगल सिंह सुमन

यह एक कम जानी बात है कि हिन्दी के सुप्रसिद्व कवि डाॅक्टर शिवमंगल सिंह सुमन कभी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अध्यापक रहे थे। सन् 1999 की जनवरी में शिवमंगल सिंह को पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह परम्परा के अनुसार राष्ट्रपति भवन के अशोक हाल में आयोजित था। अलंकृत किए जाने वाले लोगों के साथ ही विशिष्ट दर्शकों की पहली पंक्ति में उपस्थित थे पूर्व प्रधानमंत्री इन्द्रकुमार गुजराल, शीला गुजराल, सोनिया गांधी, लाल कृष्ण आडवाणी, उप राष्ट्रपति कृष्णकांत, प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी तथा अन्य अनेक विशिष्ट जन। आने पर आडवाणी भी अलंकृत होने वाले अपने परिचित लोगों से मिलने आए और प्रधानमंत्री भी। 


"क्या खोया, क्या पाया" पुस्तक में कन्हैयालाल नंदन, इस घटना का आंखो देखा हाल बताते हुए लिखा है कि सुमनजी मेरे ठीक आगे की कुर्सी पर विराजमान थे। अटलजी ने भीमसेन जोशी, लता मंगेशकर, जस्टिस अययर और सतीश गुजराल से मिलते हुए ज्यों ही आगे नजर दौड़ाई तो उनकी नजर सुमनजी पर पड़ गयी। अटलजी क्रम को भूल, हाथ जोड़कर अभिवादन करते हुए पहले सुमनजी से मिले, उनकी कुशलक्षेम पूछी और तब अन्य लोगों से मुलाकात ही। अपने गुरूवर के प्रति उनका आंतरिक आदर-भाव उनकी आंखों में सहज उतरा हुआ देखा जा सकता था। उन्होंने कही स्वीकार भी किया है कि मुझे शिक्षकों का मान-सम्मान करने में गर्व की अनुभूति होती है।

यह अनायास नहीं था कि यह सुमन ही थे जिनका नाम संसद में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लिया था। जिनकी कविता वाजपेयी ने तेरह दिन की सरकार के पतन के दिन संसद में पढ़कर सुनाई थी।
संघर्ष पथ पर जो मिले
यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।


ये था गुरू के प्रति शिष्य का सम्मान, जिसने अपने गुरू की कविता पढ़ उसे पाठ्य पुस्तकों से निकाल जन सामान्य के बीच चर्चित कर दिया। इससे गुरू का मान सम्मान बढ़ा या नहीं, लेकिन शिष्य (अटलजी) के प्रति उज्जैनवासियों के मन में जो आदर भाव जागृत हुआ वह अनुभव ही किया जा सकता है, शब्दों में व्यक्त नहीं। 40 के दशक में ग्वालियर के विक्टोरिया काॅलेज में सुमन ने हिंदी पढ़ाई। वाजपेयी भी इसी काॅलेज के प्रसिद्ध छात्र नेता, कवि और लोकप्रिय वक्ता थे। 


जबकि 13 अक्तूबर 1995 को दिल्ली के सप्रू हाउस में अटलजी के काव्य संग्रह "मेरी इक्यावन कविताएं" के कार्यक्रम का औपचारिक शुभारंभ तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने तो लोर्कापण विद्यानिवास मिश्र ने किया था। तब उन्होंने कहा था कि मुझे डाक्टर सुमनजी का आर्शीवाद मिला है। एक विद्यार्थी के रूप में मैंने उनसे प्रेरणा पाई है। मेरी अमर आग कविता उन्हीं की प्रेरणा से लिखी गई। 


उल्लेखनीय है कि अटलजी के पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी सुमन के गुरू थे। संस्कृत के विद्वान होने के साथ उनका ब्रज और खड़ी बोली पर अधिकार था। वे स्वयं कवि थे और उनकी प्रेरणा से ही सुमन काव्य लेखन की ओर प्रवृत्त हुए। ऐसे पिता के पुत्र में कई विशेषताएं आ जाना स्वाभाविक बात है। कहते है कि 

होनहार बिरवान के होत चीकने पात।

नवीं कक्षा में पहली कविता "ताजमहल" लिखने वाले वाजपेयी के स्वभाव में उदारता और सामने वाले के लिए सहज सम्मान उनके कवि होने के कारण है तो इसलिए कि कविता ने उनकी मानवीय संवदेनशीलता को बनाए रखा है।


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