Delhi of Partition_1947_बँटवारे की दिल्ली का डरावना माहौल
10082019_दैनिक जागरण
अगस्त 1947 में भारत के विभाजन ने दुर्भाग्य समूचे देशवासियों को मानो शैतानी जकड़न का शिकार हो गए। खासकर पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान से आने वाले हिंदू-सिख शरणार्थी और पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों को इस सांप्रदायिक हिंसा का सर्वाधिक खामियाजा भुगतना पड़ा। इनमें भी विशेष रूप से असंख्य महिलाएं और लड़कियां अपहरण, दुष्कर्म और हिंसा का शिकार हुईं। यहां तक कि बाद में सरकार और सामाजिक संगठनों के प्रयास से ऐसी अगवा की गई महिलाओं को बचाया गया, उनको लेकर तत्कालीन समाज का दृष्टिकोण सहज और मानवीय नहीं था। 1951 की दिल्ली की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, यहां पर बंटवारे के बाद कुल 4,59,391 शरणार्थी आएं, जिनमें 229,712 महिलाएं थी।
पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल ने अपनी आत्मकथा "मैटर्स ऑफ़ डिसक्रिशन" में लिखा है कि दोनों देशों में 15 अगस्त को आजादी के उत्सव के चार दिनों के भीतर ही अराजकता का माहौल बन गया। अकेले लाहौर में 70 हजार मुसलमान पहुंचे जबकि हिंदू और सिखों ने शहर से पलायन किया। अप्रैल 1947 में जहां लाहौर में हिंदू-सिख आबादी तीन लाख थी जो कि अगस्त 1947 में घटकर मुश्किल से दस हजार रह गई। ऐसे में यह मानना व्यर्थ था कि बदले के भावना की आग दूसरी तरफ नहीं फैलेगी। विभाजन रेखा की दोनों तरफ हुए भयानक दंगों ने दो मित्रवत देशों के संबंध के सपने और सभी उम्मीदों को पूरी तरह ख़त्म कर दिया।"
29 अगस्त 1947 को सरदार पटेल ने जवाहरलाल नेहरू को भेजे अपने एक तार में कहा, भारत में हमें लोगों हो नियंत्रण में रखना अत्यंत कठिन मालूम हो रहा है। दिल्ली तथा अन्य स्थानों में आने वाले निराश्रित अत्याचारों और बर्बरता की मर्मभेदी कहानियां सुनाते हैं। यदि पश्चिम पंजाब की वर्तमान स्थिति तुरन्त न सुधरी अथवा सदि सीमाप्रान्त की स्थिति बिगड़ी, तो भारत की स्थिति नियंत्रण से बाहर चली जा सकती है और उसकी प्रतिक्रिया अन्यन्त व्यापक और विनाशकारी होगी। यहां प्राप्त हुई जानकारी यह संकेत करती है कि तुरन्त ही डेरा इस्माईल खान की भयंकर घटनाएं दोहराई जाने की संभावना है या सामुदायिक हत्या, आगजनी और बलात् किये जाने वाले धर्म-परिवर्तन की घटनाएं दोहराई जाएंगी।
इतना ही नहीं, सिंतबर 1947 में करोलबाग़ में करीब पांच हजार मेवों की भीड़ में रात को सड़कों पर प्रदर्शन करने से स्थिति विस्फोटक बन गई। सैन्य दल के आने के कारण मेव लोग तो बिखर गए पर उस क्षेत्र की गैर-मुस्लिम जनता में में आक्रमण का भारी डर पैठ गया। इस घटना का संज्ञान लेते हुए राजेन्द्र प्रसाद ने पांच सिंतबर 1947 को सरदार पटेल को एक पत्र लिखा। उन्होंने कहा यदि एक बार शहर (दिल्ली) में उपद्रव फूट पड़ा, तो उसे रोकना कठिन होगा। निराश्रितों से भिन्न शहर के हिन्दुओं की यह मांग है कि उन्हें (शहर के निवासियों) को हथियार दिये जाने चाहिये, ताकि वे आत्मरक्षा कर सकें।
इस पत्र के जवाब में पटेल ने लिखा कि पिछले छह या आठ महीनों में हम गैर मुस्लिम प्रार्थियों को उदारतापूर्वक हथियार देते रहे हैं। परन्तु दिल्ली की वर्तमान अशांत परिस्थितियों में अधिक उदार नीति अपनाना असंभव होगा, क्योंकि आज के अविश्वास, संदेह और पश्चिमी पंजाब की करूण घटनाओं के लिए मुसलमानों के खिलाफ शिकायतों से भरे वातावरण में हम निश्चिंत रूप से यह नहीं कह सकते कि इन हथियारों का उपयोग आक्रमण करने में नहीं होगा, जिसका परिणाम होगा अव्यवस्था और अराजकता का माहौल।
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