Saturday, May 4, 2019
Short film on first general elections in delhi_Role of media in Loksabha polls_पहले लोकसभा चुनाव की झलक दिखलाती फिल्म_ मीडिया की ऐतिहासिक भूमिका
दिल्ली के पहले लोकसभा चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्त्ता साइकिल, तांगा, इक्का और जीपों में अपना-अपना प्रचार करते थे। इस फिल्म में कनाट प्लेस के भीतरी सर्किल में कोट-पतलून, धोती-कुर्ता और शर्ट-पैंट पहने साइकिल सवार कार्यकर्त्ता अपने हाथों में झंडे-बैनर लिए नजर आते हैं। इतना ही नहीं, तब के भीड़भाड़ रहित कनाट प्लेस और उसकी दुकानें भी पृष्ठभूमि में दिखाई देती है।
सन् 1952 में चुनाव संचालित करने में आने वाली कठिनाइयों के बारे में अधिकांश लोग आज कल्पना नहीं कर सकते, क्योंकि पहले कभी चुनाव नहीं हुए थे, यहां तक कि निर्चाचन आयोग भी अनुभवहीन था। इस फिल्म में चुनावी प्रक्रिया में पूरी तत्परता लगे सरकारी अधिकारियों, पुरूष-महिलाएं दोनों ही, के समूह दिखते हैं। जो कि तब की निरक्षर और पहली बार मतदान कर रहे पगड़ीधारी राजस्थानी मजदूरों और घूघंट वाली महिला श्रमिकों को वोट डालने के बारे में समझाते नजर आते हैं। उन दिनों तो किसी ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का तो नाम भी नहीं सुना था, बल्कि पूरी मतदान प्रक्रिया ही बिलकुल अलग थी। मतपत्र पर न तो उम्मीदवारों के नाम होते थे, न चुनाव में भाग ले रही पार्टियों के चुनाव चिन्ह। मतपत्रों पर ठप्पा तक नहीं लगाया जाता था। इसकी बजाय पोलिंग बूथ पर हर उम्मीदवार के लिए एक अलग बक्सा होता था, जिस पर उसका नाम और राजनीतिक दल का चुनाव चिन्ह अंकित होता था। मतदाताओं को मतपत्र-कागज का एक टुकड़ा, जो आकार में एक रुपए के नोट (अब एक और दुर्लभ वस्तु!) से बड़ा नहीं था-को अपनी पसंद के उम्मीदवार के बक्से में डालना होता था।
इस फिल्म में एक ऐसी ही महिला मतदाता हाथ में पर्चा लिए मतदान केंद्र के भीतर वोट देती हुई दिखती है। यहां तक कि मतदान केंद्रों के बाहर वोट डालने वालों की लंबी-लंबी कतारों को देखकर पहले लोकसभा चुनावों में भाग लेने का नागरिकों का उत्साह देखते ही बनता है। ऐसे ही एक दृश्य में, मतदान केंद्र के बाहर वोट डालने की अपनी बारी का इंतजार करती हुई महिलाएं अपने बच्चों के साथ डेरा डाले दिखती हैं। इस तरह, आम चुनावों में पढ़े-लिखे तबके से लेकर गरीब-अनपढ़ महिलाओं की सक्रिय भागीदारी की बात साफ नजर आती है। यह बात उल्लेखनीय है कि राजधानी में महिलाएं केवल वोट देने में नहीं आगे नहीं थी बल्कि एक सशक्त उम्मीदवार के रूप में सुचेता कृपलानी नई दिल्ली से लोकसभा से 47 फीसदी मत प्राप्त करके चुनाव जीतने वाली पहली महिला सांसद भी बनी। इसी तरह, लोकसभा चुनावी सुरक्षा प्रबंधन में लगे पुलिस के हाथ में डंडा लिए पगड़ीधारी जवान, गश्त लगाते घुड़सवार पुलिसकर्मियों से उस समय कानून व्यवस्था बनाए रखने के विभिन्न प्रयासों का पता चलता है।
इस फिल्म में एक विशेष बात देखने को मिली और वह थी, दिल्ली के राजपथ पर बंद जीप और साइकिल पर सवार कार्यकत्ताओं के जत्थों का दल विशेष के लिए प्रचार। उसमें भी हैरतअंगेज बात यह थी कि वे सब इंडिया गेट के बीच में से होकर निकल रहे थे। इतना ही नहीं, तब इंडिया गेट पर बनी "छतरी में अंग्रेज राजा की लगी प्रतिमा" भी साफ नजर आती है। आज की पीढ़ी के लिए यह दोनों बातें किसी अचरज से कम नहीं है। उल्लेखनीय है कि इंडिया गेट पर बनी छतरी में लगे अंग्रेज राजा की मूर्ति को समाजवादी दल के नेता राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में हुए व्यापक जनविरोध के परिणामस्वरूप् वर्ष 1958 में हटाया गया था। जबकि पाकिस्तान के साथ हुए बांग्लादेश युद्ध के उपरांत “अमर जवान ज्योति“ का निर्माण दिसंबर, 1971 में हुआ था। अमर जवान के प्रतीक स्वरूप यहां नियमित रूप से एक ज्योति जलती रहती है। इसलिए अब तो इस सड़क और इंडिया गेट के बीच से होकर निकलना प्रतिबंधित है।
तब की दिल्ली में एक चुनावी बैनर को खुली मोटर गाड़ी में ले जाते हुए के दृश्य से चुनावी प्रचार की गतिविधियों का पता चलता है। उस बैनर में अंग्रेजी में लिखा था, "विल आफ द पीपुल शैल बी द लॉ आफ द स्टेट"। जबकि चुनावी रैली में कांग्रेस पार्टी के पोस्टर में हिंदी और उर्दू भाषा का इस्तेमाल था। नई दिल्ली से होकर गुजरने वाले चुनावी प्रचार के जुलूस में लोगों को लेकर चलने वाले खुले तांगे, बंद तांगे, इक्के के साथ उस दौर की "दिल्ली ट्रांसपोर्ट सर्विस" की ट्रकनुमा बंद बसें भी नजर आती है, जिससे तब की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का पता चलता है।
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